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नवीकरणीय उर्जा क्षेत्र की नई क्रांति है हाइड्रोजन ईंधन

दुनियाभर में ईंधन की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, लेकिन इसके साथ ही ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन भी बढ़ा है। ऐसे में यह जरूरी हो गया है कि वैकल्पिक ईंधन के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाए, जोकि सस्ता और पर्यावरण के अनुकूल हो। हाइड्रोजन ईंधन एक ऐसा ही ईंधन है। यह पेट्रोलियम ईंधन का बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। इससे ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में भी कमी आएगी। बता दें, सीएनजी के साथ हाइड्रोजन का मिश्रण कर इसे परिवहन ईंधन के रूप में उपयोग करने के लिए दिल्ली के राजघाट बस डिपो में एक पायलट परियोजना चल रही है। इस परियोजना के तहत दिल्ली में 50 बसों को हाइड्रोजन-सीएनजी के मिश्रण से चलाया जा रहा है और इसके परिणाम भी काफी सराहनीय हैं।

ग्रीन हाइड्रोजन पर दो दिवसीय ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का किया गया आयोजन
बिजली मंत्रालय के तहत भारत की सबसे बड़ी ऊर्जा समेकित कंपनी एनटीपीसी लिमिटेड ने 23 जून को ग्रीन हाइड्रोजन पर दो दिवसीय ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का आयोजन किया। इस ऑनलाइन कार्यक्रम में ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका (ब्रिक्स देशों) के अग्रणी विशेषज्ञों ने भाग लिया जिन्होंने इस विषय पर तथा ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में उनके देशों में हो रहे नवीनतम घटनाक्रमों पर अपने विचार साझा किए। बिजली मंत्रालय के सचिव आलोक कुमार ने अपने मुख्य संबोधन में कहा कि सरकार और उद्योग को यह सुनिश्चित करने के लिए कि वर्तमान विनियमन निवेश की राह में अनावश्यक बाधा नहीं है, अनिवार्य रूप से एक साथ मिल कर काम करना चाहिए।

इस वर्ष ब्रिक्स की अध्यक्षता कर रहा है भारत
भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा आयोजित इस बैठक में भारत का नेतृत्व अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के सलाहकार और प्रमुख संजीव कुमार वार्ष्णेय ने किया। इसमें उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) और भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया। इस बैठक का आयोजन मंत्रिस्तरीय बैठक और ब्रिक्स शिखर सम्मेलन सहित क्षेत्रीय आयोजनों की श्रृंखलाओं के हिस्से के रूप में किया गया था। जनवरी, 2021 से ब्रिक्स की अध्यक्षता कर रहा भारत 13-16 सितंबर 2021 को छठे ब्रिक्स युवा वैज्ञानिक सम्मेलन की मेजबानी करेगा। भारत के प्रस्ताव के अनुसार सम्मेलन के विषय स्वास्थ्य सेवा, ऊर्जा समाधान तथा अंतर-विषयी साइबर फिजिकल प्रणाली होंगे। सम्मेलन की घोषणा जुलाई के पहले सप्ताह में की जाएगी।

पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव को कम करने की है क्षमता
हाइड्रोजन की बड़ी मात्रा के परिवहन तथा भंडारण की सुरक्षा के लिए समान अंतर्राष्ट्रीय मानकों तथा उद्भव के उपयुक्त प्रमाणपत्रों से व्यापार को लाभ पहुंचेगा। ब्रिक्स देशों को इन पहलुओं पर एक साथ मिल कर काम करना चाहिए। ग्रीन हाइड्रोजन ब्रिक्स सहित सभी देशों के लिए बहुत सामयिक दिलचस्पी का विषय है क्योंकि इसमें सतत ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करने, ऊर्जा उपलब्धता के स्तर को बढ़ाने तथा पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव को कम करने की काफी क्षमता है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचालन समिति की बैठक में नवाचार सहयोग पर सर्वसम्मत सहमति
बता दें, ब्रिक्स देशों ने 11वीं ब्रिक्स विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचालन समिति की बैठक में नवाचार सहयोग पर सर्वसम्मत सहमति व्यक्त की है। भारत द्वारा रखे गए इस आशय के प्रस्ताव पर कार्य योजना के ब्यौरे के लिए ब्रिक्स विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार उद्यमिता (एसटीआईईपी) कार्य समूह की बैठक में विचार किया जाएगा।

ब्रिक्स नवाचार सहयोग 2021-2024 के लिए अवधारणा नोट और कार्य योजना पर 22 जून को आयोजित बैठक में विचार किया गया। यह बैठक ब्रिक्स विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार (एसटीआई) की गतिविधि कैलेंडर को लागू करने की समीक्षा के लिए बुलाई गई थी। इसमें ब्रिक्स के वैज्ञानिक मंत्रालयों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ को मिलेगा बढ़ावा
केंद्र सरकार ने इस साल उर्वरकों, रिफाइनरियों के लिए हाइड्रोजन खरीद दायित्वों को शुरू करने के लिए एक राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन शुरू किया। इसे पारदर्शी और प्रतिस्पर्धी तरीके से हरित हाइड्रोजन ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में निजी क्षेत्र को शामिल करने के लिए लाया गया है। राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन का उद्देश्य मूल्य श्रृंखला में हाइड्रोजन और ईंधन सेल प्रौद्योगिकियों के निर्माण के लिए भारत को एक वैश्विक केंद्र के रूप में विकसित करना है। इस दिशा में, ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ के साथ गठबंधन में उपयुक्त प्रोत्साहन और सुविधा के माध्यम से विनिर्माण का समर्थन करने के लिए एक ढांचा विकसित किया जा रहा है।

ग्रीन हाइड्रोजन का निष्कासन है एक बड़ी चुनौती

व्यावसायिक रूप से हाइड्रोजन का उपयोग करने के लिये सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक ग्रीन हाइड्रोजन का निष्कासन है। हाइड्रोजन निष्कासन की प्रक्रिया बेहद खर्चीली होती है। वर्तमान में अधिकांश नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन, जिससे कम लागत में बिजली का उत्पादन किया जा सकता है, उनका उत्पादन केंद्र उन स्थानों से दूर स्थित है जहां उनकी मांग है। हाइड्रोजन के उत्पादन में उपयोग की जाने वाली तकनीक, जैसे- कार्बन कैप्चर और स्टोरेज एवं हाइड्रोजन ईंधन सेल प्रौद्योगिकी अभी प्रारंभिक अवस्था में हैं। इस कारण भी ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन की लागत काफी अधिक है। विद्युत अधिनियम, 2003 के द्वारा राज्य की सीमाओं के पार खुली बिजली का परिचालन करने का प्रावधान किया है। हालांकि जमीनी स्तर पर इसे लागू नहीं किया जा सका है।

हरित हाइड्रोजन पहलों में एनटीपीसी रहा है अग्रणी
एनटीपीसी भारत में हरित हाइड्रोजन पहलों में अग्रणी भूमिका निभा रही है। एनटीपीसी कार्बन कैप्चर तथा हाइड्रोजन के क्षेत्रों में व्यापक अध्ययन, प्रयोग भी कर रही है और उसने इसके लिए ग्रीन हाइड्रोजन पर कुछ पायलट परियोजनाओं की भी घोषणा की है। एनटीपीसी लिमिटेड के सीएमडी गुरदीप सिंह ने स्वागत टिप्पणियों के दौरान कहा कि ब्रिक्स के पांचों देश टिकाऊ विकास तथा समावेशी आर्थिक वृद्धि पर समान विजन साझा करते हैं। ऊर्जा सहयोग को सुदृढ़ बनाने तथा सभी के लिए किफायती, भरोसेमंद, सुविधाजनक और सुरक्षित ऊर्जा सुनिश्चित करना ब्रिक्स देशों के एजेन्डा में एक महत्वपूर्ण कार्यनीतिक क्षेत्र रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत के लिए हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था में रूपांतरण न केवल हाइड्रोकार्बन ईंधनों पर आयात निर्भरता में कमी लाएगा बल्कि यह इसके नागरिकों के लिए स्वच्छ वायु उपलब्ध करायेगा, समग्र तरीके से ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाएगा तथा देश के आत्मनिर्भर भारत के विजन को पूरा करेगा।

अन्य कंपनियां भी कर रही हैं इस दिशा में काम
भारत सालाना लगभग 50 लाख टन हाइड्रोजन का उत्पादन करता है और उम्मीद है कि देश में 2024 तक 16,000 टन प्रति वर्ष और 2030 तक 1 मिलियन टन की हरित हाइड्रोजन की मांग देखी जा सकती है। हाल ही में टाटा, रिलायंस, महिंद्रा और सरकारी तेल कंपनियां भी हाइड्रोजन फ्यूल को ट्रांसपोर्ट के लिए इस्तेमाल योग्य बनाने की दिशा में काम कर रही हैं। एनटीपीसी के अलावा, ग्रीनको, अदानी समूह, एक्मे सोलर जैसी निजी कंपनियां और इंडियन ऑयल कॉर्प लिमिटेड जैसी राज्य के स्वामित्व वाली फर्में पहले से ही इस अवसर पर नजर गड़ाए हुए हैं, जो प्रौद्योगिकी प्रदाताओं के साथ गठजोड़ कर रही हैं, जबकि सोलर एनर्जी कॉर्प ऑफ इंडिया लिमिटेड हरित हाइड्रोजन प्लांट बनाने के लिए बोलियां आमंत्रित करना चाह रही है।

2021-22 के बजट में राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन को किया गया लॉन्च
नवंबर 2020 में आयोजित तीसरी वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा निवेश बैठक और एक्स्पो (थर्ड ग्लोबल रिन्युएबल एनर्जी इंवेस्टमेंट मीटिंग एंड एक्स्पो) में बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नवीकरणीय ऊर्जा मिश्रण में हाइड्रोजन जैसी नवीकरणीय प्रौद्योगिकियों के महत्व का उल्लेख किया था। इसको आगे बढ़ाने के लिए 2021-22 के बजट में राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन को लॉन्च किया गया। राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन का उद्देश्य नवीकरणीय ऊर्जा के बारे में प्रधानमंत्री मोदी के दृष्टिकोण को साकार करने के लिए हाइड्रोजन ऊर्जा, रणनीति और दृष्टिकोण की दिशा में सरकार के दृष्टिकोण, और दिशा को निर्धारित करना है।

कई विकसित और विकासशील देशों ने इस दिशा में उठाए हैं प्रभावी कदम
वर्तमान परिस्थितियों में हाइड्रोजन ऊर्जा की उपयोगिता को देखते हुए विश्व के कई विकसित और विकासशील देशों ने इस दिशा में प्रभावी कदम उठाए हैं। दुनिया की दिग्गज ऑटोमोबाइल कंपनियां भी अब हाइड्रोजन फ्यूल सेल से चलने वाली कारें बना रही हैं। वे इस दिशा में व्यापक निवेश कर रही हैं। एक बार टैंक फुल होने पर हाइड्रोजन कारें 400 से 600 किलोमीटर तक चल सकती हैं। यही नहीं इन वाहनों को पांच से सात मिनट में रीफ्यूल भी किया जा सकता है।

भारत इंटरनेशनल पार्टनरशिप ऑन हाइड्रोजन इकोनॉमी के संस्थापक सदस्यों में शामिल
भारत के संदर्भ में बात करें तो विगत कुछ वर्षों में जिस तेजी से हम अक्षय ऊर्जा के वैश्विक केंद्र बनकर उभरे हैं, उसे देखते हुए हाइड्रोजन ऊर्जा उत्पादन की दिशा में प्रभावी कदम बढ़ाना होगा। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2050 तक हाइड्रोजन ऊर्जा का बाजार 2.5 खरब डॉलर का होगा। इसे देखते हुए भारत में हाइड्रोजन ऊर्जा के क्षेत्र में प्रयासों को हाल के दौर में काफी गति मिली है। भारत 19 सदस्यों वाले इंटरनेशनल पार्टनरशिप ऑन हाइड्रोजन इकोनॉमी (आइपीएचई) के संस्थापक सदस्यों में शामिल है। भारत का लक्ष्य है कि वर्ष 2026-27 तक देश में उपयोग होने वाली कुल  ऊर्जा में 43 प्रतिशत हिस्सेदारी अक्षय ऊर्जा की हो। इस लक्ष्य की पूर्ति में हाइड्रोजन ऊर्जा अहम भूमिका निभा सकती है। इसके साथ ही, इससे हवा की गुणवत्ता में सुधार और ऊर्जा सुरक्षा भी सुनिश्चित हो सकेगी।

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