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देश में सत्य की खोज के लिए शास्त्रार्थ की परंपरा पुनर्जीवित हो : होसबाले

नयी दिल्ली : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने भारत में ‘नैरेटिव’ की लड़ाई को परास्त करने के लिए ‘शास्त्रार्थ’ की परंपरा को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता पर आज बल दिया जिसमें किसी एक पक्ष की नहीं, अपितु सत्य की जीत हो और उससे हमारा देश एवं समाज आगे बढ़े।श्री होसबाले ने यहां वरिष्ठ पत्रकार बलबीर पुंज की पुस्तक ‘नैरेटिव का मायाजाल’ का विमोचन के समारोह को संबोधित करते हुए यह कहा। कार्यक्रम की अध्यक्षता केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने की। इस मौके पर पुस्तक के प्रकाशक प्रभात प्रकाशन के श्री प्रभात कुमार भी उपस्थित थे।

सर कार्यवाह ने कहा कि भारत में सत्य की प्रमुखत: तीन खोजें हुईं हैं। पहली खोज यह कि हम एक शरीर नहीं बल्कि एक चैतन्य आत्मा हैं। दूसरी खाेज धर्म की हुई और तीसरी -शास्त्रों का संकलन एवं लेखन। उन्होंने कहा कि बालगंगाधर तिलक ने यूरोप को बताया कि भारत की दुनिया को एक बड़ी देन धर्म की कल्पना है। लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने कहा कि भारत में पंचायतीराज का आधार धर्म था। उन्होंने कहा कि नैरेटिव या प्रोपेगंडा आदि की बातों के बीच हमें याद करना चाहिए कि हमारे यहां शास्त्रार्थ की परंपरा थी।

उन्होंने देश में एक सबल प्रबल अभियान चलाने की जरूरत है ताकि मनुष्य संबंधी विषयों के बारे में युगानुकूल ढंग से अलग सोच एवं अध्ययन हो। विचार की यात्रा पांच हजार साल चलने की बात नहीं है। इसे आगे भी बढ़ाना है। नैरेटिव छोटा सा आयाम है। प्रामाणिक सत्य की खोज के लिए भारत में शास्त्रार्थ की परंपरा को समझने की जरूरत है। जहां एक व्यक्ति का अध्ययन, अवलोकन, संवेदना से प्रामाणिक सत्य, दूसरे व्यक्ति के अध्ययन, अवलोकन, संवेदना से प्रामाणिक सत्य आमने सामने आते हैं और उसमें किसी पक्ष की हार-जीत नहीं होती बल्कि सत्य की जीत होती है। हमें सत्य की खोज के लिए शास्त्रार्थ के लिए तैयार होना चाहिए।

केरल के राज्यपाल श्री खान ने कहा कि मानस से बनी विरासत या धरोहर कालजयी होती है। जबकि भौतिक विरासत की एक आयु होती है और उसके बाद वे नष्ट हो जाती है। उन्होंने दिल्ली के पुराने किले और श्रीकृष्ण की भगवतगीता का उदाहरण दिया। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम लिये बिना कहा कि एक संगठन ऐसा है जिसमें कोई यह नहीं पूछता कि कौन जिम्मेदार है, बल्कि वे कहते हैं कि अमुक परिस्थितियां हैं तो हम अपने पुरुषार्थ से उसे ठीक करेंगे। उन्होंने भारतीय की पहचान के लिए आदिगुरू शंकराचार्य के परिचय को सर्वोत्तम बताया कि हम चैतन्य स्वरूप आत्मा हैं, ना कि शरीर। परहित ही धर्म और परपीड़ा ही पाप है।

पुस्तक के लेखक श्री पुंज ने पुस्तक का परिचय कराया और कहा कि नैरेटिव दरअसल सत्य या तथ्य को विकृत करके अपने एजेंडे के अनुसार प्रस्तुत करना होता है। उन्होंने कहा कि देश में तमाम समस्याओं की जड़ ऐसे ही दूषित नैरेटिव हैं जिन्हें गुलामी के कालखंड में अंग्रेज़ों ने रचा था। पुस्तक में इसी बात की पड़ताल की गयी है। (वार्ता)

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