बरसाने से कम नहीं है गोरखपुर की होली
- आसमान से बरसता है रंग और अबीर-गुलाल से रंगीन हो जाती है हवा
- रथ पर सवार गोरक्षपीठाधीश्वर करते हैं रंग भरी होली की यात्रा की अगुआई
- लोग ही रथ को खींचते हैं और आगे-पीछे होते हैं हजारों लोग
गोरखपुर । आसमान से रंगों की बारिस। हवा में उड़ते अबीर-गुलाल। पूरी की पूरी सडक़ बिखरे कई तरह के रंग। रथ पर सवार गोरक्षपीठाधीश्वर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ। रथ के आगे-पीछे रंग में सराबोर हजारों की संख्या में लोग। वाकई में यह दृश्य खुद में अनूठा है। कुल मिलाकर यहां की होली का उल्लास और उमंग भी बरसाने जैसा ही होता है।
होली के दिन का यह अनूठा माहौल होता है मुख्यमंत्री के अपने शहर गोरखपुर की होली का । इस होली का नाम है भगवान नरसिंह की रंगभरी शोभायात्रा। रथ पर सवार होकर इसकी अगुआई गोरक्षपीठाधीश्वर करते हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी वह इस परंपरा को निभाते हैं। रथ को लोग खींचते हैं और रथ के आगे-पीछे हजारों की संख्या में लोग शामिल होते हैं।
जिस रास्ते से ये रथ गुजरता है। वहां छत से महिलाएं और बच्चे गोरक्षपीठाधीश्वर और यात्रा में शामिल लोगों पर रंग-गुलाल फेंकते हैं। बदले में इधर से भी उनपर भी रंग-गुलाल फेंका जाता है।
नानाजी ने डाली थी होली की यह अनूठी परंपरा
अनूठी होली की यह परंपरा करीब सात दशक पहले नानाजी देशमुख ने डाली थी। बाद में नरसिंह शोभायात्रा की अगुवाई गोरखनाथ मंदिर के पीठाधीश्वर करने लगे। लोगों के मुताबिक कारोबार के लिहाज से गोरखपुर का दिल माने जाने वाले साहबगंज से इसकी शुरुआत 1944 में हुई थी। शुरू में गोरखपुर की परंपरा के अनुसार इसमें कीचड़ का ही प्रयोग होता है। हुड़दंग अलग से। अपने गोरखपुर प्रवास के दौरान नानाजी देशमुख ने इसे नया स्वरूप दिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सक्रिय भागीदारी से इसका स्वरूप बदला साथ ही लोगों की भागीदारी भी बढ़ी।
घंटाघर से शुरू होती है रंग भरी होली यात्रा
होली के दिन भगवान नरसिंह की शोभायात्रा घंटाघर चौराहे से शुरू होती है। जाफराबाजार, घासीकटरा, आर्यनगर, बक्शीपुर, रेती चौक और उर्दू होते हुए घंटाघर पर ही जाकर समाप्त होती है। होली के दिन की इस शोभायात्रा से एक दिन पहले घंटाघर से ही होलिका दहन शोभायात्रा निकाली जाती है। इसमें भी गोरक्षपीठाधीश्वर परंपरागत रूप से शामिल होते हैं ।