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फिल्में सॉफ्ट-पॉवर फैलाने का एक बड़ा माध्यम हैं: द्रौपदी मुर्मू

आशा पारेख को किया दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित

नई दिल्ली । राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शुक्रवार को नई दिल्ली में आयोजित समारोह में 68वें संस्करण में विभिन्न श्रेणियों के तहत वर्ष 2020 के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्रदान किए। इस अवसर पर प्रतिष्ठित दादा साहब फाल्के पुरस्कार भी प्रदान किया गया। इस मौके पर अपने संबोधन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि फिल्में सॉफ्ट-पावर फैलाने का एक बड़ा माध्यम है, इसका अधिक प्रभावी उपयोग करने के लिए, हमें अपनी फिल्मों की गुणवत्ता को बढ़ाना होगा। अब हमारे देश में एक क्षेत्र में बनी फिल्में अन्य सभी क्षेत्रों में भी बहुत लोकप्रिय हो रही हैं। इस तरह भारतीय सिनेमा सभी देशवासियों को एक सांस्कृतिक सूत्र में बांध रहा है। इस फिल्म समुदाय का भारतीय समाज में बहुत बड़ा योगदान है।

राष्ट्रपति ने दादासाहेब फाल्के पुरस्कार विजेता आशा पारेख को सिनेमा की दुनिया में उनके विशेष योगदान के लिए बधाई दी और कहा कि उनके लिए यह पुरस्कार महिला सशक्तिकरण की मान्यता है। उन्होंने कहा कि सभी कला रूपों में फिल्मों का व्यापक प्रभाव होता है। फिल्में न केवल एक उद्योग हैं बल्कि हमारी मूल्य प्रणाली की कलात्मक अभिव्यक्ति का माध्यम भी हैं। सिनेमा राष्ट्र निर्माण का भी एक प्रभावी माध्यम है। राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, तो भारतीय दर्शकों द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों की जीवन कहानियों से संबंधित फीचर और गैर-फीचर फिल्मों का स्वागत किया जाना चाहिए। दर्शक ऐसी फिल्मों को देखना चाहते हैं कि जिससे समाज में एकता को बढ़ावा मिलें, राष्ट्र के विकास की गति को तेज करें और पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों को मजबूत करें।

इस अवसर पर केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने सभी राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेताओं को बधाई देते हुए कहा कि सिनेमा ने हमारे देश की अंतरात्मा, समुदाय और संस्कृति पर प्रभाव डाला है। उसके सभी पहलुओं को उजागर किया है। कोविड महामारी के दौरान ओटीटी प्लेटफार्मों द्वारा निभाई गई भूमिका पर बोलते हुए, अनुराग ठाकुर ने कहा कि आज सिनेमा ने थिएटर की सीमाओं को पार कर लिया है और ओटीटी के आगमन के साथ हमारे मोबाइल फोन तक पहुंच गया है। पांच साल में दूसरी बार सर्वाधिक फिल्म अनुकूल राज्य पुरस्कार जीतने के लिए मध्य प्रदेश की राज्य सरकार की सराहना करते हुए अनुराग ठाकुर ने पुरस्कार विजेताओं से 75 क्रिएटिव माइंड्स ऑफ टुमारो के माध्यम से चुने जा रहे फिल्म जादू के भविष्य के रचनाकारों का मार्गदर्शन करने के लिए आमंत्रित किया । उन्होंने कहा कि युवाओं को प्रेरित करने और सलाह देने की इस अनूठी पहल का उनका समर्थन पुरस्कार विजेताओं की अगली पीढ़ी को आकार देगा।

मेरे जन्मदिन के एक दिन पहले मिला सबसे बड़ा सम्मान: आशा पारेख

अभिनेत्री आशा पारेख ने दादा साहेब फाल्के पुरस्कार प्राप्त करने के बाद सभी का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि मेरे जन्मदिन से एक दिन पहले यह पुरस्कार मिल रहा है जो उनके जीवन का सबसे बड़ा सम्मान है। उन्होंने कहा कि वे पिछले 60 साल से इस फिल्म जगत से जुड़ी हैं, और आज भी कई तरह से इसी जगत से जुड़ाव बना हुआ है। उन्होंने युवाओं को सलाह देते हुए कहा कि उन्हें लगन, अनुशासन और मेहनत से इस फिल्म जगत में खास मकाम बनाना चाहिए।(हि.स.)

इस प्रतिष्ठित सम्मान से प्रफुल्लित सुश्री पारेख ने कहा, “दादा साहब फाल्के पुरस्कार प्राप्त करना एक बहुत बड़ा सम्मान है। मेरे 80वें जन्मदिन से ठीक एक दिन पहले मुझे यह बड़ी मान्यता मिली है। यह सबसे प्रतिष्ठित सम्मान है जो मुझे भारत सरकार से मिला है।”अपने दौर में लम्बे समय तक बॉलीवुड सिनेमा की धड़कन रहीं अभिनेत्री पारेख ने कहा, “मैं जूरी ( पुरस्कार के निर्णायक मंडल ) को भी धन्यवाद देना चाहती हूं कि उन्होंने मुझे इस सम्मान के योग्य समझा है। मैं पिछले 60 साल से फिल्म जगत में हूं और अब भी अपने तरीके से इस इंडस्ट्री के साथ जुड़ी हुई हूं।”आशा पारेख अपने समय की सबसे अधिक पारिश्रमिक पाने वाली अभिनेत्री रही हैं । उनकी गिनती भारतीय रजत पटल की अब तक की सबसे सफल और प्रभावशाली अभिनेत्रियों में होती है।निर्माता सुबोध मुखर्जी और लेखक-निर्देशक नासिर हुसैन ने सुश्री पारेख को शम्मी कपूर के साथ ‘दिल देके देखो’ (1959) में नायिका के रूप में लिया। जिसने उन्हें रातो रात स्टार बना दिया।

हुसैन के साथ उनका लंबा जुड़ाव रहा, जिन्होंने उन्हें छह और फिल्मों में नायिका की भूमिका के लिया जिनमें जब प्यार किसी से होता है (1961), फिर वही दिल लाया हूं (1963), तीसरी मंजिल (1966), बहारों के सपने (1967) , प्यार का मौसम (1969), और कारवां (1971) शामिल थी।आशा पारेख को मुख्य रूप से अपनी अधिकांश फिल्मों में एक ग्लैमर गर्ल, उत्कृष्ट नर्तक और टॉमबॉय के रूप में जाना जाता था। फिल्म निर्देशक राज खोसला ने उन्हें ‘दो बदन’ (1966), ‘चिराग’ (1969) और ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ (1978) में नायिका की भूमिका के लिए लिया था।वर्ष 2008 में वह रियलिटी शो ‘त्योहार धमाका’ में जज भी रही थीं। वर्ष 2017 में उनकी आत्माकथा (खालिद मोहम्मद द्वारा सह-लिखित) ‘द हिट गर्ल’ शीर्षक से जारी की गई थी।आशा पारेख ने ‘मां’ फिल्म से बाल कलाकार के रूप में अभिनय की दुनिया में कदम रखा।उन्होंने हिंदी के अलावा कुछ और भाषाओं की फिल्मों में भी काम किया। गुजराती फिल्म अखंड सौभाग्यवती फिल्म में उनकी भूमिका के लिए गुजरात सरकार की ओर से सर्वेश्रेष्ठ अभिनेत्री का खिताब दिया गया था।

आशा परेख को जिद्दी, शिकार जैसी फिल्मों की बाक्सआफिस पर कामयाबी के लिए ‘जुबली गर्ल’ का खिताब मिला । ‘कटी पंतग’ फिल्म में के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार दिया गया था।नृत्य के प्रति आशा का बचपन से ही जुनून था और ये जुनून आगे भी जारी रहा। उन्होंने “चौलादेवी” जैसे प्रसिद्ध नृत्य की प्रस्तुति देकर प्रशंसा हासिल की। इसके बाद में एक नृत्य अकादमी “करा भवन” भी स्थापित करके, कई कुशल और प्रतिभाशाली नर्तकियों को प्रशिक्षण दिया है।उन्होंने अपनी प्रोडक्शन कंपनी “आकृति” बनाई। उन्होंने कुछ टेलीविजन धारावाहिकों का निर्माण और निर्देशन किया और 90 के दशक की शुरुआत में बेहद लोकप्रिय कोरा कागज (1998), कुछ पल साथ तुम्हारा (2003), कंगन (2001) जैसे टेलीविजन धारावाहिकों का निर्देशन भी किया ।आशा पारेख का सामाजिक सरोकर भी मजबूत रहा है। उन्होंने सांताक्रूज स्थित बीसीजे जनरल अस्पताल भी खोला है जो ‘आशा पारिख अस्पताल’ के नाम से काफी प्रसिद्ध है। इससे उनका सामाजिक कार्यों के प्रति लगाव, प्रेम और परवाह साफ झलकती है।

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