
जालंधर : राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण कार्यक्रम के सलाहकार डॉ नरेश पुरोहित ने कहा है कि विश्व स्तर पर लगभग ढाई करोड़ लोग कैंसर से पीड़ित हैं।डॉ पुरोहित ने कहा कि कैंसर से पीड़ित वे लोग होते हैं जो कैंसर के निदान और उसके उपचार के बाद भी जीवित रहते हैं।डॉ पुरोहित ने सोमवार को पटियाला स्थित सरकारी मेडिकल कॉलेज द्वारा आयोजित ‘कैंसर के साथ जीने की कला’ विषय पर सतत चिकित्सा शिक्षा कार्यक्रम (सीएमई) में ‘राष्ट्रीय कैंसर सर्वाइवर्स डे’ के अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में कहा कि हाल ही में राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम के अनुमानों से पता चलता है कि कम से कम नौ में से एक भारतीय को अपने जीवनकाल में कैंसर होने की आशंका है। इसके अलावा, भारत में हर साल लगभग 15 लाख नये कैंसर के मामले सामने आते हैं, और हर साल लगभग आठ लाख भारतीय कैंसर के कारण अपनी जान गंवा देते हैं, लेकिन
अच्छी खबर यह है कि ऑन्कोलॉजी के क्षेत्र में उन्नत अनुसंधान और विकास ने पिछले कुछ दशकों में कैंसर के उपचार को विकसित करने में सफलता प्राप्त की है, साथ ही इस बीमारी से पीड़ित लोगों के बचने की दर में भी वृद्धि हुई है।डॉ पुरोहित ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के अनुसार, दुनिया भर में लगभग 34 प्रतिशत कैंसर रोगियों को उपशामक देखभाल की आवश्यकता होती है, जिसमें लक्षणों को कम करने, दर्द प्रबंधन, उपचार से पहले और बाद में घर पर देखभाल, पोषण चिकित्सा, भौतिक चिकित्सा, विश्राम तकनीक और आध्यात्मिक परामर्श आदि पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
उन्होंने कहा कि कैंसर से बचे लोगों को ‘कैंसर विजेता’ कहा जाना चाहिये क्योंकि वे ‘सिर्फ़ जीवित नहीं रह रहे हैं’। अगर वे उपचार के बाद पाँच साल तक स्वस्थ रहते हैं, तो उन्हें फिर से कैंसर होने की आशंका किसी और की तरह ही है। शोधकर्ताओं के अनुसार कैंसर के मरीज़ कम गहन उपचार के साथ तेज़ी से ठीक हो सकते हैं।उन्होंने कहा कि उपशामक देखभाल एक अंतःविषय विशेषता है जो ऑन्कोलॉजी रोगियों की व्यापक देखभाल का अभिन्न अंग है। कैंसर से बचे लोगों के जीवन में बड़े बदलाव होते हैं जो अक्सर उन्हें इस जानलेवा स्थिति से जूझते हुए अभिभूत कर देते हैं। सहायक या उपशामक देखभाल उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने के लिये डिज़ाइन की गयी है। यही बात इसे इतना महत्वपूर्ण बनाती है।
उन्होंने कहा कि कैंसर से उबरने की यात्रा में, शारीरिक लक्षणों के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक और सामाजिक चुनौतियों को भी संबोधित करने की आवश्यकता है।उन्होंने कहा, “सबसे आम शारीरिक लक्षणों में दर्द, थकान, सांस फूलना, नींद और भूख न लगना, कैंसर और उसके उपचार से संबंधित विषाक्ततायें शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, तनाव, चिंता, खराब मूड और निश्चित रूप से, वित्तीय बोझ और अस्तित्व संबंधी प्रश्न हैं। इसलिए, कैंसर जैसी जीवन-सीमित बीमारी के उपचार में बहुत सारी योजनाये और निर्णय लेना, अतीत, वर्तमान और भविष्य के बारे में सोचना शामिल है। यहीं पर उपशामक देखभाल आती है। यह एक अंतःविषय, समग्र, व्यक्ति-केंद्रित, परिवार-केंद्रित, व्यापक देखभाल है जो न केवल रोगियों बल्कि देखभाल करने वालों के जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार करती है।
प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ पुरोहित ने बताया कि ‘थकान एक और लक्षण है जिसकी कैंसर रोगी अक्सर शिकायत करते हैं। थकान तनाव से और बढ़ जाती है जो बदले में, कैंसर रोगियों के हार्मोनल संतुलन को बदलकर उनके नींद चक्र को भी प्रभावित करती है।उन्होंने बताया कि दर्द को नियंत्रित करना कैंसर प्रबंधन की कुंजी है। ‘उपशामक देखभाल की भाषा में, दर्द का मतलब सिर्फ़ शारीरिक दर्द नहीं है, बल्कि इसकी धारणा और अन्य पहलू भी है। इसलिये, दर्द के लिये एक व्यापक रणनीति की ज़रूरत है।
उन्होंने बताया कि उच्च तापमान पर पकाये गये मांस, ग्रिल्ड और बारबेक्यू किये गये खाद्य पदार्थों के नियमित सेवन से संभावित कैंसरकारी पदार्थ हो सकते हैं, जिससे पेट के कैंसर के विकास का जोखिम बढ़ जाता है। ‘इसके अलावा, चीनी, मीठे पेय पदार्थ, जंक और कैलोरी-घने खाद्य पदार्थ मोटापे का कारण बन सकते हैं, जो डब्ल्यूएचओ के अनुसार, 13 विभिन्न प्रकार के कैंसर के पीछे प्रमुख कारण है,”।उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि स्वस्थ शरीर का वजन बनाये रखना कैंसर को दूर रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। (वार्ता)