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डा राजेंद्र प्रसाद ने एक माह तक कुंभ में किया था कल्पवास

महाकुंभनगर : भारत के पहले राष्ट्रपति डा राजेंद्र प्रसाद ने वर्ष 1954 में तीर्थराज प्रयाग के कुंभ मेले में एक माह का संयम,अहिंसा,श्रद्धा एवं कायाशोधन का कल्पवास किया था।डा राजेंद्र प्रसाद का आध्यात्मिक नगरी प्रयागराज से गहरा लगाव रहा है। आजादी के बाद से अब तक वह एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति रहे, जिन्होंने कुंभ में कल्पवास किया। प्रोटोकॉल और सुरक्षा के मद्देनजर वह आम श्रद्धालुओं के बीच तो नही रहे लेकिन सेना के अधीन संगम तट पर स्थित अकबर के किले की छत पर कैंप लगाकर एक मास का कल्पवास पूरा किया था। उन्होंने जहां कल्पवास किया उस स्थान को अब “प्रेसिडेंसियल व्यू” के नाम से जाना जाता है।

अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित सभा के संस्थापक सदस्यों में शामिल पंडित लाल वीरेंद्र कुमार शर्मा ने बताया कि जब वह लगभग 10 वर्ष के रहे होंगे तब डा राजेंद्र प्रसाद ने प्रयागराज कुंभ में कल्पवास किया था। उनके कल्पवास के लिए किले की छत पर कैंप लगाया गया था जहां उन्होंने विधि-विधान से कल्पवास पूरा किया था।डा प्रसाद ने जहां अपना कल्पवास पूरा किया था वहां पूरे मेले का विहंगम दृश्य दिखलाई पडता है और इसी कारण उस स्थान का नाम “प्रेसिडेंसियल व्यू” पड़ा। उनका जुडाव केवल कुंभ की वजह से अकेला नहीं था। उससे पहले 1916 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति सर सुंदर लाल के कार्यकाल में उन्हें विधि की मानद उपाधि दी गयी थी। वर्ष 1916 के बाद 1937 में तत्कालीन कुलपति पंडित इकबाल नारायण गुर्टू के कार्यकाल में भी उन्हें विधि की मानद उपाधि दी गयी थी।

प्रयाग धर्म संघ के अध्यक्ष राजेंद्र पालीवाल ने बताया कि डा राजेंद्र प्रसाद के एक माह तक यहां रूक कर कल्पवास करने की बातें उनके पिता स्वर्गीय गोकरण पालीवाल बताते रहे। उन्होंने प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के कुंभ में आने की घटना के बारे में भी बताया था।श्री पालीवाल ने पुराणों और धर्म शास्त्रों में कल्पवास को आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के लिए आवश्यक बताया गया है। यह मनुष्य के लए अध्यात्म की राह का एक पड़ाव है जिसके जरिए स्वनियंत्रण एवं आत्मशुद्धि का प्रयास किया जाता है। आदि काल से चली आ रही इस परंपरा के महत्व की चर्चा वेदो से लेकर महाकवि तुलसीदास रचित महाकाव्य रामचरितमानस, महाभारत अलग अलग नामों से मिलती है। बदलते समय के अनुरूप कल्पवास करने वालों के तौर तरीके में बदलाव अवश्य आया है लेकिन कल्पवासियों की संख्या में निरंतर वृद्धि होती जा रही है।

उन्होंने बताया कि कल्पवास करने के लिए उम्र की कोई बाध्यता नहीं है लेकिन माना जाता है कि मोह-माया से मुक्त और जिम्मेदारियों को पूरा कर चुके व्यक्ति को ही कल्पवास करना चाहिए। इस दौरान कल्पवास करने वाला मानसिक रूप से परिवार की जिम्मेवारियों को लेकर चिंतित नहीं रहता है। उसका पूजा-पाठ, ध्यान आदि में मन रमता है।(वार्ता)

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