देवउठनी एकादशी 2025: भगवान विष्णु के जागरण का महापर्व, शुभ कार्यों की होगी शुरुआत
हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाने वाला देवउठनी एकादशी का पर्व अत्यंत शुभ और फलदायी माना गया है। इस दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं और संपूर्ण ब्रह्माण्ड में शुभता का संचार होता है। चातुर्मास की समाप्ति के साथ ही विवाह, गृहप्रवेश, यज्ञ आदि सभी मंगल कार्यों की पुनः शुरुआत होती है। तुलसी विवाह, दीपदान और श्रीहरि की पूजा का विशेष महत्व है। देवउठनी एकादशी व्रत से पापों का विनाश, सुख-समृद्धि और मोक्ष प्राप्त होता है। भक्त “ऊठो देव ऊठो” भजन के साथ भगवान के जागरण का उत्सव मनाते हैं।
- चातुर्मास का अंत, तुलसी विवाह का विशेष महत्व, व्रत-पूजन से मिलता है मोक्ष का आशीर्वाद
हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। यह उस दिन का प्रतीक है जब भगवान विष्णु चार महीने (चातुर्मास) की योग-निद्रा से जागते हैं, और ब्रह्माण्ड में शुभता व जागृति का संचार होता है। इस दिन से विवाह-गृहप्रवेश-यज्ञ आदि शुभ कार्य पुनः आरंभ माने जाते हैं। देवउठनी एकादशी का यह पर्व केवल भगवान को जगाने की क्रिया नहीं बल्कि आत्मजागरण का संदेश है। जैसे विष्णु निद्रा से उठकर विश्व को धर्मपथ पर बढ़ाते हैं, वैसे ही मनुष्य को भी अपनी सुप्त उत्कृष्टता को जगाना चाहिए।
महात्म्य और शास्त्रीय आधार
कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवउठनी) का महत्व अनेक ग्रंथों में वर्णित है, जैसे पद्मपुराण, स्कन्दपुराण, विष्णुधर्मोत्तरपुराण आदि। पद्मपुराण में लिखा है – “चातुर्मासे स्थितो विष्णुः योगनिद्रां समास्थितः। कार्तिके शुक्लपक्षे तु जागर्ति मधुसूदनः॥” अर्थात् – भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी (शयनी एकादशी) से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक योगनिद्रा में रहते हैं और इस दिन जाग कर समस्त जीवों को आशीष देते हैं। विष्णुधर्मोत्तरपुराण में कहा गया है – “प्रबोधिनीं तु या प्रोक्ता एकादशी नृपोत्म। सा सर्वपापहरिणी मोक्षदा परिकीर्तिता॥” अर्थात् – यह एकादशी सभी पापों का नाश करने वाली और मोक्ष देने वाली मानी गई है। पूजापाठ, दान-दान, व्रत आदि द्वारा इस दिन विशेष पुण्य प्राप्ति का उल्लेख मिलता है।
चातुर्मास की समाप्ति का प्रतीक भी यही दिन माना गया है- जिस दौरान भगवान विष्णु निद्रांत में माने गए थे। इस दिन भगवान विष्णु चातुर्मास की निद्रा से जागते हैं। सभी देवताओं की “जागृति” का प्रतीक है। इस दिन से विवाह, गृह-प्रवेश, यज्ञ आदि शुभ कार्यों की पुनरारम्भ माना गया है। तुलसी-विवाह, दीपदान व विष्णु-पूजा का विशेष महत्व है। शास्त्रों में इस व्रत-उपवास-दान के द्वारा पापों के नाश और मोक्ष-प्राप्ति का विधान मिलता है।
कथा : यह वह कथा है जो ग्रंथों तथा पारम्परिक कहानियों में सुनाई जाती है – व्रतकर्त्ताओं द्वारा श्रद्धा-भाव से सुनने योग्य है।
एक समय की बात है – वेदव्यासजी के अनुसार, जब देवों एवं मनुष्यों के बीच धर्म-करण घटने लगा और अधर्म का आकर्षण बढ़ा, तब देवगण निराश हो उठे। उस समय महान मुनि नारद मुनि भगवान ब्रह्मा से पूछते हैं– “हे आचार्य! हमें बताइए कि इस संसार में पापों का नाश कैसे होगा, कौन-सा व्रत ऐसा है जिससे जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिले?”
ब्राह्मा जी ने कहा— “हे नारद! कार्तिक मास की शुक्ल एकादशी अर्थात् प्रबोधिनी एकादशी को यदि श्रद्धा पूर्वक व्रत किया जाए, तो हजारों अश्वमेध यज्ञों तथा शत-राजसूय यज्ञों के समकक्ष पुण्य फल प्राप्त होता है। उस दिन यदि रात में जागरण किया जाए, तो न केवल स्वयं का, अपितु दस-दस पीढ़ियों का कल्याण भी सुनिश्चित होता है।”
एकानेक पौराणिक कथाओं में यह भी वर्णित है कि, चार-महीने (चातुर्मास) तक जब भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग की शय्या पर विश्राम करते थे, उस काल में देवताओं का संसार – यहीं-वहीं-सा गतिमान था, शुभ कार्यों, विवाहों, यात्राओं, यज्ञों आदि में बाधा थी। तभी इस शुक्ल एकादशी के दिन, सर्वत्र जागृति हुई- विष्णु ने शय्या छोड़ी, और इस प्रकार संसार में पुनः शुभ-चक्र आरम्भ हुआ। इस प्रकार यह दिन “देवोत्थान पर्व” के नाम से प्रतिष्ठित हुआ।
रात्रि में व्रतकार, पूजा-स्थल में दीप-दान करते, तुलसी-वृंद पर आराधना करते, शंख-घुँघरू के साथ “ऊठो देव ऊठो, जागो देव जागो” जैसे भजन-गान करते थे। इसके फलस्वरूप लोकपरंपरा में विवाह-यज्ञ आदि शुभकार्य की पुनरारम्भ की परंपरा विकसित हुई।
प्रतीकात्मक अर्थ और आध्यात्मिक संदेश
इस दिन की कथा सिर्फ बाह्य रीति-रिवाज तक सीमित नहीं; इसकी गहरी आध्यात्मिक व्याख्या है- जिस प्रकार भगवान विष्णु चार-महीने (चातुर्मास) की निद्रा से जागते हैं, उसी प्रकार साधक को भी अपने भीतर की अज्ञान, आलस्य, असंयम की निद्रा से जागना चाहिए। यह जागृति केवल शारीरिक नहीं, मानसिक, भावनात्मक तथा आत्मिक स्तर की है – धर्म, सत्य, सद्कर्म की ओर अग्रसर होना चाहिए। इस दिन का व्रत-उपवास, दान-दान, जप-पूजा सुव्यवस्थित जीवन के लिए प्रतीक-रूप है – पूजा करके ही नहीं, बल्कि दैनिक जीवन में अनुशासन, संयम, सेवा-भाव को जगाना है। शुभ-कार्य (विवाह, गृह-प्रवेश, यज्ञ) के आरम्भ को चिह्नित कर यह दिन कहते हैं- “अब नया अध्याय शुरू करें”, पुरानी अशुभ प्रवृत्तियों को पीछे छोड़ें।
रीति-रिवाज एवं सामाजिक व्यवहार
इस एकादशी को मनाने के लिए हिन्दू समाज में अनेक रीति-रिवाज प्रचलित हैं, जो स्थानीय सांस्कृतिक विविधता के अनुसार भिन्न हो सकते हैं। नीचे प्रमुख रीति-रिवाज दिए जा रहे हैं –
व्रत और उपवास
एकादशी तिथि के दिन व्रत रखने वालों को प्रातः स्नान कर शुद्ध हो जाना चाहिए। सामान्यतः इस व्रत में अनाज (विशेषकर चावल, गेहूँ) का त्याग किया जाता है, फलाहार लिया जाता है। रात में जागरण करना – भजन-कीर्तन, कथा-पाठ करना शुभ माना जाता है। द्वादशी तिथि की प्रार्थना-समय (परान समय) में व्रत खोलना चाहिए।
देव-पूजा एवं तुलसी विवाह
इस दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु का आराधना-पूजा की जाती है। तुलसी-विवाह की परंपरा प्रचलित है: तुलसी-वृंद को सुशोभित कर भगवान विष्णु (शालिग्राम या अन्य रूप में) के साथ विवाह समारोह करने की परंपरा है।
दान-दान एवं सामाजिक कार्यक्रम
इस दिन दान-विभाजन विशेष पुण्य का माना है- भोजनदान, वस्त्रदान, धनदान आदि। कुछ स्थानों पर इस दिन गन्ने की कटाई-पूजा (उत्तान गन्ने) का विधान भी पाया गया है।
शुभ कार्य-आरम्भ
इस एकादशी के बाद विवाह-लग्न आदि शुभ कार्यों का आरम्भ करना सही माना जाता है- “शादी-महीना” शुरू होता है। चातुर्मास अर्थात् ठहराव-काल (जब विवाह व बड़ी सामाजिक गतिविधियाँ निषिद्ध थीं) समाप्त होता है और जीवन-चक्र पुनः गति पाता है।
स्थानीय परंपराएँ- पूर्वी उत्तर भारत
उत्तर भारत में इस दिन विशेष रूप से धार्मिक वातावरण सृजित होता है- विशेषकर काशी-वृंदावन-अयोध्या जैसे पुरातन केन्द्रों में। वाराणसी (काशी) में इस दिन दीपदान, तुलसी-विवाह, गंगा-घाटों पर विशेष आरती तथा सायं-वेला में “देवोत्थान” की सजावट की जाती है। विवाह-परिचय सम्मेलन, गृह-प्रवेश समारोह आदि इस एकादशी के बाद को शुभ मानकर नियोजित किये जाते हैं। लोकमानस में “ऊठो देव ऊठो, जागो देव जागो” जैसे नारों के साथ-साथ भजन-कीर्तन, शंख-घंट आदि सुनाई देते हैं।
प्रबोधिनी (देवउठनी) एकादशी केवल एक व्रत-दिन नहीं, बल्कि जागृति-प्रत्यय का प्रतीक है- यह हमें सिखाती है कि जीवन में स्थिरता, आलस्य, निष्क्रियता को त्याग कर सक्रिय, सत्कार्य-प्रधान और धर्मयुत् जीवन की ओर अग्रसर होना चाहिए। जैसे भगवान विष्णु ने निद्रा से जागकर विश्व के संचालन का भार पुनः ग्रहण किया, वैसे ही हमें भी अपने अंदर के अध:-चेतन, आलसी भाग को जगाकर श्रेष्ठ कर्मों की ओर अग्रसर होना है। इस दिन किया गया व्रत-उपवास, पूजा-कर्म, दान-दान, शुभ कार्य आरम्भ- सभी मिलकर एक नए अध्याय का आरम्भ करते हैं।
देवउठनी एकादशी पर भगवान को उठाने की विस्तृत विधि
स्थान को स्वच्छ कर आसन बिछाएँ / पूजन सामग्री तैयार रखें:
पूजन सामग्री : शालिग्राम/विष्णु प्रतिमा/चित्र ,शैया/तकिया (प्रतीक रूप में) ,तुलसी दल, पुष्प, अक्षत ,पंचामृत, गंगाजल ,धूप-दीप, चंदन, रोली ,शंख, घंटी ,गन्ना, नारियल, गुड़ ,श्वेत या पीला वस्त्र ,दीपक (घी का) ,ऋतु फल, मिष्ठान्न ,एक छोटा लकड़ी या पीतल का मंदिर का दरवाजा (प्रतीक) |
संकल्प व व्रत विधान : स्नान कर “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का जप करते हुए पूजा स्थान पर बैठें। हाथ में जल, पुष्प व अक्षत लेकर व्रत का संकल्प: “अहं देवप्रबोधिनी एकादशी व्रतं करिष्ये। श्रीहरि प्रसाद सिद्ध्यर्थं।”
भगवान की शैया और जागरण अनुष्ठान
शय्या-पूजन : शालिग्राम/विष्णु प्रतिमा को शय्या पर स्थापित कर चंदन, अक्षत व पुष्प चढ़ाएँ। कुछ स्थानों पर शैय्या पर तुलसी-दल बिछाने की परंपरा है।
मंत्र : “शेषतल्पगतं देवं शान्तरूपं जनार्दनम्।”
जगाने की मुख्य विधि
अब धीरे-धीरे प्रभु का जागरण आरंभ किया जाता है:
1. शंख बजाएँ, घंटी ध्वनि करें। 2. धीरे-धीरे भगवान की शैया को हल्का स्पर्श करते हुए कहें: “ऊठो देव ऊठो, जागो देव जागो। चार मास निद्रा पूरी भयो, अब जगो जगदीश।”
3. फिर यह वैदिक जागरण मंत्र उच्चारित करें: “उत्तिष्ठोतिष्ठ गोविन्द, उत्तिष्ठ गरुणध्वज। उत्तिष्ठ कमलाकान्त, त्रैलोक्यं मंगलं कुरु॥”
4. भगवान को उठाकर आसन पर प्रतिष्ठित करें। शैया से आसन पर स्थानांतरण जगत में शुभता के प्रवाह का प्रतीक है।
श्रीहरि का स्नान व श्रृंगार
गंगाजल और पंचामृत से अभिषेक , चंदन, केसर, पीला वस्त्र, पुष्प-माला धारण कराना , तुलसी दल तथा तुलसी-माला चढ़ाना
मंत्र : “ॐ विष्णवे नमः।”
दीपदान, भजन व स्तुति : दीप जलाकर भगवान के समक्ष रखें . विष्णु सहस्रनाम, नारायण स्तोत्र, गजेन्द्र मोक्ष पाठ .संध्याकाल में दीपदान करना अत्यंत शुभ होता है ।
तुलसी विवाह (यदि आयोजन हो)
तुलसी जी को दुल्हन रूप में सुसज्जित करें , शालिग्राम/विष्णु के साथ विवाह संस्कार- लघु मंत्रों सहित ,“लावा” और पंचामृत का प्रतीक प्रयोग करें.
भोग और आरती : खीर, पुए, पंचामृत आदि का भोग . ओम जय जगदीश हरे आदि की महाआरती
व्रत, दान और परान : द्वादशी में विष्णु परान मुहूर्त के अनुसार व्रत समाप्त करें .ब्राह्मण, गौ, गरीबों को भोजन व वस्त्रदान विशेष फलदायी होता है ।
पूजन के फल
- सहस्र अश्वमेध यज्ञ के बराबर पुण्य
- मोक्ष प्रदान करने वाली एकादशी
- मनोवांछित कार्य सिद्धि
- घर में सुख, शांति और समृद्धि
भजन – “उठो समय, बैठो श्याम” (देवउठनी एकादशी विशेष भजन)
यह भजन देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु (विशेषकर शालिग्राम रूप) को निंद्रा से जगाने के समय गाया जाता है।
वृंदावन, बरसाना, मथुरा, द्वारका और राजस्थान–बृज क्षेत्र में यह भजन प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में शंख- मृदंग की ध्वनि के बीच सामूहिक रूप से गाया जाता है।
भजन :
उठो समय, बैठो श्याम – जगत के पालनहार,
सोये चार महीना हो गए, सुनो प्रभु दरबार॥
ऊठो केशव, माधव, नारायण भगवान,
तुलसी विवाह करायो आज, लीला अमर महान॥
शेषनाग की सेज पे सोये, क्षीरसागर में धाम,
भक्त जगा रहे आरती गा के, बजा रहे मृदंग और नाम॥
ऊठो ऊठो प्रभु श्रीहरि, भक्तन की सुन लो बात,
चार मास का विश्राम पुरा, अब करो शुभात शुभात॥
विष्णुजी उठे लक्ष्मी संग, खीर-पान का भोग लगायो,
भक्तों ने दीप जलायो प्रभु, मंगल गीत सुनायो॥
ऊठो ऊठो प्रभु केशव, नारायण मधुसूदन,
तुलसी संग बियाह करायो, पूरो भक्तों का मन॥
अब जागो विष्णु जगत के स्वामी, जागो जन-जन की आस,
जागे देव, जग जागे धरती, हुआ मंगल प्रकाश॥
भक्त गा रहे हरि नाम, बज रहे शंख-घंटा,
हरि उठे तो उठे संसार, मिटे सब दुख-चिंता॥
भजन का भावार्थ:
यह भजन भक्त और भगवान के मधुर संवाद का प्रतीक है – भक्त भगवान विष्णु को प्रेमपूर्वक जगाते हैं, उन्हें तुलसी-विवाह के लिए आमंत्रित करते हैं और यह प्रार्थना करते हैं कि जैसे ही भगवान जागेंगे, वैसे ही सम्पूर्ण संसार में शुभता, आनंद और धर्म का प्रकाश फैले।
देवउठनी एकादशी व्रत क्यों रखना चाहिए और व्रत के नियम
धर्मग्रंथों में कहा गया है कि देवउठनी एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होकर अपने भक्तों को पापों से मुक्त करते हैं।
पद्मपुराण :“एकादशीं उपवासेन सर्वपापैः प्रमुच्यते।” अर्थात् – जो व्यक्ति एकादशी का व्रत करता है, वह अपने सभी पापों से मुक्त होता है और विष्णुलोक को प्राप्त करता है।
मोक्ष और आत्मशुद्धि के लिए
यह व्रत न केवल भौतिक लाभ देता है, बल्कि आत्मा को भी पवित्र करता है। विष्णुधर्मोत्तरपुराण में लिखा है – “एकादशी व्रतं शुद्धं सर्वपापप्रणाशनम्। मोक्षदं पुण्यदं चापि सर्वलोकसुखावहम्॥” अर्थ – एकादशी व्रत सभी पापों को नष्ट कर मोक्ष, पुण्य और दिव्य आनंद प्रदान करता है।
चातुर्मास की समाप्ति और शुभ कार्यों की शुरुआत के लिए
चातुर्मास (चार महीनों) के दौरान सभी मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृहप्रवेश, यज्ञ आदि निषिद्ध रहते हैं। देवउठनी एकादशी के साथ ही यह निषिद्ध काल समाप्त होता है। इस दिन व्रत रखने से जीवन में नए शुभ कार्यों का आरंभ शुभ माना जाता है।
तुलसी विवाह का धार्मिक लाभ
इस दिन भगवान विष्णु और तुलसी माता का विवाह किया जाता है। जो व्यक्ति देवउठनी एकादशी का व्रत रखता है, वह तुलसी विवाह में भाग लेकर सौभाग्य, वैवाहिक सुख और जीवन में स्थायित्व प्राप्त करता है।
व्रत से मन, शरीर और आत्मा का संतुलन
एकादशी व्रत में उपवास, संयम और ध्यान का अभ्यास किया जाता है, जिससे मानसिक शांति और आत्मिक बल की प्राप्ति होती है।
व्रत रखने से इंद्रियों पर नियंत्रण बढ़ता है और मन भगवान के स्मरण में स्थिर होता है।
व्रत के नियम (एकादशी व्रत विधान): प्रातःकाल स्नान करके भगवान विष्णु के चित्र या शालिग्राम के समक्ष संकल्प करें- “आज कार्तिक शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्ति के लिए उपवास करूँगा। इस व्रत से मैं मन, वाणी, और कर्म से शुद्ध रहूँ।”
व्रत के दिन क्या करें:
स्नान व संकल्प के बाद भगवान विष्णु का पूजन करें। तुलसी-दल अर्पण करें, दीप जलाएँ, धूप और नैवेद्य चढ़ाएँ। पूरे दिन उपवास रखें। यदि पूर्ण उपवास संभव न हो, तो फलाहार (दूध, फल, सूखे मेवे) ग्रहण करें। मौन या नाम-स्मरण में दिन व्यतीत करें। “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का जाप करें। शाम को आरती, भजन और कथा श्रवण करें। रात्रि में विष्णु नाम-संकीर्तन या जागरण करें। अगले दिन द्वादशी को प्रातः पारण (व्रत तोड़ना) करें।
व्रत में जिनसे बचना चाहिए: लहसुन, प्याज, मांसाहार, मद्यपान का सेवन निषिद्ध है। असत्य बोलना, क्रोध करना, दूसरों की निंदा करना या झूठ बोलना वर्जित है। एकादशी के दिन दाँत साफ़ करने के लिए नीम दातून का उपयोग न करें – गंगाजल या तुलसीपत्र से मुख शुद्ध करें।
पारण (व्रत खोलना): व्रत का पारण द्वादशी तिथि के शुभ मुहूर्त में किया जाता है। पहले भगवान विष्णु की आरती कर भोग लगाएँ, फिर तुलसीपत्र ग्रहण कर व्रत समाप्त करें। पारण से पहले किसी ब्राह्मण को अन्न, वस्त्र या फल का दान देना शुभ माना गया है।
व्रत का फल:
- यह व्रत करने से जीवन में सुख, समृद्धि और सौभाग्य की वृद्धि होती है।
- परिवार में शांति, वैवाहिक सौख्य और आरोग्यता आती है।
- मृत्यु के बाद जीव को विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।
शास्त्रों में कहा गया है: “एकादश्यां न भूक्तव्यं सर्वपापप्रणाशनी। उपवासेन हरिं तुष्यति, भक्तिर्मुक्तिं च दायिनी॥” अर्थात् – एकादशी के दिन भोजन न करना ही पापों का नाशक है; उपवास करने से भगवान हरि प्रसन्न होकर भक्ति और मोक्ष दोनों प्रदान करते हैं।
एकादशी के दिन कौन-कौन से पाठ करने चाहिए
देवउठनी एकादशी के दिन केवल उपवास या पूजा ही नहीं, बल्कि श्रवण, पाठ और नामस्मरण का भी विशेष महत्व होता है। शास्त्रों में कहा गया है – “एकादश्यां तु यो धीमान् हरिनामानुकीर्तनम्। पठति वा शृणोति वा, तस्य पुण्यं न वर्ण्यते॥” अर्थात् – “जो व्यक्ति एकादशी के दिन भगवान हरि के नाम का कीर्तन या पाठ करता है, उसका पुण्य अनंत होता है।”
एकादशी का व्रत तब पूर्ण माना जाता है जब दिन भर भक्ति के साथ भगवान विष्णु के नाम, स्तोत्र और पुराण कथाओं का पाठ किया जाए। विशेषकर श्री विष्णु सहस्रनाम, गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र, विष्णु स्तुति और भगवद्गीता का श्रवण इस दिन अत्यंत शुभ माना गया है।
श्री विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र पाठ (सर्वश्रेष्ठ पाठ)
एकादशी के दिन सबसे महत्वपूर्ण और फलदायी पाठ श्री विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र है। यह पाठ महाभारत के अनुशासन पर्व में भी वर्णित है। शास्त्र में कहा गया है -“सहस्रनामं विष्णोः यः पठेच्छ्रद्धयान्वितः।सर्वपापविनिर्मुक्तः विष्णुलोकं स गच्छति॥” अर्थात् – “जो व्यक्ति श्रद्धा से भगवान विष्णु के हजार नामों का पाठ करता है, वह सभी पापों से मुक्त होकर विष्णु धाम को प्राप्त करता है।”
पाठ की विधि: सुबह स्नान के बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा या शालिग्राम के सामने दीपक जलाकर पाठ आरंभ करें। पहले “ध्यान श्लोक” बोलें – “शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं…” इसके बाद श्री विष्णु के 1000 नामों का उच्चारण करें। प्रत्येक नाम पर पुष्प या अक्षत अर्पित करना शुभ माना गया है। इस पाठ से मानसिक शांति, शारीरिक बल और आत्मिक संतुलन प्राप्त होता है। यह न केवल व्रत को पूर्ण करता है बल्कि भक्त के कर्मबंधन को भी शुद्ध करता है।
गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र (मोक्ष और उद्धार का प्रतीक)
देवउठनी एकादशी के दिन दूसरा सबसे महत्वपूर्ण पाठ गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र है, जो श्रीमद्भागवत महापुराण के अष्टम स्कंध में वर्णित है. कथा के अनुसार, गजेन्द्र नामक हाथी एक बार मगरमच्छ के साथ युद्ध में फँस गया और मृत्यु के भय से उसने भगवान विष्णु का आह्वान किया। भक्तिपूर्वक पुकारने पर भगवान विष्णु ने तुरंत प्रकट होकर उसे बचा लिया और मोक्ष प्रदान किया। “ॐ नमो भगवते तस्मै यत एतच्चिदात्मकम्। पुरुषायादिबीजाय पराय परमात्मने॥”
पाठ का अर्थ: यह स्तोत्र बताता है कि जब मनुष्य संकट में भी ईश्वर का स्मरण करता है, तो वह स्वयं भगवान के चरणों में शरण पाता है। एकादशी के दिन इसका पाठ करने से जीवन के संकट और भय दूर होते हैं।
श्रीमद्भगवद्गीता पाठ (ज्ञान और मोक्ष का ग्रंथ)
एकादशी के दिन भगवद्गीता का पाठ भी अत्यंत शुभ माना गया है। इस दिन विशेष रूप से अध्याय 12 (भक्तियोग) और अध्याय 15 (पुरुषोत्तम योग) का पाठ किया जाता है। “यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः। तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम॥” गीता पाठ मन को स्थिर करता है, मोह और संशय से मुक्ति देता है। यह आत्मिक जागरण का सर्वोत्तम साधन है – जो एकादशी का वास्तविक उद्देश्य है।
नारायण कवच (सुरक्षा और शक्ति का पाठ)
देवउठनी एकादशी की रात्रि में नारायण कवच स्तोत्र का पाठ करने से नकारात्मक शक्तियाँ दूर रहती हैं। यह स्तोत्र भागवत पुराण के छठे स्कंध में वर्णित है। इसका पाठ “ओं नमो नारायणाय” मंत्र के साथ किया जाता है। यह कवच आत्मरक्षा और दिव्य शक्ति प्रदान करता है। इसे “भौतिक और आध्यात्मिक सुरक्षा कवच” माना गया है।
विष्णु सहस्रनाम के साथ तुलसी स्तुति और श्रीसूक्त पाठ
तुलसी विवाह या तुलसी पूजन के साथ तुलसी स्तुति और श्रीसूक्त का पाठ किया जाता है। तुलसी स्तुति: “तुलसी श्रीसखा देवी, नमो विष्णुप्रिया सखे।” श्रीसूक्त: लक्ष्मी प्राप्ति और समृद्धि के लिए अत्यंत प्रभावी माना गया है।
अन्य पाठ जो इस दिन करने योग्य हैं:
- हरिवंश पुराण के “विष्णु जागरण प्रसंग” का पाठ।
- नृसिंह कवच स्तोत्र – भय और रोग से मुक्ति के लिए।
- गोविन्दाष्टक / माधवाष्टक – भक्तिभाव के लिए।
- श्रीविष्णु चालीसा – लोक परंपरा में अत्यंत प्रचलित।
- श्रीलहरी / विष्णु सहस्र नामावलि का संकीर्तन।
मंत्र-जप और संकीर्तन:
देवउठनी के दिन निम्न मंत्रों का जप सर्वोत्तम फलदायक है –
1. “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” – 108 बार
2. “ॐ विष्णवे नमः” – 1008 बार
3. “श्री कृष्णाय नमः” – 108 बार
एकादशी के दिन किया गया पाठ केवल वाणी का नहीं, बल्कि मन और आत्मा के संयम का अभ्यास है। विष्णु सहस्रनाम मन को स्थिर करता है, गजेन्द्र मोक्ष श्रद्धा जगाता है, और गीता ज्ञान प्रदान करती है। यह तीनों मिलकर भक्त को भक्ति, ज्ञान और कर्म – तीनों मार्गों में पूर्णता प्रदान करते हैं।
“एकादश्यां पठेद् भक्त्या विष्णोः नामसहस्रकम्।गजेन्द्रमोक्षणं चैव तस्य पुण्यं न वर्ण्यते॥” अर्थ – “जो व्यक्ति एकादशी के दिन विष्णु सहस्रनाम और गजेन्द्रमोक्ष स्तोत्र का पाठ करता है, उसका पुण्य शब्दों से परे है।”
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लड्डू गोपाल की वैजयंती माला : भक्ति, प्रेम और विजय की दिव्य कथा
Disclaimer: यह लेख प्राचीन धर्मग्रंथों, शास्त्रीय संदर्भों और स्थानीय परंपराओं पर आधारित है। इसमें वर्णित ऐतिहासिक, पौराणिक या दार्शनिक प्रसंग जनश्रुतियों और उपलब्ध ग्रंथीय स्रोतों से लिए गए हैं, जिनका उद्देश्य केवल धार्मिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक जानकारी प्रदान करना है। लेखक एवं प्रकाशक किसी विशेष मत, सम्प्रदाय या धार्मिक दृष्टिकोण का समर्थन या प्रचार नहीं करते। यदि प्रस्तुत सामग्री में कोई तथ्यात्मक त्रुटि पाई जाती है, तो कृपया प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध कराएँ – सुधार तत्क्षण कर दिया जाएगा।



