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तमिलनाडु :राज्यपाल पर बिलों को मंजूरी देने में देरी का आरोप का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा

नयी दिल्ली : तमिलनाडु सरकार ने राज्यपाल आर एन रवि पर राज्य विधानमंडल से पारित विधेयकों को मंजूरी देने में देरी का आरोप लगाते हुए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया आया है।राज्य सरकार ने शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर करके दावा किया कि राज्यपाल ने खुद को वैध रूप से चुनी गई सरकार के लिए “राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी” के रूप में पेश किया है।

याचिका में यह निर्देश देने की मांग की कि तमिलनाडु राज्य विधानमंडल द्वारा पारित और अग्रेषित विधेयकों पर सहमति देने के लिए राज्यपाल द्वारा संवैधानिक आदेश का पालन करने में “निष्क्रियता, चूक, देरी और विफलता” और फाइलों, सरकारी आदेशों पर विचार न करना और राज्य सरकार द्वारा उनके हस्ताक्षर के लिए भेजी गई नीतियां “असंवैधानिक, अवैध, मनमानी, अनुचित होने के साथ-साथ सत्ता का दुर्भावनापूर्ण प्रयोग” है।

राज्य सरकार ने कहा कि राज्यपाल की निष्क्रियता ने राज्य के संवैधानिक प्रमुख और राज्य की निर्वाचित सरकार के बीच संवैधानिक गतिरोध पैदा कर दिया है।अपने संवैधानिक कार्यों पर कार्रवाई न करके राज्यपाल नागरिकों के जनादेश के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।राज्य सरकार ने उन सभी बिलों, फाइलों और सरकारी आदेशों के निपटारे के लिए निर्देश देने की भी मांग की गई है, जो एक निर्दिष्ट समय सीमा के भीतर राज्यपाल के कार्यालय में लंबित हैं।

अनुच्छेद 200 के अनुसार, जब किसी राज्य की विधायिका द्वारा पारित विधेयक राज्यपाल के सामने प्रस्तुत किया जाता है, तो उसके पास चार विकल्प होते हैं: (ए) वह विधेयक पर सहमति देता है; (बी) वह सहमति रोकता है; (सी) वह राष्ट्रपति के विचार के लिए विधेयक को सुरक्षित रखता है; या (डी) वह विधेयक को पुनर्विचार के लिए विधायिका को लौटा देता है।

राज्य सरकार ने दोषियों की समयपूर्व रिहाई से संबंधित 54 लंबित फाइलें, अभियोजन की मंजूरी से संबंधित चार फाइलें और 12 विधेयकों को सूचीबद्ध किया, जिनमें नौ जनवरी 2020 से लंबित एक मामला भी शामिल है। (वार्ता)

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