बिना शादी किए सिंगल मदर बनीं भोजपुरी लोकगायिका देवी
देवी पिछले दो दशकों से भोजपुरी लोकसंगीत की लोकप्रिय गायिका हैं। उन्होंने अपने गीतों में कभी भी अश्लीलता या द्विअर्थी शब्दों का प्रयोग नहीं किया। उनके प्रमुख लोकप्रिय गीत में “सजनवा मोरा छुटलें विदेश”, “बिदेसिया”, “ननदी के डोली”, “बेटी जनम लीहो हे बबुआन”, “कवन माटी के बनेला” जैसे लोकगीत शामिल हैं।भिखारी ठाकुर, महेंद्र मिश्र और पद्मश्री शारदा सिन्हा की परंपरा को आगे बढ़ाने वाली गायिकाओं में उनका नाम प्रमुख है।
- IVF के जरिए बेटे को जन्म, साहसिक फैसले से महिला स्वतंत्रता और नारी शक्ति पर नई बहस
पटना। भोजपुरी लोकसंगीत की लोकप्रिय और चर्चित गायिका देवी ने एक ऐसा साहसिक निर्णय लिया है, जिसने समाज को सोचने पर मजबूर कर दिया है। देवी ने बिना शादी किए आधुनिक चिकित्सा पद्धति (IVF) की मदद से सिंगल मदर बनने का फैसला किया और हाल ही में ऋषिकेश एम्स में बेटे को जन्म दिया। माँ और बेटा दोनों स्वस्थ हैं। मूल रूप से बिहार के छपरा जिले की रहने वाली देवी के इस फैसले की सराहना हो रही है। परिवार ने भी इस निर्णय को बेटी की निजी आज़ादी और साहस का प्रतीक बताया है। पिता प्रो. प्रमोद कुमार ने कहा कि “बेटी ने हमेशा समाज को नई राह दिखाई है। यह कदम आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनेगा।”
देवी के इस कदम ने सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दी। तस्वीर सामने आने के बाद लोगों ने सवाल उठाए कि देवी ने कब शादी की और पिता कौन है? इस पर वरिष्ठ पत्रकार अनूप नारायण सिंह ने स्पष्ट किया कि देवी ने विवाह नहीं किया है, बल्कि अपने साहस और इच्छा शक्ति के बल पर यह निर्णय लिया।
गीतों से बनाई पहचान, अब साहस का प्रतीक
पिछले दो दशकों से भोजपुरी लोकगायन को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुँचाने वाली देवी ने कभी भी अश्लील या फूहड़ गीत नहीं गाए। जिस दौर में भोजपुरी संगीत पर अश्लीलता हावी हो रही थी, उस दौर में उन्होंने *“सजनवा मोरा छुटलें विदेश”, “ननदी के डोली”, “बिदेसिया” और “बेटी जनम लीहो हे बबुआन” जैसे गीतों से श्रोताओं का दिल जीता। देवी ने भिखारी ठाकुर और महेंद्र मिश्र की परंपरा को आगे बढ़ाया और पद्मश्री शारदा सिन्हा की तरह भोजपुरी की सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने का काम किया। देश-विदेश में हजारों स्टेज शो कर चुकीं देवी अब सिर्फ लोकगायन की देवी नहीं, बल्कि साहस, नारी शक्ति और आत्मनिर्णय की भी प्रतीक बन गई हैं।
समाज के लिए संदेश
देवी का यह कदम इस संदेश को मजबूत करता है कि महिला की पहचान केवल विवाह और परिवार तक सीमित नहीं है। महिलाएं अपनी शर्तों पर जीवन जीने, फैसले लेने और सपनों को पूरा करने में सक्षम हैं। चाहने वाले इसे महिला स्वतंत्रता और आत्मनिर्णय का सबसे मजबूत उदाहरण मान रहे हैं।
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