भारत इनोवेशन का देश है, जो अपनी नई-नवेली तकनीकों के क्रियान्वन के लिए जाना जाता है। यहां तरह-तरह के क्रिएटिव कार्यों का जन्म हुआ है। बीते 6-7 सालों की बात करें तो भारत पूरे विश्व में स्टार्टअप हब के तौर पर उभरा है। यहां जन्में स्टार्टअप देश के विकास में अहम योगदान दे रहे हैं। इसी कड़ी में, बेंगलुरु के एक स्टार्टअप ब्रीथ एप्लाइड साइंसेज ने कार्बन डाइऑक्साइड को मेथेनॉल एवं अन्य रसायनों में बदलने के लिए एक कुशल उत्प्रेरक एवं कार्यप्रणाली विकसित की है। यह स्टार्टअप जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च द्वारा शुरू किया गया है। वाणिज्यिक समाधान विकसित करने के लिए बेंगलुरु के इस स्टार्टअप को टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट बोर्ड ने वर्ष 2021 का नेशनल अवॉर्ड दिया है।
इस स्टार्टअप ने कोयला एवं प्राकृतिक गैस आधारित सीमेंट उद्योग, बिजली उत्पादन क्षेत्र, इस्पात उद्योग और रसायन उद्योग सहित विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न मानवजनित कार्बन डाइऑक्साइड से रसायन एवं ईंधन के उत्पादन को बढ़ाने और सीसीयूएस (कार्बन कैप्चर, यूटिलाइजेशन एंड सीक्वेस्ट्रेशन) में शामिल विभिन्न घटकों को एकीकृत करने की इंजीनियरिंग प्रक्रिया में सुधार किया है, ताकि ग्लोबल वार्मिंग के कारण पर्यावरण संबंधी समस्याओं के लिए एक पूर्ण समाधान विकसित किया जा सके।
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JNCASR की न्यू केमिस्ट्री यूनिट ने किया शोध
यह शोध JNCASR के न्यू केमिस्ट्री यूनिट के प्रो. सेबेस्टियन सी पीटर और उनके समूह द्वारा किया गया है। वह ब्रीथ एप्लाइड साइंसेज के सह-संस्थापक और डायरेक्टर भी हैं, जिसे डीएसटी नैनो मिशन के वित्त पोषण से शुरू किया गया था। इस स्टार्टअप ने JNCASR के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर भी किए हैं। बताना चाहेंगे कि JNCASR कार्बन डाइऑक्साइड को मेथेनॉल एवं अन्य उपयोगी रसायनों और ईंधन में बदलने के लिए प्रयोगशाला आधारित अनुसंधान के आधार पर प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान है।
इस एमओयू से कार्बन डाइऑक्साइड को उपयोगी रसायन एवं ईंधन में बदलने के लिए अनुसंधान को प्रयोगशाला स्तर से पायलट स्तर में सुचारु तौर पर आगे बढ़ाने में मदद मिली है।
इस विषय में जानकारी देते हुए प्रो. सेबेस्टियन सी पीटर ने बताया, ‘पायलट स्तर पर वर्तमान क्षमता प्रति दिन 300 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड को बदलने की है जिसे औद्योगिक स्तर पर कई 100 टन तक बढ़ाया जा सकता है। औद्योगिक उत्पादन के स्तर तक पहुंचने में अभी कुछ समय लगेगा। कुछ उद्योग हमारी इस तकनीक का जल्द से जल्द संभावित उपयोग करने के लिए ब्रीथ के साथ चर्चा कर रहे हैं।’
क्या है कार्बन कैप्चर टेक्नोलॉजी?
इस टेक्नोलॉजी में कार्बन उत्सर्जन को वातावरण में फैलने से पहले रोका जाता है, ताकि ग्लोबल हीटिंग की समस्या को कम किया जा सके। कार्बन कैप्चर टेक्नोलॉजी में बड़ी फैक्ट्रियों/पावर प्लांट की चिमनियों से कार्बन डाइऑक्साइड को निकलने से रोका जाता है। इसके लिए फैक्ट्री की चिमनी पर सालवेंट फिल्टर लगाया जाता है। इसके बाद इसे स्टोर करके गहराई में इजेक्ट कर दिया जाता है, जहां से जीवाश्म गैस आती है।