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हड़प्पा सभ्यता का पतन सदियों तक चले सूखे के कारण: नया शोध

नयी दिल्ली। हाल ही में प्रकाशित एक शोध में पाया गया है कि विश्व की सर्वप्राचीन और उन्नत सभ्यताओं में शामिल हड़प्पा सभ्यता का पतन अचानक नहीं, बल्कि सदियों तक चले भीषण सूखे और जल संकट का परिणाम था। अध्ययन के अनुसार 4,400 ईसा पूर्व से 3,400 ईसा पूर्व के बीच इस क्षेत्र में लगभग चार बड़े सूखे आये, जिनकी अवधि 85 से 165 वर्ष तक रही। इस दौरान वर्षा में 10–20 प्रतिशत की कमी और तापमान में वृद्धि दर्ज की गई, जिससे नदियों और जल स्रोतों का स्तर तेजी से घटा। पानी की कमी के कारण बड़े शहर खाली होते गए और लोग छोटे क्षेत्रों में बसने को मजबूर हुए।

  • अध्ययन में पाया गया कि 4,400 से 3,400 ईसा पूर्व के बीच लगातार चार लम्बे सूखे ने सभ्यता की नींव कमजोर की

हड़प्पा सभ्यता का पतन अचानक नहीं, बल्कि सदियों तक चले लंबे सूखे के कारण हुआ था। हाल ही में प्रकाशित एक नये शोध पत्र में यह निष्कर्ष सामने आया है। अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा किया गया यह अध्ययन जर्नल कम्युनिकेशंस अर्थ एंड एनवायरनमेंट में प्रकाशित हुआ है। शोध के अनुसार, हड़प्पा या सिंधु घाटी सभ्यता के क्षेत्र में लगभग 4,400 ईसा पूर्व से 3,400 ईसा पूर्व के बीच लगातार चार बड़े सूखे पड़े, जिनकी अवधि 85 वर्ष से लेकर 165 वर्ष तक रही।

शोधकर्ताओं ने प्राचीन जलवायु के साक्ष्यों जैसे झीलों के तलछट, गुफाओं के कैल्शियम संरचनाओं और नदी-प्रवाह के भौगोलिक अभिलेखों का विश्लेषण कर निष्कर्ष निकाला है कि इस लंबे समय तक चलने वाले सूखे ने इस महान सभ्यता के जलस्रोतों को गहराई से प्रभावित किया। अध्ययन के अनुसार, इस दौरान औसत वार्षिक वर्षा में लगभग 10 से 20 प्रतिशत तक की कमी दर्ज की गई, जबकि औसत तापमान करीब 0.9 डिग्री फ़ारेनहाइट बढ़ गया। वर्षा में कमी के साथ नदियों और झीलों का जल प्रवाह लगातार कमजोर होता गया और भूजल स्रोत भी सूखने लगे, जिसका सीधा प्रभाव कृषि, जल प्रबंधन और नगर प्रणाली पर पड़ा।

शोध में कहा गया है कि पानी की उपलब्धता घटने के कारण लोगों को बड़े शहरों से हटकर नदियों और छोटे जलस्रोतों के पास गांवों या छोटे कस्बों में बसना पड़ा। इसके परिणामस्वरूप मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, धोलावीरा जैसे उन्नत शहरी केंद्र धीरे-धीरे खाली होते गए। कृषि उत्पादन में गिरावट, व्यापार में कमी और संसाधनों का संकट ने सामाजिक-आर्थिक ढांचे को कमजोर कर दिया और अंततः सभ्यता का शहर-आधारित स्वरूप टूट गया।

अध्ययन यह भी संकेत देता है कि हड़प्पा सभ्यता का अंत किसी अचानक आपदा, युद्ध या बड़े भू-कंपन से नहीं हुआ, बल्कि यह परिवर्तन धीमी और क्रमबद्ध प्रक्रिया का परिणाम था। सभ्यता समाप्त नहीं हुई, बल्कि उसका स्वरूप बदल गया और आबादी नए क्षेत्रों में पुनर्गठित रूप से बस गई।

विशेषज्ञों के अनुसार, यह शोध आधुनिक समय में भी महत्वपूर्ण संदेश देता है कि जलवायु परिवर्तन और जलसंकट किसी भी समाज या सभ्यता के अस्तित्व के लिए गंभीर चुनौती बन सकते हैं। आज जब दुनिया जलवायु संकट और अस्थिर मानसून परिस्थितियों से जूझ रही है, हड़प्पा का इतिहास चेतावनी के रूप में सामने आता है कि जल का संतुलन और पर्यावरणीय स्थिरता सभ्यताओं की जीवनरेखा है।

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