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फिसलती अलीनगर सीट पर चमक सकती है ‘मैथिली’ की जीत की धुन, BJP के लिए संभावनाओं का नया सुर

बिहार की राजनीति में इस बार सुरों की नई गूंज सुनाई दे रही है। दरभंगा की अलीनगर विधानसभा सीट पर लोकगायिका मैथिली ठाकुर का नाम संभावनाओं के केंद्र में है। मिथिला की संस्कृति को पूरे देश में नई पहचान देने वाली मैथिली अब सियासत में उतर सकती हैं। भाजपा के लिए यह चेहरा नारी शक्ति, संस्कृति और जनभावना का संगम बन सकता है।राजद के जातीय समीकरणों के बीच अगर भाजपा ‘मैथिली कार्ड’ खेलती है, तो पूरा समीकरण बदल सकता है।यह चुनाव केवल राजनीति का नहीं, बल्कि संस्कृति बनाम समीकरण की जंग होगी - जब मिथिला की आवाज़ विधानसभा की ओर बढ़ेगी।

  • मिथिला की बेटी अगर मैदान में उतरी, तो बदल सकता है सियासत का सुर; जातीय गणित पर भारी पड़ सकता है भावनात्मक जुड़ाव

पटना : बिहार की राजनीति इस बार गीतों और भावनाओं की पगडंडी पर चलने को तैयार दिख रही है। दरभंगा जिले की अलीनगर विधानसभा सीट, जो अब तक राजद की पारंपरिक पकड़ मानी जाती थी, धीरे-धीरे भाजपा के लिए संभावनाओं की नई ज़मीन बनती जा रही है। इस परिवर्तन की धुरी बनकर उभर रहा है एक ऐसा नाम, जो राजनीति से नहीं बल्कि संस्कृति और भावना से जन्मा है – मैथिली ठाकुर। यह वही नाम है जिसने अपने सुरों से मिथिला की मिट्टी की महक को न सिर्फ बिहार में, बल्कि पूरे देश और दुनिया में पहुंचाया है। अब वही स्वर सियासत के मैदान में गूंजने की संभावना पैदा कर रहा है।

संगीत की साधना से जनभावना तक : मिथिला की बेटी का सफर

दरभंगा जिले के बेनिपट्टी प्रखंड के घनश्यामपुर थाना क्षेत्र के बिकुली गांव में जन्मी मैथिली ठाकुर का जीवन किसी लोकगाथा से कम नहीं। यह उस बेटी की कहानी है, जिसने गरीबी, संघर्ष और सामाजिक सीमाओं के बीच अपनी कला को साधा और आज ‘मिथिला गौरव’ कहलाती है। उनके पिता राम अवतार ठाकुर, एक शास्त्रीय संगीत शिक्षक हैं जिन्होंने अपने परिवार को ही एक संगीत विद्यालय में बदल दिया। पिता गुरु बने, और तीनों बच्चे – मैथिली, ऋषव और आयाची – उनके शिष्य। घर के आँगन से निकले सुरों ने दरभंगा की गलियों को गुंजा दिया।

मैथिली की माँ भावना ठाकुर ने इस पूरे सफर में मौन सहारा बनकर परिवार को वह स्थिरता दी जिसने मैथिली को मंच तक पहुँचाया। वे कहती हैं – “हमारी बेटी ने जो हासिल किया, वह न हमारे सपनों में था, न हमारी क्षमता में। यह ईश्वर का आशीर्वाद है।”यह परिवार अब सोशल मीडिया पर “ठाकुर परिवार ऑफ मिथिला” के नाम से प्रसिद्ध है। तीनों भाई-बहन एक साथ जब गाते हैं, तो वह सिर्फ संगीत नहीं होता, बल्कि संस्कृति का जीवंत रूप होता है।

बचपन में जब मैथिली ने अपने गांव के स्कूल में पहली बार भजन गाया था, तब किसी ने नहीं सोचा था कि यही स्वर एक दिन बिहार की पहचान बन जाएगा। उस दिन से लेकर आज तक, मैथिली का सफर एक साधक का रहा है, जिसने लोकधुनों में भक्ति और संस्कृति का संगम गूंथा है।

राइजिंग स्टार से राष्ट्रीय पहचान तक : सुरों की वह पुकार जिसने मिथिला को फिर जगाया

साल 2017 में कलर्स टीवी के शो “राइजिंग स्टार” ने मैथिली ठाकुर को पूरे भारत के सामने प्रस्तुत किया। मंच पर जब उन्होंने ‘ओ पालनहारे’ गाया, तो जजों से लेकर दर्शक तक सन्न रह गए। उनकी आवाज़ में शास्त्रीयता थी, भक्ति की गहराई थी, और लोकधुनों की आत्मा। वे फाइनल तक पहुंचीं, पर जीत से ज़्यादा उन्हें देश की पहचान मिली। सोशल मीडिया पर उनके वीडियो वायरल होने लगे। लाखों लोगों ने पहली बार सुना कि मैथिली भाषा में गाए जाने वाले विद्यापति पद कितने मधुर हो सकते हैं।

आज मैथिली ठाकुर के यूट्यूब चैनल पर करोड़ों व्यूज़ हैं। वे रामचरितमानस, हनुमान चालीसा, दुर्गा सप्तशती और संस्कृत के श्लोकों को अपने स्वर में गाकर लोगों तक भक्ति की एक नई भाषा पहुँचाती हैं। उनके कार्यक्रमों में लोग सिर्फ श्रोता नहीं, श्रद्धालु बनकर आते हैं। यही कारण है कि मिथिला क्षेत्र में मैथिली ठाकुर को अब केवल कलाकार नहीं, *“घर-घर की बेटी” कहा जाता है।

अलीनगर का समीकरण : राजनीति के गणित में भावनाओं का नया तत्व

अलीनगर विधानसभा सीट, दरभंगा जिले का वह क्षेत्र है जहाँ जातीय और सामाजिक संतुलन हर चुनाव का केंद्र रहा है। यहाँ यादव, मुस्लिम, ब्राह्मण, कायस्थ, राजपूत और पिछड़ी जातियाँ मिलकर राजनीतिक दिशा तय करती हैं। पिछले दो दशकों में इस सीट पर कभी राजद, कभी जदयू, तो कभी भाजपा ने अपना झंडा लहराया। लेकिन 2020 के विधानसभा चुनावों में यह सीट ‘फिसलती’ कही गई – अंतर मामूली था, और मतदाताओं का मूड अस्थिर। इस इलाके के राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि अब जातीय गणित अपनी सीमा पर पहुँच चुका है। लोग भावनात्मक जुड़ाव चाहते हैं, और किसी ऐसे चेहरे की तलाश में हैं जो “अपना” लगे। ऐसे में अगर भाजपा मैथिली ठाकुर को अलीनगर से उम्मीदवार बनाती है, तो वह जातीय राजनीति से ऊपर उठकर भावनात्मक राजनीति की शुरुआत हो सकती है।

सियासी सुरों का नया आरोह : भाजपा की रणनीति और मिथिला का मन

राजनीति में चेहरा ही संदेश होता है, और मैथिली ठाकुर के रूप में भाजपा को एक ऐसा चेहरा मिल सकता है जो मिथिला की आत्मा से जुड़ा है। वे न केवल संस्कृति और नारी शक्ति की प्रतीक हैं, बल्कि भाजपा की वैचारिक पंक्ति – “सबका साथ, सबका विकास” – की सांस्कृतिक प्रतिध्वनि भी हैं। पार्टी सूत्रों के अनुसार, दरभंगा में संगठन मैथिली ठाकुर के नाम पर गंभीरता से विचार कर रहा है। प्रदेश भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के शब्दों में, “अगर मैथिली मैदान में आती हैं तो अलीनगर ही नहीं, पूरा मिथिला भावनात्मक रूप से भाजपा के साथ खड़ा हो जाएगा।” उनका नाम भाजपा के प्रचार अभियानों में भी देखा जा सकता है। उनका संगीत, उनकी मातृभाषा और उनका व्यवहार – सब कुछ ऐसा है जो सामान्य मतदाता को आकर्षित करता है। वे राजनीति की नई भाषा बन सकती हैं — जहां धर्म और संस्कृति के बीच संवाद हो, टकराव नहीं।

राजद के सामने मुश्किल समीकरण

दूसरी ओर राजद की स्थिति उतनी सहज नहीं है। वर्तमान विधायक मिश्री लाल यादव के कार्यकाल को लेकर स्थानीय स्तर पर असंतोष की फुसफुसाहट है। राजद अब एक नए ब्राह्मण चेहरे को मैदान में उतारने पर विचार कर रहा है, ताकि जातीय संतुलन साधा जा सके। लेकिन यदि भाजपा मैथिली ठाकुर जैसे लोकप्रिय और अपराजनीतिक चेहरे को सामने लाती है, तो राजद का पूरा समीकरण बिखर सकता है। राजद नेताओं को यह भी डर है कि मैथिली ठाकुर जैसे उम्मीदवार से वह वर्ग भी मतदान के प्रति उत्साहित होगा, जो आम तौर पर निष्क्रिय रहता है – खासकर महिलाएँ, युवा और प्रथम-मतदाता वर्ग।
यह बदलाव बिहार की राजनीति में एक “सांस्कृतिक लहर” के रूप में देखा जा सकता है।

मैथिली ठाकुर : परंपरा, नारी शक्ति और आधुनिक मिथिला की पहचान

मैथिली ठाकुर का जीवन दर्शन अद्भुत है। वे कहती हैं -“संगीत ने मुझे सब कुछ दिया, अब मैं समाज को कुछ लौटाना चाहती हूँ। मिथिला की बेटी होने का अर्थ सिर्फ गाना नहीं, बल्कि उसकी पीड़ा को समझना भी है।” उनकी मां भावना ठाकुर कहती हैं कि मैथिली का हर सुर माँ जानकी की धरती के लिए समर्पित है। पिता राम अवतार ठाकुर के अनुसार, “बिहार से जो लोग पलायन कर गए, उन्हें अब लौटने की उम्मीद तब ही जगेगी जब कोई अपनी मिट्टी से संवाद करे – और मैथिली वही कर रही है।”

यह परिवार बिहार के पलायन, बेरोज़गारी और सांस्कृतिक ह्रास से दुखी रहा है। मैथिली के पिता ने हाल में कहा कि उन्होंने 1995 में बिहार छोड़ा था क्योंकि उस समय जातीय संघर्ष बढ़ रहे थे। अब वे चाहते हैं कि बिहार बदलते युग में अपनी पहचान फिर पाए। उनका यह कथन अपने आप में राजनीतिक है – और शायद यही वह बीज है, जिससे राजनीति की नई कहानी शुरू हो सकती है।

मैथिली ठाकुर की टिप्पणी : संस्कृति और समाज का संवाद

मीडिया से बातचीत में मैथिली ठाकुर ने स्पष्ट कहा कि भाजपा उनके लिए हमेशा पसंदीदा रही है। उन्होंने कहा, “मैं राजनीति में नहीं, संवाद में विश्वास करती हूँ। भाजपा ने हमेशा संस्कृति और विकास की बात की है। अगर मुझे मौका मिला तो मैं गांव की बेटी बनकर काम करूंगी।” जब उनसे पूछा गया कि क्या वे वास्तव में चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं, तो उन्होंने मुस्कराकर कहा -“मैं तैयार तो हूँ, लेकिन घोषणा पार्टी करेगी। अभी तो मैं बिहार लौटने के विचार से ही उत्साहित हूँ।”उनके इस बयान ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है।भाजपा के युवा मोर्चा और महिला मोर्चा दोनों ने सोशल मीडिया पर उनका समर्थन शुरू कर दिया है।
इसी बीच उनके पिता ने कहा – “मैथिली अगर राजनीति में आती हैं, तो यह मिथिला के सम्मान की बात होगी। भाजपा को मिथिला से मजबूत जुड़ाव चाहिए, और उससे बेहतर चेहरा कोई नहीं।”

एनडीए के समीकरण में संभावित लाभ

एनडीए के रणनीतिकार मानते हैं कि मिथिला क्षेत्र बिहार की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाता है। दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, सीतामढ़ी और सुपौल – इन जिलों में कुल 40 से अधिक विधानसभा सीटें हैं। यदि इनमें से 10–12 सीटों पर सांस्कृतिक लहर का असर दिखता है, तो यह पूरे बिहार में भाजपा-जदयू गठबंधन को निर्णायक बढ़त दिला सकता है। मैथिली ठाकुर इस समीकरण का केंद्र बन सकती हैं। उनकी लोकप्रियता सीमाओं से परे है। नेपाल तक उनके गीत सुने जाते हैं।अगर भाजपा उन्हें टिकट देती है, तो प्रचार अभियान में संगीत, संस्कृति और महिला शक्ति की थीम प्रमुख बन सकती है। पार्टी के रणनीतिक सूत्रों का मानना है कि “मिथिला कार्ड” से भाजपा को वैसा ही फायदा मिल सकता है जैसा कभी स्मृति ईरानी को अमेठी में मिला था -एक ऐसी उम्मीदवार जिसने भावनाओं से राजनीति का पाठ बदला।

सोशल मीडिया और जनसम्पर्क : नया राजनीतिक मॉडल

मैथिली ठाकुर के पास सोशल मीडिया पर करोड़ों श्रोता हैं। उनके यूट्यूब चैनल पर हर वीडियो लाखों व्यूज़ पाता है, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर उनकी फॉलोइंग अभूतपूर्व है। यह डिजिटल युग में भाजपा के लिए सबसे बड़ी पूंजी साबित हो सकती है। भाजपा के आईटी सेल के एक पदाधिकारी ने कहा – “अगर मैथिली हमारे साथ आती हैं, तो हमें किसी बाहरी प्रचारक की जरूरत नहीं होगी। उनका एक गीत हमारे लिए दस रैलियों से ज़्यादा असरदार होगा।” दरभंगा विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर कहते हैं कि मैथिली ठाकुर एक ऐसी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करती हैं जो राजनीति में शुद्धता और भावनात्मकता देखना चाहती है। उनका राजनीति में प्रवेश मिथिला में सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक बन सकता है।

संस्कृति से सियासत तक – नई दिशा का आरंभ

अलीनगर का चुनाव अगर मैथिली ठाकुर के नाम पर केंद्रित हुआ, तो यह केवल सीट का संघर्ष नहीं रहेगा। यह संस्कृति बनाम समीकरण की लड़ाई होगी।राजद जहाँ परंपरागत जातीय समीकरणों में उलझा हुआ है, वहीं भाजपा भावनात्मक कार्ड खेलने की तैयारी में है।मैथिली ठाकुर की एंट्री इस बात की शुरुआत हो सकती है कि अब बिहार की राजनीति केवल जाति और धर्म के बीच नहीं, बल्कि संस्कृति और संवेदना के बीच तय होगी। वह बिहार की उस नई पीढ़ी की प्रतीक हैं जो गाँव से जुड़ी है, लेकिन दुनिया की धड़कन से तालमेल रखती है।अगर भाजपा उन्हें टिकट देती है, तो यह मिथिला की राजनीति का सबसे भावनात्मक पल होगा – जब एक लोकगायिका, जो देवी गीतों में जननी की महिमा गाती है, जनता की आवाज़ बनकर विधानसभा की ओर बढ़ेगी। यह जीत सिर्फ अलीनगर की नहीं होगी, बल्कि उस मिथिला की होगी जिसने सदी-सदी से भारत की संस्कृति को स्वर दिया है।

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