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युवा आक्रोश – “Gen Z बनाम Nepo Kids” और नेपाल का भूचाल

  • सोशल-मीडिया प्रतिबंध और #NepoKids ने सड़कों पर युवा आक्रोश को भड़काया
  • नेपोटिज्म और भ्रष्टाचार के प्रतीक बने नेताओं के बच्चे — गुस्से की ज्वाला
  • जनरेशन-Z की माँग: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, जवाबदेही और अवसर
  • लोकतंत्र के बावजूद भ्रष्टाचार के मामले और धीमी कार्रवाई ने भरोसा तोड़ा

नेपाल सितंबर 2025 में अचानक उस राजनीतिक-भूचाल का केंद्र बन गया, जिसकी जड़ें वर्षों से सुलग रही थीं। सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अस्थायी प्रतिबंध लगाकर यह तर्क दिया कि इससे गलत जानकारी और अफवाहें रोकी जा सकेंगी। लेकिन यह कदम उल्टा साबित हुआ—युवा पीढ़ी, खासकर Gen Z, ने इसे अपनी अभिव्यक्ति पर हमला माना। उसी समय #NepoKids और #NepoBabies जैसे हैशटैग ने आग में घी का काम किया। इन पोस्टों में नेताओं और उच्च पदाधिकारियों के बच्चों की विलासी जीवनशैली उजागर हुई—लक्ज़री कारों से लेकर विदेशी शिक्षा और महंगे ब्रांड तक। यह सब उस देश में, जहाँ युवाओं को बेरोज़गारी, महंगाई और सीमित अवसरों से जूझना पड़ रहा है।

नतीजा यह हुआ कि सोशल मीडिया का आक्रोश कुछ ही दिनों में सड़कों पर उतर आया। काठमांडू से लेकर कर्णाली तक विरोध प्रदर्शन फैल गए। छात्र, नौकरी की तलाश में भटकते युवा, छोटे व्यापारी और डिजिटल एक्टिविस्ट सब मिलकर एक ऐसी भीड़ बन गए जिसने सरकार की चूलें हिला दीं। आंदोलन ने भ्रष्टाचार और नेपोटिज्म के खिलाफ वर्षों से दबे असंतोष को स्वर दिया। इसमें कोई औपचारिक नेता नहीं था, लेकिन काठमांडू के लोकप्रिय मेयर जैसे कुछ चेहरे युवाओं की आवाज़ के साथ खड़े दिखाई दिए। पुलिस और सुरक्षा बलों से झड़पें हुईं, सरकारी भवनों में आगजनी हुई, सैकड़ों लोग घायल हुए और अंततः प्रधानमंत्री को इस्तीफ़ा देना पड़ा।

यह कहानी केवल सोशल मीडिया बैन या किसी एक हैशटैग की नहीं है—यह दशकों से जमा हुई समस्याओं का विस्फोट है: भ्रष्टाचार, राजनीतिक परिवारों की बंद व्यवस्था, बेरोज़गारी और पारदर्शिता की कमी। सवाल अब यह है कि क्या नेपाल इस युवा आक्रोश को स्थायी सुधारों में बदल पाएगा, या यह सिर्फ एक और अस्थायी आंदोलन बनकर रह जाएगा।

1) आग की शुरुआत: सोशल मीडिया पर ताला और आक्रोश का विस्फोट

जब सरकार ने अचानक फेसबुक, इंस्टाग्राम, टिक-टॉक जैसे प्लेटफॉर्म्स को बंद किया, तो यह निर्णय युवाओं के लिए सीधा हमला लगा। यह वही प्लेटफॉर्म थे, जिन पर वे अपनी आवाज़ बुलंद करते थे और जिनसे वे सामाजिक-राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बनते थे। उसी समय #NepoKids और #NepoBabies ट्रेंड ने नेताओं के बच्चों की चमचमाती तस्वीरें और वीडियो वायरल कर दिए। लक्ज़री कारों, विदेशी छुट्टियों और महंगे गैजेट्स की तस्वीरें देखना उन युवाओं के लिए असहनीय हो गया जो रोज़मर्रा की जिंदगी में अवसरों की कमी, बेरोज़गारी और महंगाई से जूझ रहे थे। सोशल मीडिया की यह चिंगारी जल्द ही गली-मोहल्लों और विश्वविद्यालय परिसरों तक पहुंच गई।

2) Nepo Kids मुहिम: शब्द से आंदोलन तक

“Nepo Kid” या “Nepo Baby” शब्द पश्चिम से आया था, लेकिन नेपाल में यह गुस्से का हथियार बन गया।
इस मुहिम के तीन मुख्य उद्देश्य रहे:

  • राजनीतिक परिवारों के बच्चों की विशेष सुविधाओं और अवसरों पर सवाल।
  • भ्रष्टाचार और संसाधनों के दुरुपयोग का खुलासा।
  • जवाबदेही और पारदर्शिता की मांग।

नेताओं के बच्चों की विदेशी शिक्षा, आलीशान मकानों और अंतरराष्ट्रीय जीवनशैली की तुलना आम युवाओं के संघर्ष से की गई। इस विरोध ने तेजी से समर्थन पाया और आंदोलन की मुख्य धुरी बन गया।

3) किन्हें निशाना बनाया गया?

ऑनलाइन अभियानों में कई वरिष्ठ नेताओं और प्रभावशाली परिवारों के बच्चों की चर्चा हुई। हालांकि विश्वसनीय स्रोत प्रायः नाम नहीं बताते और सामान्य शब्द जैसे “वरिष्ठ राजनीतिक परिवार” या “मंत्रियों के परिजन” इस्तेमाल करते हैं। व्यक्तिगत जीवन और नाबालिग बच्चों की सुरक्षा को देखते हुए नाम सामने न आना ही उचित माना गया। लेकिन इतना साफ है कि जनता की नाराज़गी का केंद्र वे परिवार बने जो लंबे समय से सत्ता के लाभ भोग रहे थे और जिनकी संपन्नता जनता की गरीबी से तीव्र विरोधाभास पैदा करती थी।

4) Gen Z: नई पीढ़ी का गुस्सा और नई राजनीति

Gen Z यानी 1997 से 2012 के बीच जन्मे लोग। ये डिजिटल नेटिव हैं, जिनकी ज़िंदगी इंटरनेट से जुड़ी है।

इनकी विशेषताएँ हैं: तेज़ सूचना प्रवाह, हैशटैग से एकजुट होना और त्वरित प्रतिक्रिया देना।
ये सिर्फ उपभोक्ता नहीं, बल्कि कंटेंट क्रिएटर, छोटे उद्यमी और बदलाव की आवाज़ भी हैं।

Gen Z ने आंदोलन को तीन तरह से बदला:

1. डिजिटल विस्फोट: छोटे वीडियो और वायरल पोस्ट से आंदोलन को राष्ट्रीय विमर्श बना दिया।
2. ऑनलाइन से ऑफलाइन: सोशल मीडिया पर जुटी भीड़ सड़कों पर उतरी।
3. सीधी मांगें: अवसर, पारदर्शिता और अभिव्यक्ति की आज़ादी—बिना किसी राजनीतिक दल के बैनर के।

5) नेतृत्व और आंदोलन का ढाँचा

आंदोलन का कोई औपचारिक नेता नहीं था। यह स्वस्फूर्त और विकेन्द्रित था।

छात्र संगठन, सोशल मीडिया एक्टिविस्ट और आम युवा इसका चेहरा बने।
काठमांडू के मेयर बलेंद्र शाह जैसे कुछ लोकप्रिय नेता युवाओं के साथ खड़े नज़र आए, जिससे आंदोलन को अतिरिक्त ऊर्जा मिली।

सरकार ने सुरक्षा बल तैनात किए, कर्फ्यू लगाया और कठोर कदम उठाए। लेकिन युवाओं की जिद ने व्यवस्था को झुका दिया और प्रधानमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा।

6) नेपाल में भ्रष्टाचार: जड़ों तक फैला संकट

नेपाल लंबे समय से भ्रष्टाचार से जूझ रहा है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्टों में देश की स्थिति निचले स्तर पर रही है।

कुछ प्रमुख मामले:

  • स्टांप टैक्स घोटाला।
  • सहकारी समितियों से जुड़े बड़े घोटाले।
  • सड़क और पुल निर्माण में निविदा घोटाले।
  • वीज़ा और प्रवासन से जुड़े फर्जीवाड़े।

इन मामलों पर कार्रवाई धीमी रही, जिससे जनता का भरोसा टूटा। लोकतांत्रिक सरकार बनने के बावजूद बड़े मामले लटके रहे और जन-आक्रोश बढ़ता गया।

7) आंदोलन का स्वरूप: शांति से हिंसा तक

शुरुआत में धरना और मार्च शांतिपूर्ण रहे। लेकिन जैसे-जैसे दमन बढ़ा, आंदोलन हिंसक रूप लेने लगा।

  • सरकारी और निजी भवनों में आगजनी।
  • पुलिस और प्रदर्शनकारियों में भिड़ंत।
  • सैकड़ों घायल और कई गिरफ्तार।

इन घटनाओं ने दिखाया कि आक्रोश कितना गहरा है और इसे दबाना आसान नहीं।

8) भविष्य की तस्वीर: रास्ता कौन सा?

नेपाल दोराहे पर खड़ा है।

संभावनाएँ:

  • यदि पारदर्शिता और जवाबदेही लागू हुई तो राजनीतिक संस्कृति में स्थायी सुधार संभव है।
  • Gen Z की सक्रिय भागीदारी से नई राजनीतिक ताकत उभर सकती है।

जोखिम:

  • अगर सुधार न हुए तो अस्थिरता बनी रहेगी।
  • बार-बार सोशल मीडिया बैन जैसे कदम सरकार और युवाओं के बीच खाई बढ़ाएंगे।
  • निवेश और अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा।

यह आंदोलन केवल एक हैशटैग या बैन का विरोध नहीं था। यह युवाओं की दशकों से दबाई गई नाराज़गी का विस्फोट था। अब नेपाल का भविष्य इस पर निर्भर करेगा कि क्या सत्ता-प्रतिष्ठान सचमुच बदलाव लाने को तैयार है या इतिहास खुद को दोहराएगा।

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