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“भोजपुरी फिल्मों के पोस्टर और प्रचार में फूहड़ता: सिनेमा की साख पर धब्बा”

अश्लील पोस्टरों से बच्चों तक पर बुरा असर .थंबनेल में भड़काऊ दृश्य, फिल्मों से पहले ही छवि खराब .प्रचार का तरीका बना भोजपुरी सिनेमा की गिरावट का कारण.

भोजपुरी सिनेमा की बदनामी का एक बड़ा कारण सिर्फ फिल्में या गाने ही नहीं, बल्कि उनके **पोस्टर और प्रचार सामग्री** भी हैं। सड़क किनारे लगने वाले पोस्टरों से लेकर यूट्यूब थंबनेल तक, हर जगह अश्लीलता का ऐसा तड़का लगाया जा रहा है, जिससे पूरा समाज असहज हो उठता है।

कभी हिंदी और भोजपुरी फिल्मों के पोस्टरों में हीरो-हीरोइन हाथ पकड़ते या साथ खड़े दिख जाते थे। पृष्ठभूमि में मंदिर, खेत-खलिहान या नदिया किनारे का दृश्य होता था। लेकिन आज हालत यह है कि आधे कपड़ों में नाचती हुई अभिनेत्रियाँ और गले से लटकते हीरो पोस्टरों की पहचान बन गए हैं।

गाँव के चौपाल से लेकर शहर की गली तक, जहाँ-जहाँ ये पोस्टर चिपकाए जाते हैं, वहाँ से गुजरते समय माँ-बेटियाँ नजरें झुका लेती हैं। बच्चे उत्सुकता से पूछते हैं—*“ये क्या है?” और परिवार शर्मिंदगी से चुप रह जाता है।

प्रचार का यही तरीका भोजपुरी सिनेमा की साख को लगातार गिरा रहा है। यूट्यूब और सोशल मीडिया ने इसे और भी खतरनाक बना दिया है। अब तो फिल्म आने से पहले ही थंबनेल और पोस्टर देखकर लोग निष्कर्ष निकाल लेते हैं कि यह फिल्म **देखने लायक नहीं है।**

पोस्टर का बदलता इतिहास

1960–80 का दौर: पोस्टरों में धार्मिक आस्था, पारिवारिक भावनाएँ और गाँव की झलक होती थी। जैसे गंगा मईया तोहे पियरी चढ़ाइबो का पोस्टर – एक साधारण लेकिन पवित्र चित्र।

90 का दशक: फिल्मों की गिरती रफ्तार के साथ पोस्टर भी कमजोर हुए, लेकिन अश्लीलता तब तक दूर थी।

2004 के बाद: पुनर्जागरण के साथ फिल्मों की बाढ़ आई। निर्माता–निर्देशक प्रचार में ध्यान देने लगे, लेकिन व्यावसायिक होड़ में अश्लीलता घुस आई।

प्रचार का नया हथियार: फूहड़पन

फिल्म रिलीज़ होने से पहले ही पोस्टर और ट्रेलर में भड़काऊ दृश्य डाल दिए जाते हैं।
थंबनेल पर हीरोइन की अर्धनग्न तस्वीर लगाकर दर्शकों को खींचने की कोशिश होती है।
संवादों के छोटे-छोटे कट्स डालकर यूट्यूब पर “मसाला” परोसा जाता है।

नतीजा यह कि फिल्म के विषय से पहले उसकी अश्लील छवि लोगों तक पहुँच जाती है।

बच्चों और समाज पर असर

स्कूल जाने वाले बच्चे पोस्टर देखकर गाने गुनगुनाने लगते हैं।
गाँव की चौपालों पर खड़े होकर युवा इन्हें चर्चा का विषय बना लेते हैं।
बुजुर्ग कहते हैं—“ऐसे पोस्टर तो हम अपने समय में सोच भी नहीं सकते थे।”

देवरिया के पत्रकार मनोज मध्यदेशिया का कहना है— “भोजपुरी फिल्म का पोस्टर अब परिवार के सामने लगाना शर्म की बात है। इससे बड़ी त्रासदी और क्या होगी?”

यूट्यूब थंबनेल की गंदगी

यूट्यूब थंबनेल पर अभिनेत्रियों को भड़काऊ पोज़ में दिखाया जाता है।
शीर्षक में दोअर्थी शब्द होते हैं।
कभी-कभी थंबनेल पर दिखाए गए दृश्य फिल्म में होते भी नहीं, सिर्फ दर्शकों को क्लिक कराने के लिए बनाए जाते हैं।

यह झूठा प्रचार इंडस्ट्री को और गिराता है।

कलाकारों की छवि पर असर

कई अभिनेत्रियों ने साफ कहा है कि वे अश्लील पोस्टरों से परेशान हैं।
उनकी छवि सिर्फ “आइटम गर्ल” तक सीमित कर दी जाती है।
गंभीर कलाकार भी इसी भीड़ में दब जाते हैं।

निर्माता-निर्देशक की मानसिकता

उनका मानना है कि अश्लील पोस्टर और थंबनेल से ज्यादा दर्शक आएंगे।
लेकिन यह अल्पकालिक लाभ है।
दीर्घकाल में इससे इंडस्ट्री की छवि ध्वस्त हो रही है।

बॉक्स आइटम – कानून की कमजोरी

पोस्टरों पर सेंसर बोर्ड का कोई नियंत्रण नहीं।
यूट्यूब थंबनेल पर भी कोई रोक नहीं।
प्रशासन को शिकायत मिलती है, लेकिन कार्रवाई नगण्य रहती है।

क्या किया जा सकता है?

प्रचार सामग्री पर कड़ा नियंत्रण।
अश्लील पोस्टर लगाने वालों पर दंड।
साफ-सुथरे पोस्टरों को बढ़ावा।
समाज को अश्लील प्रचार का बहिष्कार करना होगा।

भोजपुरी फिल्मों की छवि सिर्फ फिल्मों से नहीं, बल्कि प्रचार सामग्री से भी बनती है। जब पोस्टरों और थंबनेल में ही अश्लीलता होगी, तो फिल्म की छवि कौन बचाएगा?

भोजपुरी इंडस्ट्री को अगर वाकई बचाना है तो सबसे पहले प्रचार के इस गंदे खेल पर रोक लगानी होगी।

“भोजपुरी सिनेमा बचाओ” मुहिम का तीसरा दिन इसी चेतावनी के नाम—“पोस्टर और प्रचार में साफ-सुथरी छवि लौटाइए।”

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