National

नेपाल: राजशाही से लोकतंत्र और अब भ्रष्टाचार-अराजकता, भविष्य किस ओर?

राजशाही से लोकतंत्र का सफ़र – 2008 में राजशाही समाप्त कर गणतंत्र की स्थापना हुई। प्रधानमंत्रियों का पलटाव – 17 साल में 13 से ज़्यादा प्रधानमंत्री बदल चुके। हिन्दू राष्ट्र की मांग – सड़कों पर फिर उठी नेपाल को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने की आवाज़। नेपाल का भविष्य और चीन की भूमिका – अस्थिरता का लाभ पड़ोसी चीन और भारत दोनों उठाना चाहेंगे।

काठमांडू। नेपाल एक बार फिर राजनीतिक उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है। सोशल मीडिया प्रतिबंध और भ्रष्टाचार विरोधी प्रदर्शनों ने हिंसक रूप ले लिया, जिसके बीच प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली और राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल दोनों को पद छोड़ना पड़ा। सवाल उठ रहा है — क्या नेपाल की लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थिरता दे पाएगी, या जनता राजशाही और हिन्दू राष्ट्र की वापसी की ओर झुक जाएगी?

राजशाही से लोकतंत्र तक

नेपाल में सदियों तक राजशाही व्यवस्था कायम रही। 2006 के जनआंदोलन और माओवादी विद्रोह के दबाव में 2008 में राजशाही समाप्त कर नेपाल को गणतंत्र और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया। जनता को उम्मीद थी कि लोकतंत्र स्थिरता और विकास लाएगा, लेकिन हकीकत उलट साबित हुई।

बार-बार बदलते प्रधानमंत्री

2008 से अब तक नेपाल में 13 से अधिक प्रधानमंत्री बदल चुके हैं। किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने और गठबंधन टूटने की वजह से सरकारें टिकाऊ नहीं हो पाईं।

टाइमलाइन: 2008 के बाद के प्रधानमंत्री

पुष्प कमल दाहाल ‘प्रचंड’ (2008–2009)
माधव कुमार नेपाल (2009–2011)
झलनाथ खनाल (2011)
बाबुराम भट्टराई (2011–2013)
खिल राज रेग्मी (अंतरिम, 2013–2014)
सुशील कोईराला (2014–2015)
के.पी. शर्मा ओली (2015–2016)
प्रचंड (2016–2017)
शेर बहादुर देउबा (2017–2018)
के.पी. शर्मा ओली (2018–2021)
शेर बहादुर देउबा (2021–2022)
प्रचंड (2022–2024)
के.पी. शर्मा ओली (2024–2025, इस्तीफ़े तक)

यह सिलसिला बताता है कि नेपाल की राजनीति लगातार अस्थिरता में फंसी रही।

भ्रष्टाचार और अराजकता

लोकतंत्र के बाद भी भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और बेरोज़गारी ने जनता को निराश किया। सोशल मीडिया पर पाबंदी ने आग में घी का काम किया। हिंसक प्रदर्शनों और आगजनी में कई लोगों की जान चली गई और हालात बेकाबू हो गए। यही असंतोष जनता को यह सोचने पर मजबूर कर रहा है कि क्या राजशाही की वापसी स्थिरता ला सकती है।

हिन्दू राष्ट्र की वापसी की मांग

राजशाही समर्थक गुट और धार्मिक संगठन लगातार यह आवाज़ बुलंद कर रहे हैं कि नेपाल को फिर से हिन्दू राष्ट्र घोषित किया जाए। उनका तर्क है कि धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र ने देश को अस्थिर और भ्रष्ट बना दिया है। हालांकि इसके लिए संसद और जनता की सहमति आवश्यक होगी, जो फिलहाल विभाजित दिख रही है।

नेपाल का भविष्य

नेपाल आज चौराहे पर खड़ा है।

यदि लोकतंत्र को सुधार और मजबूत संस्थागत ढांचे मिलते हैं, तो देश भविष्य में स्थिर हो सकता है।
यदि अस्थिरता और हिंसा जारी रही, तो राजशाही या हिन्दू राष्ट्र की वापसी की बहस और तेज़ होगी।
नई पीढ़ी का आक्रोश संकेत देता है कि वे न भ्रष्ट राजनीति स्वीकार करेंगे, न कमजोर शासन।

चीन क्या करेगा?

नेपाल की अस्थिरता पर चीन और भारत दोनों की नजर है।

चीन अपने बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट और रणनीतिक हितों को बचाने के लिए नेपाल में दखल बढ़ा सकता है।
वह आर्थिक मदद और राजनीतिक दबाव के जरिये नेपाल की राजनीति को प्रभावित करना चाहेगा।
भारत भी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रिश्तों के चलते पीछे नहीं हटेगा।

इसलिए नेपाल का भविष्य केवल उसके भीतर ही नहीं, बल्कि पड़ोसी शक्तियों के समीकरणों पर भी निर्भर करेगा।

राजशाही से लोकतंत्र और अब भ्रष्टाचार-अराजकता तक का सफर नेपाल की राजनीति की सबसे बड़ी त्रासदी है। लोकतंत्र तभी टिक पाएगा जब नेतृत्व पारदर्शी, ईमानदार और स्थिरता देने वाला होगा। अन्यथा जनता का झुकाव फिर से राजशाही और हिन्दू राष्ट्र की ओर हो सकता है।

https://cmgtimes.com/nepal-political-upheaval-prime-minister-oli-resigns-to-president/

सी. पी. राधाकृष्णन बने भारत के नए उपराष्ट्रपति, एनडीए उम्मीदवार ने विपक्ष के बी. सुदर्शन रेड्डी को हराया

BABA GANINATH BHAKT MANDAL  BABA GANINATH BHAKT MANDAL

Related Articles

Back to top button