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गया जी का विष्णुपद मंदिर : मोक्ष की भूमि और आस्था का केंद्र

  • “गया का गौरव : विष्णुपद मंदिर, सात पीढ़ियों को मोक्ष देने वाला धाम”
  • पौराणिक महत्व : गयासुर की कथा और भगवान विष्णु के चरणचिह्न
  • स्थापत्य और इतिहास : मंदिर की वास्तुकला और पुनर्निर्माण
  • पिंडदान और तर्पण का केंद्र : पितृपक्ष में विशेष महत्ता
  • गया जी का जीवन और अर्थव्यवस्था : पर्यटन, श्रद्धालु और स्थानीय समाज

गया (बिहार)। पितृपक्ष के आरंभ होते ही गया नगरी में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगती है। फल्गु नदी के किनारे स्थित विष्णुपद मंदिर इस समय आस्था का प्रमुख केंद्र बन जाता है। मान्यता है कि यहाँ भगवान विष्णु के चरणचिह्न स्थापित हैं, जिनकी पूजा से पितरों को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि पितृपक्ष में लाखों श्रद्धालु यहाँ पिंडदान और तर्पण के लिए आते हैं।मंदिर का वर्तमान स्वरूप 18वीं शताब्दी में अहिल्या बाई होल्कर ने बनवाया।

पौराणिक कथा और धार्मिक महात्म्य

विष्णुपद मंदिर का इतिहास गयासुर की कथा से जुड़ा है। पुराणों के अनुसार, गयासुर नामक दैत्य ने कठोर तपस्या कर भगवान विष्णु को प्रसन्न किया और उनसे वरदान प्राप्त किया। इस वरदान के प्रभाव से गयासुर ने देवताओं को परेशान करना शुरू कर दिया। त्रस्त होकर देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता की प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने गयासुर का वध किया और उसके शरीर को दबाकर उसके ऊपर भगवान के चरण रखे, जिससे वहाँ भगवान विष्णु के चरणचिह्न अंकित हो गए। तभी से यह स्थान पितरों की मुक्ति के लिए पवित्र माना जाने लगा। लोकमान्यता के अनुसार, माता सीता ने भी यहाँ राजा दशरथ का पिंडदान किया था। फल्गु नदी के किनारे बालू से पिंड अर्पित करने की परंपरा यहीं से शुरू हुई।

स्थापत्य और ऐतिहासिक विवरण

विष्णुपद मंदिर का वर्तमान स्वरूप 18वीं शताब्दी में इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने बनवाया। मंदिर का शिखर लगभग 30 मीटर ऊँचा है और इसकी वास्तुकला मध्यकालीन शैली की है। गर्भगृह में भगवान विष्णु के चरणचिह्न चाँदी के घेरे में स्थापित हैं, जिनकी पूजा प्रतिदिन रक्त चंदन से की जाती है। मंदिर के शिखर पर 50 किलोग्राम सोने का कलश और ध्वजा स्थापित है। गर्भगृह में 50 किलोग्राम चाँदी का छत्र और अष्टपहल भी है। मंदिर परिसर में 54 वेदियों में से 19 वेदियाँ पिंडदान के लिए विशेष रूप से निर्धारित हैं।

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पितृपक्ष और पिंडदान की परंपरा

पितृपक्ष में विष्णुपद मंदिर का विशेष महत्व है। इस समय लाखों श्रद्धालु पिंडदान और तर्पण के लिए यहाँ आते हैं। मंदिर के चारों ओर ब्राह्मण परिवारों की पीढ़ियाँ इस परंपरा से जुड़ी हैं। वे श्रद्धालुओं को विधि-विधान समझाते हैं और संस्कृत मंत्रोच्चार के बीच तर्पण संपन्न कराते हैं। गया क्षेत्र में स्थित 54 वेदियों में से 19 वेदियाँ विष्णुपद मंदिर में ही स्थित हैं, जहाँ पूर्वजों की मुक्ति के लिए पिंडदान किया जाता है। इन 19 वेदियों में से 16 वेदियाँ अलग हैं और तीन वेदियाँ रुद्रपद, ब्रह्मपद और विष्णुपद हैं, जहाँ खीर से पिंडदान का विधान है।

सामाजिक और आर्थिक पहलू

पितृपक्ष के समय गया जी की अर्थव्यवस्था में अभूतपूर्व उछाल आता है। होटल, लॉज, धर्मशालाएँ, ऑटो-टैक्सी, फूल-माला और पूजा सामग्री के दुकानदारों की चाँदी हो जाती है। अनुमान है कि इन दिनों में स्थानीय स्तर पर करोड़ों रुपये का लेन-देन होता है। मंदिर से जुड़ी आस्था न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और आर्थिक जीवन को भी प्रभावित करती है। स्थानीय लोगों का कहना है कि पितृपक्ष उनके लिए “दीपावली” जैसा होता है, क्योंकि इसी समय उनकी साल भर की आमदनी हो जाती है।

विष्णुपद मंदिर

भीड़ को देखते हुए जिला प्रशासन ने मंदिर परिसर और फल्गु नदी के घाटों पर सुरक्षा के विशेष इंतज़ाम किए हैं। जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं और स्वास्थ्य शिविर भी संचालित हो रहे हैं। नगर निगम ने स्वच्छता पर विशेष जोर दिया है ताकि बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं को कोई कठिनाई न हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 अगस्त, 2025 को विष्णुपद मंदिर के सौंदर्यीकरण और विकास की परियोजना का शिलान्यास किया। इस परियोजना में मंदिर परिसर, फल्गु नदी के घाटों, सीताकुंड, तुलसी पार्क, और अन्य धार्मिक स्थलों का विकास शामिल है। अनुमान है कि इस परियोजना पर करोड़ों रुपये खर्च होंगे।

पितृपक्ष का मुख्य केंद्र

हर साल लाखों श्रद्धालु पिंडदान के लिए यहीं आते हैं।
तर्पण और श्राद्ध के लिए विशेष व्यवस्था।
ब्राह्मणों की पीढ़ी-दर-पीढ़ी परंपरा।

सामाजिक और आर्थिक पहलू

पितृपक्ष के समय शहर की अर्थव्यवस्था में भारी उछाल।
होटल, धर्मशाला, ट्रैवल एजेंसी और बाजार की हलचल।
ग्रामीण और शहरी समाज पर प्रभाव।

श्रद्धालुओं के अनुभव

दिल्ली से आए एक श्रद्धालु का कहना है, *“विष्णुपद मंदिर आना हमारे लिए जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य है। हमें विश्वास है कि हमारे पितरों की आत्मा यहाँ तृप्त होगी।”* वहीं नेपाल से आए एक परिवार ने कहा, *“हम हर साल पितृपक्ष में यहाँ आते हैं। यह न सिर्फ एक कर्मकांड है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ने का अवसर भी है।”*

गया जी का विष्णुपद मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपरा का जीवंत प्रतीक है। पितृपक्ष के दौरान यह मंदिर आस्था का केंद्र बन जाता है, जहाँ आकर श्रद्धालु यह अनुभव करते हैं कि पूर्वज केवल इतिहास नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य की धारा का हिस्सा हैं।

डिस्क्लेमर :यह लेख पौराणिक मान्यताओं, ऐतिहासिक विवरण और स्थानीय परंपराओं पर आधारित है। इसमें उल्लिखित धार्मिक विश्वास आस्था और परंपरा पर निर्भर करते हैं। समाचार का उद्देश्य केवल जानकारी और सांस्कृतिक परंपरा को प्रस्तुत करना है।

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