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एबीजी शिपयार्ड-कंपनी को कर्ज केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के बनने से पहले दिया गया था-वित्त मंत्री

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एबीजी शिपयार्ड लि घोटाले पर मोदी सरकार को घेरने के प्रयास करने वालों को ‘अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने वाले’करार देते हुए सोमवार को कहा कि इस कंपनी को कर्ज केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के बनने से पहले दिया गया था और उसे एनपीए उसी समय घोषित किया जा चुका था।कंपनी पर बैंकों का करीब 23 हजार करोड़ रुपये गबन करने का आरोप है।भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के केंद्रीय बोर्ड की बजट-पश्चात दिल्ली में होने वाली पहली परम्परागत बैठक के बाद वह आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने एबीजी शिपयार्ड के खाते में धोखाधड़ी को औसत से कम समय में पकड़ने के लिए उसे कर्ज देने वाले बैंकों के कंसोर्टियम की सराहना की।

श्रीमती सीतारमण ने इस मामले में उठ रहे सवालों के बारे में कहा,“ यह रिजर्व बैंक का कार्यालय है। मैं यहां से कोई राजनीतिक बात नहीं करना चाहती पर जो लोग इस पर शोर मचा रहे हैं, राजनीति कर रहे हैं, वे अपने ही खोदे गड्ढे में गिरने वाले हैं। वे अपने पैर पर कुल्हाड़ी चला रहे हैं। ”उन्होंने कहा कि इस कंपनी का खाता 2014 से पहले, वास्तव में नवंबर 2013 में ही एनपीए (अवरुद्ध) घोषित कर दिया गया था। कंपनी को बैंकों के कंसोर्टियम ने उससे पहले कर्ज दे रखा था।वित्त मंत्री ने आईसीआईसीआई के नेतृत्व में कंपनी को कर्ज देने वाले बैंकों को इस खाते में धाेखाधड़ी जल्द पकड़ने के लिए सराहना की। उन्होंने कहा,“ सामान्यत: बैंक कर्ज की धोखाधड़ी पकड़ने में 52-56 महीने लग जाते हैं, पर इस कंपनी के मामले में उन्होंने एक बाहरी एजेंसी से फाेरेंसिक आडिट आदि करवाकर धोखाधड़ी को औसत से कम समय में पकड़ लिया। ”उन्होंने कहा कि इस मामले में दो रिपोर्ट दायर की जा चुकी हैं।श्रीमती सीतारमण ने कहा, “बैंक आज आत्म विश्वास से भरे हैं। वे बाजार से भी पूंजी उठा रहे हैं। ”

गौरतलब कि सोमवार को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने रविवार को कहा कि उसने देश में निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी जहाजरानी कंपनियों में से एक एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड के खिलाफ करीब 23 हजार करोड़ रुपये की घोखाधड़ी का मामला दर्ज किया है।सीबीआई ने रविवार को अपने टि्वटर पर एक बयान में यह जानकारी दी। जांच एजेंसी का कहना है कि कंपनी ने निजी क्षेत्र के आईसीआईसीआई बैंक के नेतृत्व में 28 बैंकों और वित्तीय संस्थानों से लिए गए कर्ज में 22,842 रुपये की धोखाधड़ी की है।भारतीय स्टेट बैंक ने कहा है कि कर्ज देने वाले बैंकों के कंसोर्टियम का नेतृत्व निजी क्षेत्र के आईसीआईसीआई बैंक ने किया था और उसके बाद आईडीबीआई बैंक दूसरा लीड बैंक था, पर यह तय किया गया कि कंसोर्टियम में सबसे बड़े सरकारी बैंक के नाते स्टेट बैंक आफ इंडिया को सीबीआई में शिकायत दर्ज करानी चाहिए।

एसबीआई के एक बयान के मुताबिक एबीजी शिपयार्ड 15 मार्च 1985 को गठित की गयी थी और वह 2001 से बैंकिग सुविधा ले रही थी।। उसे दो दर्जन से अधिक बैंकों और वित्तीय संस्थानों ने मिल कर उधार देने की व्यवस्था की थी और इस कर्ज व्यवस्था का नेतृत्व आईसीआईसीआई बैंक कर रहा था।खराब प्रदर्शन के कारण कंपनी के खाते को 30 नवंबर 2013 को गैर निष्पादित सम्पत्ति (एनपीए) घोषित कर दिया गया था। कंपनी को पुनर्जीवित करने के लिए कई प्रयास किए गए लेकिन सफल नहीं हो सके।मार्च 2014 में सभी उधारदाताओं द्वारा सीडीआर तंत्र के तहत खाते का पुनर्गठन किया गया था। एसबीआई ने कहा है कि अप्रैल 2018 के दौरान बैंकों ने कंपनी के खातों की फोरेंसिक आडिट कराने का निर्णय किया था और द्वारा ईएंडवाई को ऑडिटर के रूप में नियुक्त किया गया था। उसने जनवरी 2019 में रिपोर्ट दी थी। ईएंडवाई की रिपोर्ट 18 बैंकों की धोखाधड़ी पहचान समिति के समक्ष रखी गयी।

बैंक ने कहा है कि रिपोर्ट में मुख्यत: कंपनी में धन के विचलन, गबन और आपराधिक विश्वासघात को ले कर धोखाधड़ी की बात कही गयी थी।कंपनी को कर्ज देने वालों में आईसीआईसीआई बैंक कंसोर्टियम में प्रमुख ऋणदाता था और आईडीबीआई बैंक दूसरे नंबर पर था। पर इनमें एसबीआई सबसे बड़ा सरकारी बैंक था, इसलिए तय किया गया था कि इस मामले में शिकायत सीबीआई दर्ज कराए।सीबीआई के पास पहली शिकायत नवंबर 2019 में दर्ज की गई थी। सीबीआई और बैंकों के बीच लगातार जुड़ाव रहा और आगे की जानकारी का आदान-प्रदान होता रहा था।

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