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सेवा भाव से दीदी मां बन गयीं साध्वी ऋतंभरा

मथुरा  : कुछ लोग जन्म से ही महान होते हैं जब कि कुछ लोग अपने सद्कर्माें से न केवल महान बन जाते हैं बल्कि इतिहास बना जाते है। ‘दीदी मां’ के नाम से मशहूर साध्वी ऋतंभरा अपने सेवाभावी कार्यो के कारण दूसरी श्रेणी में स्वतः आ गई है।साध्वी ऋतंभरा अपने अंदर आए सेवा के बीज के प्रस्फुटन का श्रेय अपने गुरू श्री परमानन्द महराज को देती हैं। जिस समय साध्वी ऋतंभरा का सन्यास हुआ उस समय भारत में स्ऋियों के सन्यास की प्रथा न थी लेकिन उनके गुरू ने साध्वी ऋतंभरा को सन्यास की दीक्षा देकर नारी को गौरव दिलाया था। बहुत कुरेदने पर वे बताती हैं कि कुछ अनाथ आश्रमों व महिला आश्रमों को देखने और वहां बच्चियों का ठीक से रखरखाव न होता देख उनके अन्दर वात्सल्य भाव जागृत हुआ।

इसके बाद उन्होंने निश्चय किया कि किसी बच्चे या बच्ची को देवकी की कोख भले न दे पाएं पर उसे यदि यशोदा की तरह गोद पा जाय तो वह भी कान्हा की तरह प्रेम पा सकता है।एक प्रार्थना है “ वर दो भगवन हर मानव में तेरे दर्शन पाएं , मानवता अपनाएं। ” प्रार्थना की इन लाइनों को साध्वी ऋतंभरा ने न केवल अपने जीवन में आत्मसात किया बल्कि उसे व्यवहारिक रूप दिया इसीलिए वे साध्वी ़ऋतंभरा से ‘दीदी मां’ बन गई। उन्होंने समाज के ऐसे तबके के साथ सेवा का प्रकल्प शुरू किया जिसे कोई भी और यहां तक उस बच्ची की मां तक स्वीकार करने को तैयार नही होती।उन्होने समाज से परित्यक्त बच्चियों को न केवल स्वीकार किया बल्कि उन्हें प्यार दिया जिससे वे उनकी दीदी बन गईं और मां की तरह उनका पालन पोषण किया जिससे वे उनकी मां बन गईं।

उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में एक नया अध्याय जोड़ा और समाज की परित्यक्त बच्चियों को घर का सा वातावरण देकर उन्हें शिक्षा दिलाया। दादी, मौसी और नानी इस परिवार की अभिन्न अंग बनी तो दीदी और मां वे स्वयं बनी। इसका असर यह हुआ कि बच्चियों को ऐसी संस्कारयुक्त शिक्षा मिली कि वे समाज के लिए वरदान बन गई। वर्तमान में वात्सल्य ग्राम में अन्य सेवा प्रकल्पों के शुरू होने से दादी, मौसी , मां और नानी की भूमिका अन्य एैसी महिलाएं कर रही हैं जिनकी शिक्षा वात्सल्य ग्राम में ही हुई है।इस विद्यालय में भाव के संबंध रक्त के संबंधों से अधिक प्रगाढ़ है।कहा जाता है कि हीरे या नीलम की पहचान उसका असली पारखी ही कर सकता है।

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री रामप्रकाश ने राम जन्मभूमि आंदोलन के समय साघ्वी ऋतंभरा के प्रभावी भाषणो को सुना तो उन्होंने अंदाजा लगा लिया कि इस साध्वी में समाज के लिए कुछ करने की लालसा है।इसलिए उन्होंने वात्सल्य ग्राम की वर्तमान भूमि साध्वी को सेवा प्रकल्पों को चलाने के लिए दिया । कांग्रेसियों ने इसका जबर्दस्त विरोध किया पर कहा जाता है कि जो ’’घट घट में भगवान देखता है ठाकुर उसी के साथ हो जाते हैं’’। यही कारण है कि साध्वी ऋतंभरा के सेवा कार्य में आनेवाले कांटे उनके लिए फूल बन गए तथा कांग्रेसियों को मुंह की खानी पड़ी ।आज वात्सल्य ग्राम सेवा का आदर्श बन चुका है। यहां पर न केवल अनाथ बच्चियों को अभिनव तरीके से शिक्षा दी जा रही है बल्कि समाज के विभिन्न वर्ग के लोगों की बच्चियों को संस्कारयुक्त शिक्षा वात्सल्य ग्राम के दो अन्य स्कूलों में दी जा रही है।

दीदी मां का कहना है कि यदि एक बच्ची संस्कारित बन जाती है तो एक परिवार के संस्कारित होने की नीव पड़ जाती है।दीदी मां ने वात्सल्य ग्राम में बच्चियों को आत्म निर्भर बनाने से लेकर आत्मरक्षार्थ जीवन बिताने की शिक्षा दी वहीं उनके अंदर देश प्रेम की भावना जागृत करने के लिए बच्चियों को सीमा पर ले जाकर जवानों के राखी बांधने का सराहनीय कार्य किया। देश सेवा के कार्य कों आगे बढ़ाते हुए लड़कियों के लिए सैनिक स्कूल खोलने का निश्चय किया तथा वात्सल्य ग्राम में देश के पहले बालिका सैनिक स्कूल की शुरूवात एक जनवरी से होने जा रही है । रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह देश के प्रथम बालिका सैनिक स्कूल का लोकार्पण करेंगे।शिक्षा के अनुठे प्रकल्प के साथ वात्सल्य ग्राम में एक आधुनिक चिकित्सालय एवं एक गोशाला भी है जो सेवा कार्य का नमूना बन चुके है।।आध्यात्मिक जगत की ऐसी सेवाभावी हस्ती दीदी मां से उनके शिष्यों का प्रभावित होना स्वाभाविक है।

दीदी मां के जीवन में 60 वर्ष पूरे होने पर सभी शिष्य / शिष्याएं मिलकर वात्सल्य ग्राम में एक अनूठा कार्यक्रम दीदी मां का ’’षष्ठी महोत्सव’’ 30 दिसंबर से ,एक जनवरी तक आयोजित कर रही हैं जिसमें देश की आध्यात्मिक, सामाजिक सेवा , शिक्षा एचं राजनैतिक जगत की हस्तियां भाग लेने के लिए आ रही हैं जिनमे यूपी , हरियाणा, उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री, केन्द्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, स्मृति ईरानी, साध्वी निरंजन ज्येाति, अनुराग ठाकुर, सांसद हेमामालिनी युगपुरूष स्वामी परमानन्द महराज, जूना अखाड़ा के अवधेशानन्द महराज, रामजन्मभ्ूामि ट्रस्ट ऐसी सेवाभावी प्रतिमूर्ति के लिए इस के गोविन्द गिरि महराज, योग गुरू स्वामी रामदेव एवं वृन्दावन के प्रमुख संत प्रमुख हैं। ये सभी विभिन्न तिथियों में विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लेंगे।

इस अवसर पर केवल यह कहा जा सकता है कि ’’तुम जियेा हजारों साल साल के होवे वर्ष हजार ’ तथा ’’इतिहास बनानेवाले ही इतिहास बनाया करते हैं’’ क्योंकि मदर टेरेसा ने कुष्ठ रोगियों की सेवा का जो आदर्श प्रस्तुत किया उसी प्रकार का काम अनाथ बच्चियों के लिए करके साध्वी ऋतंभरा से वे ’’दीदी मां ’’ बन गई तथा नीचे लिखी लाइने संभवतः उन जैसी सेवाभावी महिला के लिए लिखी गई है।-

लगी चहकने जहां पे बुलबुल, हुआ वहीं पर जमाल पैदा।
कमी नहीं कद्रदां कि लेकिन करे तो कोई कमाल पैदा।।

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