मुंबई : आसमान छू रही महंगाई को काबू में करने के लिए पूरी दुनिया के केंद्रीय बैंकों के ब्याज दर में बढ़ोतरी करने का अनुसरण करते हुए रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने भी उम्मीद के अनुरूप आज रेपो दर में 0.50 प्रतिशत की वृद्धि कर दी।आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की तीन दिवसीय बैठक के बाद शुक्रवार को गवर्नर शक्तिकांत दास ने बैठक में लिए गये निर्णय की जानकारी देते हुये कहा कि वैश्विक स्तर पर महंगाई में अप्रत्याशित बढ़ोतरी से भारत भी अछूता नहीं है।
बढ़ती महंगाई को नियंत्रित करने के साथ ही विकास को गति देने के लिए एमपीसी ने रेपो दर में 0.50 प्रतिशत वृद्धि करने का निर्णय लिया है।उन्होंने कहा कि इस बढ़ाेतरी के बाद रेपो दर 5.40 प्रतिशत से 0.50 प्रतिशत बढ़कर 5.9 प्रतिशत पर, सटैडिंग डिपॉजिट फैसिलिटी दर (एसडीएफ) 5.15 प्रतिशत से 0.50 प्रतिशत बढ़कर 5.65 प्रतिशत तथा मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (एमएसएफ) 5.65 प्रतिशत से बढ़कर 6.15 प्रतिशत पर पहुंच गयी है। नीतिगत दरों में हुई बढ़ोतरी से खुदरा महंगाई को नियंत्रित करने में मदद मिलने की उम्मीद है और महंगाई को मध्यावधि में छह प्रतिशत के लक्षित दायरे में लाया जा सकेगा।
श्री दास ने कहा कि समिति के छह में से पांच सदस्यों ने नीतिगत दरों में 0.50 प्रतिशत की बढोतरी करने का निर्णय लिया है। इसके साथ ही समिति ने समायोजन वाले रूख को वापस लेने पर भी सहमति जतायी है। इससे महंगाई को लक्षित दायरे में लाने और विकास को गति देने में मदद मिलेगी।उन्होंने कहा कि वैश्विक भू-राजनीतिक घटनाक्रम का घरेलू मुद्रास्फीति पर प्रभाव पड़ा है। इस वर्ष अगस्त में मुद्रास्फीति बढ़कर 7.0 प्रतिशत हो गई, जो जुलाई में 6.7 प्रतिशत थी। चालू वित्त वर्ष की शुरुआत में महसूस किया गया कि मुद्रास्फीति दबाव कम हो गया लेकिन खाद्य पदार्थों और ऊर्जा की कीमतें उच्च स्तर पर बनी हुई है।
प्रमुख उत्पादक देशों से बेहतर आपूर्ति होने और सरकार की ओर से किए गए उपायों के बावजूद महंगाई का दबाव बने रहने की संभावना है। आगे चलकर आपूर्ति की शर्तों को आसान बनाने और धातु एवं कच्चे तेल की कीमतों में नरमी के कारण मूल्य वृद्धि में कुछ कमी आ सकती है। हालांकि खाद्य पदार्थों की कीमतों को लेकर जोखिम अभी भी कायम है। खरीफ फसलों का उत्पादन कम होने की संभावना से गेहूं से चावल की कीमतों में तेजी रह सकती है।इसके साथ ही भारतीय बास्केट कच्चे तेल की कीमत चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में लगभग 104 डॉलर प्रति बैरल थी।
दूसरी छमाही में कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल रहने की उम्मीद है। इन कारकों को ध्यान में रखते हुए वित्त वर्ष 2022-23 में मुद्रास्फीति अनुमान 6.7 प्रतिशत पर बरकरार रखा गया है। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में महंगाई दर 7.1 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 6.5 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 5.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है। उन्होंने कहा कि अगले वित्त वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही में महंगाई दर के कम होकर पांच प्रतिशत पर आने की उम्मीद है।
आरबीआई गवर्नर ने आर्थिक विकास अनुमान का जिक्र करते हुए कहा कि निजी उपभोग बढ़ने और निवेश मांग में मजबूत वृद्धि होने से वित्त वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वार्षिक आधार पर 13.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो कोरोना महामारी के पहले के स्तर 3.8 प्रतिशत से अधिक है। शहरी मांग में सुधार हो रहा है। ग्रामीण मांग भी धीरे-धीरे बढ़ रही है। इस वर्ष जुलाई और अगस्त में घरेलू उत्पादन एवं पूंजीगत वस्तुओं के आयात की मजबूत वृद्धि से स्पष्ट है कि निवेश की मांग भी बढ़ रही है। इस वर्ष 09 सितंबर तक बैंक ऋण 16.2 प्रतिशत की तेज गति से बढ़ा जबकि एक साल पहले यह 6.7 प्रतिशत पर था।
उन्होंने कहा कि 29 सितंबर तक मॉनसून की बारिश दीर्घ अवधि के औसत (एलपीए) से सात फीसदी अधिक रही है। इस वर्ष 23 सितंबर तक खरीफ की बुवाई सामान्य बुवाई क्षेत्र से 1.7 प्रतिशत अधिक थी। पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार, खरीफ खाद्यान्न का उत्पादन पिछले वर्ष के पहले अग्रिम अनुमान से केवल 0.4 प्रतिशत कम है। इस वर्ष 29 सितंबर तक भंडारण का स्तर पूरी क्षमता का 87 प्रतिशत है जबकि दशकीय औसत 77 प्रतिशत है।
श्री दास ने कहा कि हालांकि, विनिर्माण क्षेत्र की पीएमआई अगस्त में 56.2 पर रही, जो इस क्षेत्र का निरंतर हो रहे विस्तार को प्रदर्शित करता है। सेवा क्षेत्र के संकेतक जुलाई और अगस्त में मजबूत वृद्धि की ओर इशारा करते हैं। अगस्त में सेवा क्षेत्र की पीएमआई जुलाई के 55.5 से बढ़कर 57.2 पर पहुंच गई। साथ ही कारोबारी धारण 51 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई।आरबीआई गवर्नर ने कहा कि इन सभी कारकों से समग्र मांग और गतिविधि को समर्थन मिलने की उम्मीद है। इसके बादवजूद घरेलू अर्थव्यवस्था को वैश्विक घटनाक्रमों का सामना करना पड़ रहा है।
भू-राजनैतिक तनाव, वैश्विक मंदी के खतरों और वैश्विक वित्तीय स्थित में आ रही कठोरता का असर भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर रहा है। इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए वित्त वर्ष 2022-23 के लिए वास्तविक जीडीपी विकास दर के 7.0 प्रतिशत पर रहने का अनुमान है। साथ ही चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में आर्थिक विकास दर 6.3 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 4.6 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 4.6 प्रतिशत रह सकती है। वित्त वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही में जीडीपी विकास दर के 7.2 प्रतिशत पर रहने का अनुमान है।मौद्रिक नीति समिति की अगली तीन दिवसीय द्विमासिक बैठक 05 से 07 दिसंबर के दौरान होगी।(वार्ता)