
‘एक राष्ट्र एक चुनाव’:अधीर रंजन ने समिति में शामिल होने का प्रस्ताव ठुकराया
कांग्रेस ने एक राष्ट्र, एक चुनाव पैनल की संरचना पर केंद्र पर साधा निशाना
नई दिल्ली । लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ की अवधारणा को मूर्त रूप देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा गठित आठ सदस्यीय समिति में शामिल होने का निमंत्रण ठुकरा दिया। यह घटनाक्रम केंद्र द्वारा विकल्प तलाशने के लिए आठ सदस्यीय समिति की घोषणा के बाद आया है, जिसका उद्देश्य स्थानीय निकायों, राज्यों और केंद्र के लिए एक साथ चुनाव कराने की गुंजाइश का पता लगाना है।
एक पत्र में चौधरी ने कहा, मुझे अभी मीडिया के माध्यम से पता चला है और एक गजट अधिसूचना सामने आई है कि मुझे लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की गुंजाइश बनाने के लिए गठित उच्चस्तरीय समिति के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया है। उन्होंने कहा, मुझे उस समिति में काम करने से इनकार करने में कोई झिझक नहीं है, जिसके संदर्भ की शर्तों को इसके निष्कर्षों की गारंटी देने के लिए तैयार किया गया है।मुझे डर है कि यह पूरी तरह से धोखा है। आम चुनाव से कुछ महीने पहले राष्ट्र पर गैर-व्यवहार्य और तार्किक रूप से लागू न होने वाला विचार थोपना सरकार के गुप्त उद्देश्यों के बारे में गंभीर चिंता पैदा करता है।
कांग्रेस ने एक राष्ट्र, एक चुनाव पैनल की संरचना पर केंद्र पर साधा निशाना
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने रविवार को ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर पैनल की संरचना को लेकर भाजपा सरकार से सवाल किया और कहा कि उसने पहले ही अपनी सिफारिशें निर्धारित कर ली हैं।रमेश का बयान लोकसभा में पार्टी नेता अधीर रंजन चौधरी द्वारा ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ अवधारणा की जांच के लिए सरकार द्वारा गठित पैनल का हिस्सा बनने के निमंत्रण को अस्वीकार करने के एक दिन बाद आया है।
उन्होंने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, जिसे ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ कहा जाता है, उस पर उच्च स्तरीय समिति एक कर्मकांडीय प्रक्रिया है, जिसका समय अत्यधिक संदिग्ध है। इसके संदर्भ की शर्तों ने पहले ही इसकी सिफारिशें निर्धारित कर दी हैं।कांग्रेस के राज्यसभा सांसद ने आगे कहा, समिति की संरचना भी पूरी तरह से बेकार है और लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कल रात इसका हिस्सा बनने से इनकार कर दिया।भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के लिए आठ सदस्यीय समिति का गठन किया है, जिसके अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद और सदस्य के रूप में गृह मंत्री अमित शाह और अन्य हैं।(वीएनएस)
‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ का मकसद लोकतांत्रिक व्यवस्था खत्म करना है:खड़गे-राहुल
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे तथा पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने मोदी सरकार के ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ के विचार को देश में लोकतंत्र एवं संघीय ढांचे की व्यवस्था को खत्म कर तानाशाही लाना है।श्री खड़गे ने ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ के विचार को देश में लोकतंत्र खत्म कर संघीय व्यवस्था को तानाशाही में तब्दील करने का प्रयास बताया है जबकि श्री गांधी ने इस विचार को खारिज करते हुए इसे राज्यों पर हमला करार दिया और कहा कि सरकार का यह कदम पूरी तरह से संघीय प्रणाली के विरुद्ध है।श्री गांधी ने कहा,“एक राष्ट्र एक चुनाव का विचार संघ और उसकी सभी राज्यों पर हमला है।
”श्री खड़गे ने कहा,“मोदी सरकार का मकसद लोकतंत्र को धीरे-धीरे तानाशाही में बदलना है। उसका ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर समिति बनाना एक नौटंकी है और भारत के संघीय ढांचे को खत्म करने का एक बहाना है।”उन्होंने कहा कि ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ के सिद्धांत की प्रक्रिया बहुत जटिल है। उन्होंने कहा कि निर्वाचित लोकसभा और विधान सभाओं के कार्यकाल को कम करने के लिए संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता होगी। इसके लिए संविधान में कम से कम पांच संशोधन कर लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में बड़े पैमाने पर बदलाव लाना होगा।
कांग्रेस नेता ने ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ के मुद्दे पर सरकार से सवाल करते हुए पूछा,“क्या प्रस्तावित समिति भारतीय चुनावी प्रक्रिया में सबसे बड़े बदलाव पर विचार-विमर्श करने और निर्णय लेने के लिए सबसे उपयुक्त है। क्या राष्ट्रीय स्तर और राज्य स्तर पर राजनीतिक दलों से परामर्श किए बिना इतनी बड़ी कवायद मनमाने तरीके से की जानी चाहिए। क्या इतना बड़ा कदम राज्यों और उनकी चुनी हुई सरकारों को शामिल किए बिना उठाया जाना चाहिए।
”कांग्रेस नेता ने कहा कि इस तरह के विचार को लेकर अतीत में तीन समितियों ने खारिज किया है और अब यह देखना है कि क्या इस मामले में चौथी समिति का गठन पूर्व के अनुभव पर ध्यान देते हुए किया गया है। कमाल की बात यह है की जो समिति बनाई गई है उसमें भारत के प्रतिष्ठित चुनाव आयोग के एक प्रतिनिधि को समिति से बाहर रखा गया है।आजादी के बाद देश में एक राष्ट्र एक चुनाव संबंधी व्यवस्था को लेकर उन्होंने कहा,“1967 तक हमारे पास न तो इतने राज्य थे और न ही हमारी पंचायतों में 30.45 लाख निर्वाचित प्रतिनिधि थे।
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। हमारे पास लाखों निर्वाचित प्रतिनिधि हैं और उनका भविष्य अब एक बार में निर्धारित नहीं किया जा सकता है। अब 2024 के लिए भारत के लोगों के पास केवल ‘एक राष्ट्र, एक समाधान’ का एकमात्र विकल्प है भाजपा के कुशासन से छुटकारा पाना।”(वार्ता)