
दर्द महाकुंभ में खोए हुए जूतों की
मैं चरणपादुका हूं। कठिन लग रहा है न मेरा ये नाम। जी। मुझे जूता, चप्पल, सैंडिल आदि नामों से पुकारा जाता है। मैं लोगों के पैरों की शान हूं। हैसियत के अनुसार लोग मुझे खरीदते हैं। शो रूम या फुटपाथ कहीं से भी। बहुत सहेजकर रखते हैं। मुझे मेरे चाहने वाले। मैं उनके पैरों की हिफाजत जो करता हूं। उनका चलना,दौड़ना आसान जो बनाता हूं। उनको कांटे से ठोकर से बचाता हूं। खुद कीचड में डूब जाता हूं,पर उनके पैरों को गंदा नहीं होने देता।
मुझे अपनो से बिछड़ने का अफसोस है। यकीनन उनको भी होगा जिनसे मैं बिछड़ गया हूं। उन्होंने भी मेरी शिद्दत से तलाश की होगी। नहीं मिलने पर अफसोस भी किया होगा। मेरी तरह शायद वो भी मुझे याद करते होंगे।मैं अपनों के साथ प्रयागराज कुंभ में आया था। पर भीड़ में कहीं खो गया। अब समझ में नहीं आता। मेरा भविष्य क्या होगा?हम इतने हैं कि इनमें से मेरे जोड़ीदार को भी तो खोजना मुश्किल है। उसके बिना मेरा कोई उपयोग भी नहीं। कुछ लोगों को जोड़ा दिख भी रहा,पर
संकोच में उसे उठा नहीं रहे। अफसोस कि मैं खुद नहीं चल सकता। मुझे चलने के लिए किसी के पांव का सहारा चाहिए। चल सकता तो उन पावों की तलाश कर लेता जिनसे मुझे प्यार था। बोल भी नहीं सकता। बस अफसोस कर सकता। अब मेरा भविष्य अनिश्चित है। मैं दुखी हूं। मैं महाकुंभ में अपनों से बिछड़ा जूता हूं।
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