
घर में ही उपेक्षित महाकबि जयशंकर प्रसाद
वाराणसी: हिंदी कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार तथा निबन्ध-लेखक जयशंकर प्रसाद आज अपने ही घर में उपेक्षित पड़े हुए हैं। उनकी प्रतिमा वर्षों से निर्मित होकर धूल फांक रही है। महज 4 फीट जमीन भी किसी चौराहे पर इस महाकवि के लिए उपलब्ध नहीं है।
महाकवि जयशंकर प्रसाद स्मृति न्यास के उत्तम ओझा ने बताया कि इस प्रतिमा का निर्माण 2 वर्ष पूर्व उन्होंने जन सहयोग से कराया और यह पूरी तरह प्रतिमा बनकर तैयार है। इसके स्थापना लिए उन्होंने प्रयत्न भी किया लेकिन आज तक सफलता नहीं मिल पाई। अपने ही नगर में जयशंकर प्रसाद उपेक्षित हो कर रह गए। वाराणसी शहर में आप कहीं भी घूम आएं लेकिन महाकवि जयशंकर प्रसाद जी की कोई प्रतिमा नहीं मिल सकती।

“आज जयशंकर प्रसाद जी के जन्म दिवस के अवसर पर शासन प्रशासन एवं जनप्रतिनिधियों से मैं मांग करता हूं कि उनकी प्रतिमा अति शीघ्र स्थापित की जाए। जो भी व्यक्ति या संस्था इस प्रतिमा को लगाना चाहते हैं मैं उन्हें यह प्रतिमा सहर्ष देने को तैयार हू। ” उत्तम ओझा ने कहा।जयशंकर प्रसाद हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं।
उन्होंने हिन्दी काव्य में एक तरह से छायावाद की स्थापना की जिसके द्वारा खड़ीबोली के काव्य में न केवल कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई, बल्कि जीवन के सूक्ष्म एवं व्यापक आयामों के चित्रण की शक्ति भी संचित हुई और कामायनी तक पहुँचकर वह काव्य प्रेरक शक्तिकाव्य के रूप में भी प्रतिष्ठित हो गया। बाद के, प्रगतिशील एवं नयी कविता दोनों धाराओं के, प्रमुख आलोचकों ने उसकी इस शक्तिमत्ता को स्वीकृति दी। इसका एक अतिरिक्त प्रभाव यह भी हुआ कि ‘खड़ीबोली’ हिन्दी काव्य की निर्विवाद सिद्ध भाषा बन गयी।