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बेकाबू महंगाई को काबू में करने के लिए नीतिगत दरों में बढोतरी

रिजर्व बैंक की नीतिगत दरों में अभी और वृद्धि की जा सकती है: विशेषज्ञ

भारतीय रिजर्व बैंक ने बढ़ती महंगाई पर चिंता जताते हुये इसको काबू में करने के उद्देश्य से तंत्र में उपलब्ध अतिशेष तरलता को सोखने के उद्देश्य से आज रेपो दर में तत्काल प्रभाव से 40 आधार अंक की तथा नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में 50 आधार अंक की बढोतरी करने का निर्णय लिया है, जिससे सभी प्रकार के ऋण महंगें हो जायेंगे। कोरोना काल के शुरू होने के बाद मई 2020 के बाद पहली बार रिजर्व बैंक ने इन दरों में बढोतरी की है। सीआरआर में बढोतरी किये जाने से तंत्र से 83 हजार रुपये केन्द्रीय बैंक के पास आयेंगें।यूक्रेन और रूस के बीच जारी जंग के कारण वैश्विक स्तर पर उत्पन्न स्थिति के बीच मौद्रिक नीति समिति की दो और चार मई को हुयी अप्रत्याशित बैठक के बाद आज दोपहर केन्द्रीय बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने इस बैठक में लिए गये निर्णय की जानकारी देते हुये कहा कि रेपा दर को अब 4 प्रतिशत से बढ़ाकर 4.40 प्रतिशत कर दिया गया है।

इसके साथ ही स्टैंडिंंग डिपोजिट फैसिलिटी(एसडीएफ) दर को भी 40 आधार अंक बढ़ाकर 4.15 प्रतिशत और मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (एमएसएफ) दर को 4.25 प्रतिशत से बढ़ाकर 4.65 प्रतिशत कर दिया गया है। इसके साथ ही सीआरआर को अब 4 प्रतिशत से बढ़ाकर 4.50 प्रतिशत कर दिया गया है जो 21 मई से प्रभावी होगा।उन्होंने कहा कि मौद्रिक नीति समिति ने महंगाई को लक्षित दायरे में रखने को सुनिश्चित करने में समायोजन को वापस लेते हुये विकास को समर्थन करने के लिए अपने मौद्रिक रुख को समायोजन वाला बनाये रखने का निर्णय लिया है।

उन्होंने कहा कि आज लिये गये निर्णय का लक्ष्य मध्यकाल में विकास को समर्थन करते हुये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई का छह प्रतिशत तक के लक्षित दायरे में रखना है।उन्होंने कहा कि इस वर्ष अप्रैल में हुयी समिति की बैठक के बाद से वैश्विक स्तर पर भू राजनैतिक तनावों और प्रतिबंधोें से कई कारक ऐसे हुये हैं जिससे बाधा आयी है और वस्तुओं की आपूर्ति प्रभावित हुयी है। कीमतों में बढ़ोतरी हुयी है। इससे आर्थिक स्तर पर जोखिम बढ़ा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने तीन महीने से भी कम समय में वैश्विक आर्थिक विकास परिदृश्य में कटौती की है। इसके साथ ही विश्व व्यापार संगठन ने भी वैश्विक व्यापार वृद्धि के अनुमान में कटौती की है।

भारतीय रिजर्व बैंक की नीतिगत दरों में बुधवार को बढ़ोतरी के अप्रत्याशित निर्णयों को बैंकिंग और उद्योग-व्यवसाय क्षेत्र के विशेषज्ञों ने मुद्रास्फीति के बढ़ते दबाव की चिंता का परिणाम बताया है और कहा है कि मौद्रिक नीति समिति अब भी नीतिगत रुख को उदार बनाए रखने के पक्ष में है ताकि आर्थिक वृद्धि को मदद मिलती रहे।कुछ विशेषज्ञों को हालांकि लगता है कि चालू वित्त वर्ष 2022-23 में रिजर्व बैंक को जून और अगस्त में भी रेपो दर बढ़ानी पड़ सकती है।भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के आर्थिक अनुसंधान विभाग के की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि रेपो में जून और अगस्त में भी वृद्धि की जा सकती है। इस रिपोर्ट के अनुसार,“ जून और अगस्त में भी रेपो बढ़ायी जा सकती है, वर्ष 2022-23 के दौरान रेपो दर में प्रतिशत 0.75 अंक की बढ़ोतरी तय लगती है।”

इस रिपोर्ट को एसबीआई के मुख्य अर्थशास्त्री डॉ सौम्यकांति घोष ने तैयार की है।डॉ घोष ने रिपोर्ट में कहा है कि मौद्रिक नीति समिति ने बीच में ही बैठक कर रेपो दर को चार प्रतिशत से बढ़ाकर 4.4 प्रतिशत और आरक्षित नगदी अनुपात (सीआरआर) को चार प्रतिशत से बढ़ाकर 4.5 करने का जो फैसला किया है, उससे बाजार में खलबली है। इससे बाजार को लगता है कि रिजर्व बैंक के मौद्रिक नीति का झुकाव अब मुद्रास्फीति पर नियंत्रण की ओर बढ़ रहा है। विश्व के तमाम विकसित और विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाएं तेजी से बढ़ती मुद्रास्फीति से निपटने के लिए एक ही तरह से जूझ रही है। मुद्रास्फीति इस समय जनसमान्य से लेकर हर वर्ग को प्रभावित कर रही है।

अर्थशास्त्री दिपन्विता द्वारा तैयार बैंक ऑफ बडौदा इकोनॉमिक रिसर्च टीम की रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस अप्रत्याक्षी तरीके से मौद्रिक नीति समिति ने रेपो और सीआरआर को आज बढ़ाया उससे ‘स्पष्ट है कि मुद्रास्फीति को अब बड़ा खतरा माना जाने लगा है।रिपोर्ट में कहा गया है कि आज की कार्रवाई से संकेत है कि इस साल रेपो 0.5-0.75 प्रतिशत तक और बढ़ायी जा सकती है तथा सीआरआर को भी तरलता की स्थिति को देखते हुए और बढ़ाया जा सकता है।

बैंक ऑफ बडौदा की रिपोर्ट में आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को 0.25 प्रतिशत कम कर दिया गया है और कहा गया है कि मुद्रास्फीति 5.5-6.0 प्रतिशत के बजाय औसतन 6.0 तक रहेगी।येस बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री इन्द्रनील पान का कहना है कि रिजर्व बैंक की नीतिगत दरों में बढ़ोतरी के पीछे तर्क मुद्रा स्फीति में बढ़ोतरी है और मुद्रास्फीति का दबाव बना रह सकता है। उनकी राय में रिजर्व बैंक की यह वृद्धि अमेरिका में इसी स्तर की वृद्धि से पहले की गयी है ताकि भारतीय रुपये की विनिमय दर को सुरक्षित स्तर पर बनाये रखा जा सके और उस पर कोई सटोरिया हमला न हो।

मोतीलाल ओसवाल फाइनेंसियल सर्विसेस के मुख्य अर्थशास्त्री निखिल गुप्ता ने कहा कि रिजर्व बैंक के गवर्नर ने आपूर्ति पक्ष की ओर से झटकों(बाधाओं) के असर से मुद्रास्फीति में और तेजी को रोकने के लिए मांग पर नियंत्रण रखने की रणनीति अपनायी है। श्री गुप्ता ने कहा, “ जीडीपी वृद्धि के अनुमान में और कमी किए जाने की उम्मीद कीजिए।”अचल संपत्ति बाजार का अध्यन करने वाली कंपनी नाइट फ्रैंक के वरिष्ठ कार्यकारी निदेशक गुलाम जिया ने कहा,“ मौद्रिक नीति का रुख अब भी उदार है। महामारी का प्रकोप कम होने और आर्थिक वृद्धि बनी रहने के मद्देनजर हम उम्मीद करते हैं कि निकट भविष्य में उपभोक्ताओं की मांग तेजी बनी रहेगी।”

एमके ग्लोबल फाइनेंसियल सर्विसेस की प्रमुख अर्थशास्त्री माधवी अरोड़ा का अनुमान है,“ जून की मौद्रिक नीति भी हलचल पैदा करने वाली हो सकती है और मौद्रिक नीति समिति जून में रेपो में 0.25 प्रतिशत की वृद्धि कर सकती है।” उनका अनुमान है कि मौद्रिक समिति नीति चालू वित्त वर्ष में रेपो दर को 1.25-1.50 प्रतिशत तक ऊपर ले जा सकती है।भारतीय इंजीनियरिंग निर्यात संवर्धन परिषद (ईईपीसी) के चेयरमैन महेश देसाई ने उम्मीद जाहिर की है कि रिजर्व बैंक आर्थिक वृद्धि में मदद करना चाहता है, इसलिए वह अपने उदार नीतिगत रुख में जल्दी बदलाव नहीं करेगा।

आवास विकास कंपनियों के संगठन नरेडको के अध्यक्ष राजन बांडेलकर ने कहा, “ हमारा मानना है कि नीतिगत दर में वृद्धि थोड़े समय के लिए ही है और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में सुधार के बाद नीतिगत ब्याज दर फिर कम कर दी जाएगी। हमें विश्वास है कि आगे भी मकानों की बिक्री में वृद्धि बनी रहेगी… बिल्डर अब भी आकर्षक योजनाएं ला रहे है और अगले कुछ महीनों में त्योहारी सीजन शुरू होंगे तथा बाजार में ग्राहक लौटेंगे। ”

आवास विकास कंपनियों के संगठन नरेडको महाराष्ट्र के अध्यक्ष संदीप रुनवाल ने कहा,“ रियल एस्टेट क्षेत्र महामारी के बाद सुधर रहा है और महामारी के पहले की स्थिति में पहुंचने की राह पर है लेकिन रेपो को में आज की वृद्धि से आवास ऋण महंगा हो जाएगा और डेवलपर भी लागत का बोझ ग्राहकों पर डालने को विवश होंगे। इससे मकानों की कीमत में आने वाले समय में वृद्धि हो सकती है। ”निर्यातकों के शीर्ष संगठन फिओ के अध्यक्ष डॉ ए शक्तिवेल ने कहा,“ मुद्रास्फीति को रोकने के लिए नीतिगत दर बढ़ायी गयी है लेकिन निर्यातकों के लिए कर्ज सुविधा की ब्याज दर का ध्यान रखा जाना चाहिए। ”(वार्ता)

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