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ओबीसी आरक्षण के बिना स्थानीय निकाय चुनाव करायें:उच्च न्यायालय

लखनऊ : इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने मंगलवार को स्थानीय निकाय चुनावों को लेकर अहम फैसला सुनाते हुए कहा क‍ि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण के बगैर तत्काल स्थानीय निकाय चुनाव कराए जाएं।न्यायालय के फैसले के बाद ओबीसी के लिए आरक्षित सभी सीटें अब सामान्य मानी जाएंगी।न्यायालय ने मंगलवार को शीतकालीन अवकाश के दौरान अपना फैसला सुनाते हुए स्थानीय निकाय चुनाव कराए जाने को लेकर यह बात कही है। अदालत ने निकाय चुनाव के लिए पांच दिसम्बर को सरकार के अनंतिम ड्राफ्ट आदेश को खारिज कर दिया है। इसके साथ ही अदालत ने राज्य सरकार को निकाय चुनावों को बिना ओबीसी आरक्षण के ही कराने के आदेश दिए हैं।

न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति सौरभ लावानिया की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया। न्यायालय ने कहा कि ओबीसी आरक्षण मुद्दे पर दाखिल 93 याचिकाओं पर सुनवाई हुई है। अदालत ने कहा कि बगैर ट्रिपल टेस्ट की औपचारिकता पूरी किए ओबीसी को कोई आरक्षण नहीं दिया जाएगा। अदालत ने यह भी कहा चूंकि नगर पालिकाओं का कार्यकाल या तो खत्म हो चुका है या फिर खत्म होने वाला है, ऐसे में राज्य सरकार/ राज्य निर्वाचन आयोग तत्काल चुनाव अधिसूचित करेंगे। चुनाव की जारी होने वाली अधिसूचना में सांविधानिक प्रावधानों के तहत महिला आरक्षण शामिल होगा। उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया है कि ट्रिपल टेस्ट संबंधी आयोग बनने पर ट्रांसजेंडर्स को पिछड़ा वर्ग में शामिल किए जाने के दावे पर गौर किया जाएगा।

अदालत ने सरकार द्वारा पिछले 12 दिसंबर को जारी उस आदेश को भी खारिज कर दिया, जिसके जरिए सरकार ने उन स्थानीय निकायों में प्रशासक तैनात करने की बात कही थी, जिनका कार्यकाल शीघ्र पूरा होने जा रहा है। याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी गई थी कि निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण एक प्रकार का राजनीतिक आरक्षण है। इसका सामाजिक, आर्थिक अथवा शैक्षिक पिछड़ेपन से कोई लेना-देना नहीं है। ऐसे में ओबीसी आरक्षण तय किए जाने से पहले उच्चतम न्यायालय द्वारा दी गई व्यवस्था के तहत डेडिकेटेड कमेटी द्वारा ट्रिपल टेस्ट कराना अनिवार्य है। यह भी दलील दी गई कि ओबीसी को आरक्षित की गई सीटों को सामान्य मानते हुए चुनाव कराया जा सकता है।

उधर, राज्य सरकार की तरफ से इसका विरोध करते हुए कहा गया था कि आरक्षित सीटों को सामान्य नहीं माना जा सकता। चुनाव के लिए सीटों के आरक्षण में सांविधानिक प्रावधानों समेत संबंधित कानूनी प्रक्रिया का पूरा पालन किया गया है। ऐसे में स्थानीय निकाय चुनाव मामले में 2017 में हुए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के सर्वे को ही आरक्षण का आधार माना जाए। सरकार ने कहा था कि इसी सर्वे को ट्रिपल टेस्ट माना जाए। उन्होंने कहा है कि ट्रांसजेंडर्स को चुनाव में आरक्षण नहीं दिया जा सकता।इससे पिछली सुनवाई में उच्च न्यायालय ने सरकार से पूछा था कि किन प्रावधानों के तहत निकायों में प्रशासकों की नियुक्ति की गई है। इस पर सरकार ने कहा कि पांच दिसंबर, 2011 के उच्च न्यायालय के फैसले के तहत इसका प्रावधान है।याचिकाकर्ता वैभव पांडे सहित कई याचिकाकर्ताओं ने अलग-अलग याचिकाएँ दायर करके नगर निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण लागू करने में प्रक्रिया का पालन न करने का राज्य सरकार पर आरोप लगाया था।

याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गई थी कि उच्चतम न्यायालय ने इसी साल सुरेश महाजन के मामले में दिये गये निर्णय में स्पष्ट तौर पर आदेश दिया था कि स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण जारी करने से पहले ट्रिपल टेस्ट किया जाएगा। यदि ट्रिपल टेस्ट की औपचारिकता नहीं की जा सकी है तो अनुसूचित जाति और जनजाति सीटों के अलावा बाकी सभी सीटों को सामान्य सीट घोषित करते हुए चुनाव कराए जाएंगे। आरोप लगाया गया था कि शीर्ष अदालत के स्पष्ट दिशानिर्देशों के बावजूद राज्य सरकार ने बिना ट्रिपल टेस्ट के गत पांच दिसंबर को ड्राफ्ट अधिसूचना जारी किया जिसमें ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों को भी शामिल किया गया था।

हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने ओबीसी आरक्षण किया रद्द, सामने आयी मिलीजुली प्रतिक्रिया

उत्तर प्रदेश में होने वाले नगर निकाय चुनाव को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ द्वारा मंगलवार को महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण रद्द करने पर संभावित उम्मीदवारों एवं मतदाताओं की मिलीजुली प्रतिक्रिया सामने आयी।नगर निकाय चुनाव में राज्य सरकार द्वारा ओबीसी को आरक्षण देने संबंधी फार्मूले को लेकर जिले में पहले भी लोगों में असंतोष देखा गया था यहां जिले में दो नगर पालिका एवं आठ नगर पंचायत है जिनमें से केवल दो नगर निकायों में अध्यक्ष पद की सीट सामान्य वर्ग के लिए निर्धारित की गई थी।(वार्ता)

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