वाराणसी। ज्ञानवापी मामले में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से दाखिल निगरानी याचिका की पोषणीयता पर मंगलवार को जिला जज उमेशचंद्र शर्मा की अदालत में बहस पूरी हो गई। पक्षकारों की बहस सुनने के बाद अदालत ने फैसला सुरक्षित रखा है।
बता दें कि सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड तथा अंजुमन इंतजामिया मसाजिद ने मुकदमे की सुनवाई करने के सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्टट्रैक) के क्षेत्राधिकार को चुनौती दी थी। सिविल जज ने 25 फरवरी 2020 को पक्षकारों की बहस सुनने तथा नजीरों के अवलोकन के पश्चात् सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड तथा अंजुमन इंतजामिया मसाजिद की चुनौती को खारिज कर दिया था। सिविल जज के फैसले के खिलाफ अंजुमन इंतजामिया मसाजिद की ओर से एक जुलाई तथा सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से 18 सितंबर को जिला जज की अदालत में निगरानी याचिका दायर की गयी है।
लंचबाद जिला जज की अदालत में निगरानी याचिका की पोषणीयता पर सुनवाई के दौरान सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से अधिवक्ता तौहिद खान व अभयनाथ यादव ने दलील दी कि सिविल जज का आदेश अंतिम आदेश है। इस आदेश से मेरा अधिकार प्रभावित होता है लिहाजा सिविल जज का आदेश निगरानी योग्य है।उसी आदेश से प्रभावित अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कि याचिका ग्रहण कर ली गई है। ऐसे में हमारी निगरानी याचिका सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया जाए। उधर प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वरनाथ की ओर से वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने आपत्ति जताते हुए दलील दी कि उक्त निगरानी याचिका सिविल जज के अंतरवर्ती आदेश के खिलाफ दाखिल की गयी है। इस तरह के आदेश के विरुद्ध सिविल निगरानी याचिका पोषणीय नहीं होती है। दोनों पक्षों ने अपने-अपने दलीलों के समर्थन में सर्वोच्च तथा उच्च न्यायालय के नजीरों को अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया।
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