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गो आधारित खेती सिर्फ गाय की गर्दन ही नहीं जन,जल और जमीन को भी बचाएगी

तो कसाई की छुरी से बची रहेगी गऊ माता की गर्दन .परंपरागत खेती की तुलना में मात्र 10 फीसद लगता है पानी

  • गिरीश पांडेय

गो आधारित (जीरो बजट) खेती से अपनी गऊ माता सलामत रहेंगी। साथ ही जन, जल और जमीन भी। यह हुई न “आमों के आम और गुठलियों के भी दाम” वाली कहावत के चरितार्थ करने की बात। ऐसा बिलकुल संभव है। बस करना यह होगा कि अपनी खेती का आधार गाय को बनाएं। खेतीबाड़ी में समय-समय पर लगने वाले कृषि निवेशों खाद, कीटनाशक के रूप में गाय के गोबर से बनी वर्मी कम्पोस्ट खाद, जीवामृत, बीजामृत, घनजीवामृत और पंचगव्य आदि का प्रयोग करें।

पानी कम लगने से डीजल और बिजली की भी बचत

चूंकि इस विधा से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी तरह के कृषि निवेश लाने की जरूरत नहीं होती। फसलों की सिंचाई के लिये पानी एवं बिजली भी सिर्फ 10 फीसद तक ही खर्च होती है। इन सबसे खेती की लागत न्यूनतम हो जाती है। पानी कम लगने से पम्पिंग सेट कम चलाना पड़ता है जिससे डीजल से होने वाला प्रदूषण भी घटता है।

निराश्रित नहीं रहेंगे गोवंश

अगर किसान गो आधारित खेती की विधा को अपनाएं तो गाय की गर्दन कसाई की छुरी से बची रहेगी। गाय और गोवंश निराश्रित एवं बदहाल नहीं रहेंगे। गो आधारित उत्पादों की मांग निकलने से गोआश्रय स्थल कालांतर में आत्मनिर्भर हो जाएंगे।
इसी मंशा से प्रदेश की योगी सरकार जिस जैविक खेती को प्रोत्साहन दे रही है, उसका एक महत्वपूर्ण घटक गो आधारित खेती भी है। इस गो आधारित या जीरो बजट खेती की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी अक्सर चर्चा करते हैं। किसान इस खेती के बाबत देख कर सीखें। खुद जीरो बजट खेती की इस विधा को अपनाएं, बाकी किसानों को भी इसके लिए प्रेरित करें। इसी मंशा से सरकार ने प्रदेश के चार कृषि विश्वविद्यालयों और सभी 20 कृषि विज्ञान केंद्रों पर गो आधारित खेती का डिमांस्ट्रेशन कराया है।

30 एकड़ खेत के लिए एक देसी गाय पर्याप्त

मालूम हो कि जीरो बजट प्राकृतिक खेती देसी गाय के गोबर एवं गोमूत्र पर आधारित है। एक देसी गाय के गोबर एवं मूत्र से बने उत्पादों से एक किसान 30 एकड़ जमीन पर जीरो बजट खेती कर सकता है। देसी प्रजाति के गोवंश के गोबर से गो आधारित खेती करने पर कालांतर में मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि होती है। साथ ही मिट्टी में जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है। जीवामृत का महीने में एक अथवा दो बार खेत में छिड़काव किया जा सकता है। बीजामृत का प्रयोग बोआई के पहले बीज शोधन में होता है।

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