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क्या अभिजात्य वर्ग का आंदोलन बन कर रह जाएगा किसान आंदोलन…

– संजीव खुदशाह

किसान आंदोलन को शुरू हुए 2 महीने हो रहे हैं। दिल्ली को घेरकर डटे हुए किसान अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं। वही सरकार भी अपने किसान विधेयक को लेकर अडिग है। इस समय किसान आंदोलन काफी जोर पकड़ रहा है । ठीक वहीं पर यदि आप गौर करें तो पाएंगे कि बहुत बड़ी संख्या में छोटे एवं भूमिहीन किसान इस आंदोलन से गायब है।

भारत में बहुत बड़ी आबादी छोटे बटाईदार 2 से 0.5 एकड़ वाले भूमि स्वामी और भूमिहीन किसानों की है। किसान विधेयक से लेकर सरकार की विभिन्न योजनाओं में इन्हें कोई लाभ नहीं मिल पाता है। यह वह किसान है जो वास्तव में खेतों में काम करता है। क्योंकि यह भूमिहीन है, इसलिए सरकार के पास इसका कोई आंकड़ा नहीं है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि का लाभ उन्हें ही मिल रहा है। जिनके नाम पर भूमि है या पट्टा है। भले ही वह किसान न हो। इसी प्रकार एमएसपी याने न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ भी भूमि वाले किसानों को ही मिलता है। भले वे खेती करें या न करें। उनके खेत की बुवाई करने वाला कोई दूसरा वास्तविक किसान है। जिसे किसान सम्मान निधि का लाभ नहीं मिल पाता है।

सरकार के विधेयक एवं किसान आंदोलन में छोटे और भूमिहीन कृषक गायब क्यों हैं ?

यह बड़ी विडंबना है कि सरकार ने 3-3 कानून किसानों पर बनाया है। लेकिन इस कानून में भूमिहीन किसानों के लिए कुछ नहीं है। इस कानून को यह मानकर बनाया गया है कि सभी किसानों के पास भूमि हैं। चाहे आप एमएसपी की बात करें या उर्वरक में छूट देने की। सभी सुविधा भूमि स्वामी पर आधारित है । यहां तक कि छोटे कृषि समान उपकरण उड़ावनी पंखों से लेकर ट्रैक्टर तक की सुविधाएं उन्हें ही मिलती है जिनके पास जमीने हैं। यही कारण है भूमिहीन किसान जिसकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है अपने आप को अपेक्षित समझता रहा है। किसान आंदोलन में यह भूमिहीन कृषक नदारद है।

क्यों किसान आंदोलन भूमिहीन कृषको तक नहीं पहुंच सका ?

किसान आंदोलन भूमिहीन कृषकों तक नहीं पहुंच पाया क्योंकि अभिजात्यद आंदोलनकारी इसे किसान मानने को तैयार नहीं है। ज्यादातर जमींदार लोग जिनकी खेती ज्यादा है। वह खुद खेती नहीं कर पाते, वह अपने खेत को अधिया, रेगहा, बटाईदार के रूप में गरीब भूमिहीन कृषकों को दे देते हैं। सारी मेहनत, बीज, दवा से लेकर उर्वरक तक वहीं खेतों में लगाते हैं। लेकिन जब एमएसपी या अन्य सुविधा जैसे बीमा , छतिपूर्ति,आर्थिक सहायता की बात होती है। तो उसे ही लाभ मिलता है जिनके नाम पर जमीन है य जमीन का पट्टा है। लाभ यदि सरकार देना चाहे तो भी नही दे सकती क्योपकि खेत मालिक द्वारा अधिया, रेगहा, बटाई पर मौखिक या गुपचुप तरिके से दिया जाता है।

अधिया, रेगहा, बटाईदार की लिखा पढ़ी याने समझौता पत्र क्यों नहीं बनाया जाता है ?

इसकी लिखा पढ़ी या दस्तावेजीकरण नहीं होने के कारण सरकार के पास इसका कोई डाटा नहीं है , कि कितने लोग , कितनी भूमि पर अधिया, बटाई पर लेते हैं? इसका भी एक खास कारण है सभी जमीन मालिक अपनी भूमि को गुपचुप तरीके से बटाई पर देते हैं। इसकी किसी प्रकार से कोई लिखा पढ़ी करने से डरते हैं। इसका कारण यह है कि लोगों में यह भ्रम फैला हुआ है कि यदि वे एग्रीमेंट या समझौता करने के बाद में जमीन को बटाई पर देंगे तो सिद्ध हो जाएगा कि उसकी जमीन कोई और बो रहा है । 3 साल तक जमीन बोना सिद्ध करके वे अपने नाम पर जमीन करा लेंगे।

इससे पहले जमीदारी उन्मूललन अधिनियम लागू होने पर ऐसा किया जा चुका है कि मौरूसी काश्तकार को भूमि उनके नाम पर कर दी गई। इस कारण लोग रेगहा अधीया या बटाईदार का एग्रीमेंट बनाने से डरते हैं।

क्या बटाईदार एग्रीमेंट बनाने से भूमि किसान के नाम पर चली जाएगी ?

जमीदारी उन्मूलन अधिनियम के तहत एक बार ऐसा किया गया है। लेकिन भविष्य में ऐसा हो इस पर कोई कानूनी प्रावधान नहीं है। याने अब अगर इस प्रकार से एग्रीमेंट बनाकर यह सिद्ध करता है कि भूमि कोई और बो रहा है तो भूमि बोने वाले के नाम पर नहीं जाएगी।

भूमिहीन कृषक महिलाएं और उनकी आवाज भी गुम है। 

इस किसान आंदोलन में बीबीसी में छपी रिपोर्ट के अनुसार सर्वाधिक श्रमबल सर्वेक्षण साल 2018-19 के आंकड़ों के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में 71.1% महिलाएं कृषि क्षेत्र में काम करती हैं। वहीं पुरुषों की संख्या मात्र 53.2% है। महिलाओं से संबंधित बहुत सी सुविधाओं की आवश्यकता है। उनके कार्यस्थल में सुविधा, पुरुष के मुकाबले कम दिहाड़ी की समस्या, किसी दुर्घटना होने पर जैसे सांप बिच्छू, किसान औजार से क्षति होना। इसकी क्षतिपूर्ति का कोई प्रावधान नहीं है।

क्या किसान आंदोलन में भूमिहीन कृषकों की मांग उठाई गई है ?

यदि भूमिहीन किसानों के नजरिए से देखें तो यह किसान आंदोलन अभिजात वर्ग का आंदोलन है। यह बड़े भूमिदार का आंदोलन है। अगर इनकी मांगों पर गौर करें तो पाते हैं कि खेतों में काम करने वाले वास्तविक किसान मजदूर के लिए यहां कुछ भी नहीं है। इस कारण खेतिहर मजदूर गरीब किसान के लिए इस आंदोलन का कोई औचित्य नहीं है। सरकार के तरफ से ना सही लेकिन किसान आंदोलन में इनके लिए कुछ तो होता। किसानों का आंदोलन उच्च वर्ग जमींदारों का आंदोलन बनकर रह गया है। इस आंदोलन में भूमिहीन छोटे किसान, बटाईदार आधिहा रेगहा लेने वाले कृषक को शामिल कर आंदोलन का विस्तार किया जा सकता था। लेकिन ऐसा नहीं हो सका।

भूमिहीन छोटे किसान बटाईदार, अधिया कृषक कौन है ?

यह वही कृषक हैं जिनका जाति के नाम पर सदियों से शोषण होता आया है। जिनकी जमीनें लूट ली गई। जिन्हें जमीन रखने का अधिकार नहीं था। इन्हें गरीबी और लाचारी के कारण जमीन बेचनी पड़ी या शुरुआत से इनके पास जमीन नहीं थी। भारत में ऐसे किसानों की संख्या पूरे किसानों का 70% है यह किसान दलित, आदिवासी और पिछड़ा वर्ग से आते हैं। व्यवस्था के द्वारा शोषित यह लोग, अभिजात्य किसानो से भी शोषण का शिकार होते हैं।

क्या भूमिहीन कृषक मजदूर का कोई संगठन है ?

यह एक तथ्य है कि अखिल भारतीय स्तर पर भूमिहीन कृषक मजदूर का कोई संगठन नहीं है । गांव या तहसील स्तर पर भी ऐसा कोई संगठन नहीं दिखाई पड़ता है जो इनकी बात को आवाज दे सके। केंद्र सरकार इस बात को जानती है कि यह अभिजात्य वर्ग का आंदोलन है। इसमें बहुत बड़ी संख्या में बहुजन किसान शामिल नहीं है। इसलिए वह निश्चिंत हैं क्योंकि इन कृषको का इस आंदोलन में कोई समर्थन नहीं मिला है ना ही मिल सकता है।

टीप

अधिया- इस प्रकिया में खेती किराये पर देनेवाला एवं देनेवाले का खर्च और लाभ का बटवारा आधा आधा होता है।
रेगहा- इस प्रकिया में एक निश्चित फसल की देनदारी पर खेत किराये पर लिया जाता है।
बटाईदार – एक निश्चित फसल या राशि की देनदारी पर खेती किराये पर लेने वाला कृषक।
मौरूषी कास्त। कार– किराये पर खेती करने वाला कृषक।

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