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केंद्रीय संस्कृति मंत्री ने ‘ प्रो. बी बी लाल-इंडिया रिडिस्कवर्ड‘ का विमोचन किया

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नई दिल्ली । केंद्रीय संस्कृति मंत्री  प्रह्लाद सिंह पटेल ने महान पुरातत्ववेत्ता प्रो. बी बी लाल के शताब्दी वर्ष के अवसर पर आज नई दिल्ली में ई-बुक ‘ प्रो. बी बी लाल-इंडिया रिडिस्कवर्ड‘ का विमोचन किया। संस्कृति मंत्रालय में सचिव श्री आनंद कुमार भी इस अवसर पर उपस्थित थे। प्रो. लाल का जन्म उत्तर प्रदेश के झांसी जिले में बैडोरा गांव में 02 मई, 1921 को हुआ। यह पुस्तक एक शताब्दी विशेष संस्करण हैं जिसे संस्कृति मंत्रालय द्वारा प्रो. बी बी लाल शताब्दी समारोह समिति द्वारा तैयार किया गया है। यह पुस्तक संस्कृति मंत्रालय की पुरातत्व के क्षेत्र में उनके बेशुमार योगदान को संस्कृति मंत्रालय की ओर से सम्मान है। इससे पूर्व, सुबह में संस्कृति मंत्री श्री प्रह्लाद सिंह पटेल व्यक्तिगत रूप से प्रो. बी बी लाल से मिले और उनके जन्म दिन पर उन्हें बधाई दी।

इस अवसरपर श्री पटेल ने कहा कि प्रो.बी बी लाल एक जीवित किवदंती हैंऔर भारत उनके जैसे व्यक्तित्व को पाकर भाग्यशाली है।उन्होंने कहा कि प्रो.लाल पुरातत्वविज्ञान के वह बहुमूल्यरत्न हैं जिन्होंने औपनिवेशिक अतीत के नीचे गड़े सभ्यतागत भारत की फिर से खोज की।उन्होंने यह भी कहा कि यह बेहद प्रसन्नता की बात है कि संस्कृति मंत्रालय इस महानपुरातत्ववेत्ता के जन्मकाशताब्दी वर्ष मना रहा है जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन मातृभूमि की सेवा में समर्पित कर दिया। श्री पटेल ने कहा कि प्रो. लाल न केवल पुरातत्ववेत्ताओं के लिए बल्कि भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए प्रेरणा के शाश्वतस्रोत हैं।

प्रो. बी. बी. लाल को वर्ष 2020 में पद्म भूषण प्रदान किया गया था। वह 1968 से 1972 तक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के महानिदेशक थे और उन्होंने भारतीय उन्नत अध्ययन संस्थान, शिमला के निदेशक के रूप में सेवा की है। प्रो. लाल ने यूनेस्को की विभिन्न समितियों में भी काम किया है। पांच दशकों तक फैले अपने कैरियर में प्रो. लाल ने पुरातत्व विज्ञान के क्षेत्र में बेशुमार योगदान दिया। प्रो. लाल को 1944 में तक्सिला में सर मोर्टिमर व्हीलर द्वारा प्रशिक्षित किया गया था और बाद में वह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में नियुक्त हुए। प्रो. लाल ने हस्तिनापुर (उप्र), शिशुपालगढ़ (ओडिशा), पुराना किला (दिल्ली), कालिबंगन (राजस्थान) सहित कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थलों की खुदाई की। 1975-76 के बाद से, प्रो. लाल ने रामायण के पुरातात्विक स्थलों के तहत अयोध्या, भारद्वाज आश्रम, श्रंगवेरपुरा, नंदीग्राम एवं चित्रकूट जैसे स्थलों की जांच की। प्रो. लाल ने 20 पुस्तकें और विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय जर्नलों में 150 से अधिक शोध लेख लिखे हैं।

 

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