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राजस्थान में मचा राजनीतिक घमासान, बीटीपी के दो विधायकों ने किया समर्थन वापसी का ऐलान

जयपुर : राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार पर एक बार फिर से राजनितिक संकट गहराता नजर आ रहा है। इस बार सरकार को समर्थन देने वाले बीटीपी के दो विधायकों ने समर्थन वापसी का ऐलान कर दिया है। हालांकि इन्हें मनाने की कोशिशें जारी हैं। समर्थन वापसी करने वाले इन दोनों विधायकों का आरोप है कि कांग्रेस ने भाजपा के साथ मिलकर पंचायत चुनावों में उसके प्रत्याशी को हराया है, ऐसे में अब सरकार को सर्थन जारी रखना संभव ही नहीं है।

पंचायत चुनाव में मिली हार के बाद अब राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार के सामने राजनितिक मुश्कलें भी आने लगी हैं। भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) ने राज्य की कांग्रेस सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया है। पार्टी के दोनों विधायक राजकुमार रोत और रामप्रसाद ने बाकायदा अपने सोशल मीडिया पर इसका ऐलान भी कर दिया। बीटीपी के इन विधायकों का आरोप है कि कांग्रेस ने सहयोगी होने के बावजूद भी पंचायत चुनावों में उसके साथ छल किया है। हालांकि समर्थन वापसी की यह बात अभी सोशल मीडिया तक ही सीमित है, लेकिन सरकार भी मामले की नजाकत समझने लगी है ऐसे में वह अपने इस साथियों को सफाई देने की पूरी कोशिश कर रही है।

केबिनेट मंत्री, प्रताप सिंह खाचरियावास का कहना है कि यह सही है कि बांसवाड़ा में निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीता है जिसे कांग्रेस के साथ साथ बीजेपी ने भी समर्थन दिया था, ऐसे में बीटीपी प्रत्याशी की जिला प्रमुख चुनावों में हार हुई, लेकिन क्रॉस वोटिंग भी हुई जिसका यह मतलब नहीं है की हम गठबंधन धर्म को नहीं निभा रहे हैं। हमारी पार्टी और सरकार गठबंधन धर्म का पालन कर रही है और सभी विधायकों के साथ बीटीपी के विधायकों को भी साथ लेकर ही आगे बढ़ रही है।

इस तरह शुरू हुआ विवाद
दरअसल 24 घंटे पहले ही बांसवाड़ा में जिला प्रमुख के लिए चुनाव हुए थे। इस पद पर निर्दलीय नामांकन भरकर चुनाव लड़ने वाली भाजपा की सूर्या अहारी ने कांग्रेस के समर्थन से बीटीपी समर्थित पार्वती को एक वोट से हराकर जिला प्रमुख पद पर जीत हासिल की। यहां जिला परिषद की 27 सीटों में से बीटीपी समर्थित 13 निर्दलीय जीतकर आए थे।

वहीं कांग्रेस के 6 और भाजपा के 8 उम्मीदवार जीते थे। ऐसे में अपने ही आदिवासी इलाके के गढ़ में कांग्रेस और भाजपा के सहयोग से निर्दलीय प्रत्याशी का जीतना बीटीपी को काफी अखर रहा है। बीटीपी का आरोप है कि इस जिला प्रमुख चुनाव में बीटीपी को हराने के लिए पहली बार भाजपा व कांग्रेस ने हाथ मिला लिया।

इसी रणनीति के चलते कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा, वहीं भाजपा ने अपनी उम्मीदवार सूर्या अहारी को निर्दलीय के रूप में नामांकन भराया जिसके चलते यह सीट उसके खाते से चली गई। उधर बीजेपी ने भी इसे सरकार के बैठे लोगों में ही विश्वास की बड़ी कमी का नतीजा बताया।

प्रतिपक्ष के नेता गुलाब कटारिया का कहना है कि इस सरकार का अपने साथियों पर ही विश्वास नहीं है। आपस में खिचातानी है। जहां तक हमारा कांग्रेस के साथ मिल जाए का सवाल है यह आरोप निराधार है। हमारी पार्टी से अलग होकर निर्दलीय चुनाव लड़ा था और वह जीत गई। हम भी इस मामले की जांच करवा रहे हैं।

वैसे राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार पर जब इस साल के मध्य में राजनितिक संकट आया था तब जब तक बसपा से कांग्रेस में शामिल होने वाले विधायकों पर फैसला नहीं आ गया तब तक बीटीपी के इन्ही दोनों विधायकों की बड़ी भूमिका हो गई थी। सरकार बचाने के लिए जयपुर और जैसलमेर में विधायकों की बाड़ेबंदी में भी ये दोनों विधायक शामिल होकर सरकार के साथ ही थे। ऐसे में यह देखना होगा कि अब सीएम अशोक गहलोत अपने साथी इन दोनों विधायकों को किस तरह मना पाते हैं।

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