हल्दी कर सकती है कुशीनगर के किसानों को हेल्दी

हल्दी के उत्पादन में इरोड, सांगली और गुंटूर बन सकता है कुशीनगर

हल्दी कुशीनगर के किसानों को हेल्दी बना सकती है। हल्दी के उत्पादन के मामले में भगवान बुद्ध का परिनिर्वाण स्थली कुशीनगर दक्षिण भारत का इरोड,सांगली,गुंटूर और निजामाबाद बन सकता है। शर्त यह है कि सिद्धार्थनगर के कालानमक धान की तरह प्रदेश सरकार इसको भी कुशीनगर का ओडीओपी (एक जिला एक उत्पाद) घोषित कर इसको भी लोकप्रिय करे।

मालूम हो कि कुशीनगर में अनियोजित और परंपरागत तरीके से हल्दी की खेती का इतिहास पुराना है। प्रमुख रूप से दुदही, रामकोला, बिसुनपुरा, खड्डा, सेवरही,कप्तानगंज, कठकुइयाँ, और फाजिलनगर में इसकी खेती होती रही है। 2014 से टाटा ट्रस्ट के सहयोग से किसानों के बीच काम करने वाली संस्था सस्टेनेबले ह्यूमन डेवलपमेन्ट एसोसिएशन (एसएचडीए ) ने इसकी खेती का नियोजित प्रयास शुरू किया।

संबन्धित विभागों से जो डाटा मिला उसके अनुसार पूरे जिले में करीब 800 हेक्टेयर पर हल्दी की खेती होती है। प्रति हेक्टेयर उपज करीब 36.77 कुंतल है। पर जमीनी तस्वीर कुछ अलग है। संस्था की ओर से एकत्र आंकड़े के अनुसार अकेले रामकोला ब्लाक में ही 200 से अधिक हेक्टेयर पर हल्दी की खेती होती है। इस हिसाब से हल्दी की खेती का रकबा इससे करीब तीन गुना होगा।

ट्रायल में लोकल और विकसित प्रजातियों की उपज क्रमशः 150 से 400 कुंतल तक है। मौजूदा समय में जिले के करीब 10 हजार किसान हल्दी की खेती से जुड़े हैं। खेती से जुड़े बीएम त्रिपाठी के अनुसार कुशीनगर के कृषि जलवायु क्षेत्र (एग्रो क्लाइमेट जोन) के अनुसार राजेंद्र सोनिया, राजेंद्र सोनाली, नरेंद्र हल्दी-1 सबसे अधिक उपज देने वाली प्रजातियां हैं। अगर किसानों को व्यापक स्तर पर खेती के उन्नत तौर-तरीकों के बाबत प्रशिक्षण दिया जाए।

जरूरत के अनुसार उनको बेहतर प्रजातियों के गुणवत्ता के बीज उपलब्ध कराए जाएं, पैदावार के प्रसंस्करण, पैकिंग और बाजार दिलाने में सहयोग किया जाय तो हल्दी कभी गरीबी,भुखमरी और कुपोषण के लिए बदनाम इस अति पिछड़े जिले के किसानों की किस्मत बदल सकती है।

सीमित स्तर पर टाटा ट्रस्ट की ओर से इस बाबत प्रयास भी शुरू किए गए हैं। मसलन 1150 किसानों को जोड़कर एकं कंपनी बनाई गई। सभी किसान इसमें स्टेकहोल्डर हैं। सीमित क्षमता की एक प्रोसेसिंग इकाई भी लगाई गई है, पर कुशीनगर की हल्दी भी कालानमक की तरह ब्रांड बने इसके लिए सरकार को आगे आना होगा।

कुशीनगर में हल्दी की खेती की संभावनाएं

कुशीनगर बिहार से सटा पूर्वांचल का एक जिला है। यह फोर लेन की सड़क से बिहार से लेकर बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों से इसकी बेहतर कनेक्टिविटी है। इंटरनेशनल एयरपोर्ट बन जाने के बाद तो इसकी पहुँच विदेशों तक हो जाएगी। बुद्ध से जुड़ा होने के नाते ब्रांडिंग के जरिए कालानमक की तरह कुशीनगर की हल्दी में भी ब्रांड बनने की पूरी क्षमता है।

सेहत और सौंदर्य को सलामत रखती है हल्दी

हर घर के रोजमर्रा की जरूरत जल्दी खूबियों से भी भरपूर है। एंटीबैक्टीरियल, एंटीइंफ्लेमेटरी होने के नाते हल्दी दर्द, चोट,मोच,दांत के रोगों में फायदेमंद है। इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता होती। यह रक्त शोधक भी होती है। स्किन के लिए यह बेहद फायदेमंद है। इसमें मौजूद मेलोटिन नींद लाने में मददगार है। करक्यूमिन जिसकी वजह से हल्दी का रंग पीला होता है वह कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को रोकता है। यह एक उष्णकटिबंधीय पौधा है। खास बात यह है कि बाग में भी इसकी खेती हो सकती है। इसका उपयोग मसाला, रंग-रोगन, दवा व सौन्दर्य प्रसाधन के क्षेत्र में होता है। इसके कंद से टर्मेरॉल (तैलीय पदार्थ)का उत्पादन होता है। इसके कंद में उच्च मात्रा में उर्जा (कार्बोहाइड्रेट के रूप में ) व खनिज होते हैं। इसके बिना पाक विद्या अधुरा होता है।

हल्दी के उत्पादन में भारत का एकाधिकार

इसके उपज पर भारत का एकाधिकार है। दुनियां की उपज में भारत की हिस्सेदारी करीब 80 फीसद है। निर्यात में भारत का हिस्सा करीब 60 फीसद है। अमेरिका, ब्रिटेन, बांग्लादेश प्रमुख निर्यातक देश हैं। रोग प्रतिरोधक गुणों के कारण

कोरोना के बाद बढ़ी मांग

कोरोना के बाद अन्य देशों खासकर मिडिल ईस्ट में इसकी मांग बढ़ी है.भारत में तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, महाराष्ट्र और पुरवोत्तर के राज्यों में प्रमुख रूप से इसका उत्पादन होता है।

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