वाराणसी l कलयुग के कबीर पूर्व वन क्षेत्राधिकारी जगदीश नारायण सिंह ऋषिवंशी ने अब तक एक दर्जन से अधिक किताबें लिख चुके हैंl 83 साल उम्र में भी किताबें लिखने का सिलसिला अभी जारी है l त्रिभाषी श्रीमद्भागवत गीता लेखन पूरा हो चुका है, जल्द ही इसका प्रकाशन होने वाला है l इस किताब दोहे सभी पन्नों पर उर्दू, हिंदी और संस्कृत मैं लिखे गए हैं l किताबें लिखने का श्रेय संतो के आशीर्वाद वचन को मानते हैं l श्री सिंह 1957 से लेकर 1960 तक चकबंदी विभाग में कार्यरत थे l इसके बाद 7 जून 1961 से 1995 तक वन विभाग में वन क्षेत्र अधिकारी पद पर कार्य किया l
जगदीश नारायण सिंह ऋषिवंशी ने बताया कि चित्रकूट में स्थित ईश्वरी अवधारणा अनुसुइया आश्रम है l इसके महंत स्वामी परमहंस परमानंद जी महाराज के परम शिष्य सच्चिदानंद महाराज धारकुंडी, पीठाधीश्वर भगवान आनंद जी महाराज वाराणसी, पीठाधीश्वर अड़गड़ानंद जी महाराज तथा भीखमपुर सेवापुरी के महेशानंद आदि महापुरुषों का आशीर्वाद मिला l समकालीन अघोर पीठ के अघोश्वर स्वामी राम जी महाराज द्वारा आदेशित और निर्देशित किया गया आप क्षत्रियों के बारे में एक किताब लिखो जो ऐतिहासिक हो l श्री सिंह ने महाराष्ट्र से कहा कि मैं इंटरमीडिएट पास हूं l दूसरा समाज से हटकर वन विभाग में काम कर रहा हूं l आदिवासी बनवासी के संबंध मैं थाना अध्यक्ष की तरह वर्दी पहनकर व्यवस्था में लगा हूं l उन्होंने कहा कि कबीर तुलसीदास जी क्या योग्यता थी l सेवानिवृत्त होने के बाद लुप्त हो रहे क्षत्रियों के इतिहास के बारे में एक किताब जरूर लिखना l इतने किताबें लिखना उनकी देन है l किताबों का लेखन कर श्री सिंह ने समाज के लिए निशुल्क वितरित किया l
श्री सिंह ने बताया कि उनकी किताबें इतिहास लौटा, ऋषिवंशी क्षत्रियों का इतिहास, राष्ट्रीय धरातल पर वृहद क्षत्रिय समाज, नई खोज नई विचारधारा, आदिवासी संस्कृति एवं भारतीय सभ्यता, आधुनिक काशीराज का इतिहास, भोजपुरी भाषा का उद्गम और विकास, छत्रिय वंश परिचय नामक गद्य में संकलित तथा भोजपुरी गीत एवं लोक संगीत, भोजपुरी गीत माला इत्यादि किताबों का प्रकाशन हो चुका है l इन कृतियों के प्रकाशन में सबसे बड़ा योगदान जेष्ठ पुत्र पूर्व मंत्री उत्तर प्रदेश सरकार वीरेंद्र सिंह का है l उन्होंने कहा कि जब तक जीवन है अपनी लेखनी द्वारा समाज के व्यक्तित्व और कृतित्व को प्रदर्शित करते रहेंगे l