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कोरोना मरीजों पर अब ब्लैक फंगस का हमला, इन राज्यों मे मिले केस…

आईसीएमआर ने जारी की एडवाइजरी

नई दिल्ली । कोरोना महामारी से देश में बचे कोहराम के बीच एक और खतरा सामने आ रहा है। दिल्ली और गुजरात में कोरोना संक्रमण को मात देने वाले लोगों को ब्लैक फंगस यानी काली फफूंद का अटैक देखने को मिल रहा है। यह बीमारी आंखों पर सबसे ज्यादा हमला करता है। कुछ मरीजों में आंखों की रोशनी जाने के मामले सामने आए हैं। डॉक्टरी भाषा में इस बीमारी को म्यूकॉमिकोसिस कहा जाता है। गुजरात के सूरत में इस बीमारी के 40 से अधिक केस सामने आए हैं। इनमें से आठ की आंखों की रोशनी चली गई है। दिल्ली में भी डॉक्टरों का कहना है कि कोरोना महामारी सामने आने के बाद ब्लैक फंगस के मरीज भी बढ़ गए हैं।

वहीं भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने एडवाइजरी जारी कर बताया है कि कोरोना से ठीक हो चुके मरीजों के लिए यह म्यूकोरमाइकोसिस जानलेवा साबित हो रहा है। ब्लैक फंगस या म्यूकोरमाइकोसिस वातावरण में मौजूद रोगाणुओं से लड़ने की क्षमता को कमजोर कर देता है । सही समय पर इलाज नहीं मिलने से मरीजों की जान तक जा सकती है। खासकर यह बीमारी डायबिटीज और क्रॉनिकल बीमारी वालों के लिए खतरनाक है।

क्या है यह ब्लैक फंगस
यूएस सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के अनुसार, म्यूकॉमिकोसिस या ब्लैक फंगस एक दुर्लभ फंगल संक्रमण है। इसे श्लेष्मा रोग या ज़ाइगोमाइकोसिस भी कहा जाता है। यह एक गंभीर संक्रमण है जो श्लेष्म या कवक के समूह के कारण होता है जिसे श्लेष्माकोशिका कहा जाता है। ये मोल्ड पूरे वातावरण में रहते हैं। यह आमतौर पर हवा से फंगल बीजाणुओं को बाहर निकालने के बाद साइनस या फेफड़ों को प्रभावित करता है। यह त्वचा पर कट, जलने या अन्य प्रकार की त्वचा की चोट के बाद भी हो सकता है।

कब नजर आता है यह फंगस
कोरोना संक्रमण से उबरने के दो-तीन दिन बाद काली फफूंद के लक्षण दिखाई देते हैं। यह फंगल संक्रमण सबसे पहले साइनस में तब होता है जब रोगी कोविड -19 से ठीक हो जाता है और लगभग दो-चार दिनों में यह आंखों पर हमला करता है। सूरत के किरण अस्पताल के ईएनटी विशेषज्ञ डॉ. संकेत शाह के मुताबिक, इसके अगले 24 घंटों में यह संक्रमण मस्तिष्क तक पहुंच जाता है। ब्लैक फंगस या म्यूकोरमाइकोसिस में सरदर्द, बदन दर्द, तेज बुखार, खांसी, सांस लेने में समस्या, आंखों और नाक के पास लाल होना, खून की उल्टी, मानसिक स्थिति बदल जाना जैसे कई लक्षण दिखते हैं। केंद्र सरकार और आईसीएमआर ने इसे नजर अंदाज नहीं करने की सलाह दी है। ऐसी स्थिति होने पर चिकित्सकों से परामर्श लेने को कहा है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और (आईसीएमआर) ने बीमारी की निगरानी, जांच और इलाज के लिए एडवाइजरी जारी की है। इसमें बताया गया है ‘‘ ब्लैक फंगस या म्यूकोरमाइकोसिस का इलाज नहीं किया जाए तो इससे मरीज की जान तक जा सकती है। हवा में मौजूद फफूंद सांस के रास्ते शरीर में पहुंचता है और धीरे-धीरे फेफड़े को प्रभावित करना शुरू कर देता है’’

किसे है सबसे ज्यादा खतरा…
डॉ. संकेत शाह के अनुसार, फंगल संक्रमण कमजोर प्रतिरक्षा वाले लोगों पर हमला करता है। सबसे बुरी तरह प्रभावित होने वालों में अनियंत्रित शुगर लेवल (मधुमेह के लोग) और ऐसे लोग हैं जिन्हें स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हैं या वे दवाएं लेते हैं जो कीटाणुओं और बीमारी से लड़ने की शरीर की क्षमता को कम करती हैं। किरण अस्पताल में ईएनटी विभाग के अध्यक्ष डॉ. अजय स्वरूप के अनुसार, संक्रमण आमतौर पर उन रोगियों में देखा जाता है, जो कोविड -19 से ठीक हो गए हैं, लेकिन उनमें मधुमेह, किडनी या कमजोर हार्ट या कैंसर जैसे कॉमरेडिडिटीज हैं।

डायबीटिज मरीजों के लिए यह है खतरनाक
आईसीएमआर-स्वास्थ्य मंत्रालय के परामर्श में कहा गया इस बीमारी का सबसे बड़ा खतरा, मधुमेह का अनियंत्रित होना, स्ट्रॉयड की वजह से प्रतिरक्षण क्षमता में कमी, लंबे समय तक आईसीयू में रहने वाले मरीजों पर यह जल्द प्रभाव छोड़ता है। इस संक्रमण से बचने के लिए कोरोना मरीजों को अस्पतालों से छुट्टी देने के बाद भी ब्लड में ग्लूकोज की निगरानी जरूरी है। एंटीबायोटिक, एंटीफंगल दवा, स्ट्रॉयड और संक्रमणमुक्त पानी का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

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