Politics

आरा की आवाम ने सुदामा प्रसाद को कहा ‘लाल सलाम’, 35 साल बाद लहराया ‘लाल झंडा’

आरा : दलित-गरीबों और किसानों की राजनीतिक दावेदारी के अग्रणी योद्धा सुदामा प्रसाद ने आरा संसदीय सीट पर तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री राजकुमार सिंह(आर.के.सिंह) के न सिर्फ हैट्रिक लगाने के सपने को चूर किया साथ ही 35 साल के लंबे इंतजार के बाद इस सीट पर अपनी पार्टी के ‘लाल झंडे’ को भी बुंलद किया।बिहार में आरा संसदीय संसदीय सीट से भारत की कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी-लेनिनवादी (भाकपा-माले) उम्मीदवार सुदामा प्रसाद ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) प्रत्याशी केन्द्रीय मंत्री आर.के.सिंह को 59 हजार 808 मतों के अंतर से पराजित किया।

चुनाव आयोग के अनुसार, भाकपा माले उम्मीदवार सुदामा प्रसाद को 529382 मत मिले जबकि उनके प्रतिद्धंदी भाजपा के श्री सिंह को 469574 मत मिले। सुदामा प्रसाद न सिर्फ पहली बार सांसद बनें, वहीं वह आरा संसदीय सीट पर 35 साल बाद अपनी पार्टी के लाल झंडा को बुंलद करने में भी कामयाब हुये।इससे पूर्व वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में इंडियन पीपुल्स फ्रंट (आईपीएफ) के बैनर तले आरा संसदीय सीट से रामेश्वर प्रसाद चुनाव जीते थे। भाकपा माले पहले आईपीएफ के बैनर तले चुनाव लड़ते रहा है। इस चुनाव में आईपीएफ ने 10 प्रत्याशी उतारे लेकिन उसे केवल आरा सीट पर जीत मिली। आरा संसदीय सीट पर रामेश्वर प्रसाद ने जनता दल के तुलसी सिंह को पराजित किया था। कांग्रेस के दिग्गज बलिराम भगत तीसरे नंबर पर रहे थे।

बिहार के भोजपुर जिले के अगिआंव प्रखंड के पवना में मिठाई की एक छोटी सी दुकान चलाने वाले स्व. गंगादयाल साह के घर दो फरवरी 1961 को जन्में सुदामा प्रसाद भोजपुर में भूमिहीन-गरीब-बटाईदार किसानों के संघर्षो, गरीबों-वंचितों की राजनीतिक दावेदारी और सामाजिक बदलाव की लड़ाई के चर्चित योद्धा हैं। बचपन में ही मिठाई की दुकान पर कभी-कभार बैठने के क्रम में उन्हें सामंती और पुलिस जुल्म का सामना करना पड़ा, जिसने उस छोटे से बालक को भीतर से बेचैन कर दिया और वे भाकपा-माले के नेतृत्व में भोजपुर में चल रहे बदलाव की लड़ाई में खींचे चले आए।वर्ष 1978 में सुदामा प्रसाद ने हर प्रसाद दास जैन स्कूल, आरा से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद जैन कॉलेज आरा में नामांकन कराया, लेकिन 1982 में पढ़ाई बीच में ही छोड़कर वह भाकपा-माले के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए और सांस्कृतिक मोर्चे पर काम की शुरूआत की।

युवा नीति के निर्देशन में उन्होंने सरकारी सांढ़, पत्ताखोर, कामधेनु, सिंहासन खाली करो जैसे नाटकों में जबरदस्त अभिनय किया। पुलिस एवं सामंती ताकतों से दो-दो हाथ करते हुए सुदामा प्रसाद ने भोजपुर में क्रांतिकारी सांस्कृतिक राजनीति को एक नई धार देने का काम किया।वर्ष 1979 से 83 तक सुदामा प्रसाद मूलतः सांस्कृतिक संगठन में सक्रियता के बाद वर्ष1984 में भोजपुर-रोहतास जिला के आइपीएफ के सचिव चुने गए और इसके बाद शुरू हुई संघर्षों की असली कहानी। वर्ष 1989 में उनके नेतृत्व में भोजपुर जगाओ-भोजपुर बचाओ आंदोलन काफी चर्चित रहा। इसके तहत सोन नहरों के आधुनिकीकरण, कदवन जलाशय का निर्माण, सोन एवं गंगा में पुल निर्माण, आरा-सासाराम बड़ी रेल लाइन का निर्माण सहित जमीन-मजदूरी के सवालों पर लंबा आंदोलन चलाया गया। आज उसी आंदोलन का नतीजा है कि सोन एवं गंगा नदी में पुल का निर्माण हो चुका है, आरा-सासाराम बड़ी रेल लाइन का निर्माण भी हो चुका है।

सुदामा प्रसाद ने वर्ष 1990 में आइपीएफ के बैनर से पहली बार आरा विधानसभा से चुनाव मैदान में ताल ठोका लेकिन जीत नहीं मिली।उन्होंने शोभा मंडल से अंतरजातीय शादी करके सामाजिक सुधारों की प्रक्रिया में एक अनुकरणीय उदाहरण पेश किया। सुदामा प्रसाद ने 2015 के विधानसभा चुनाव में तरारी विधानसभा सीट पर पहली जीत हासिल की और फिर 2020 के चुनाव में भी इसी सीट पर सफलता हासिल की।विधानसभा के भीतर किसानों और जनता के विभिन्न तबकों के सवालों पर अपने आक्रामक तेवर एवं एजेंडे के जरिए उन्होंने पूरे बिहार में जनता के एक सच्चे जनप्रतिनिधि की पहचान बनाई है। वह बिहार विधानसभा में पुस्तकालय समिति के सभापति बनाए गए। उनके नेतृत्व में संभवतः भारत के संपूर्ण विधायी इतिहास में पहली बार पुस्तकालय समिति की ओर से प्रतिवेदन पेश किया.।

अंतराष्ट्रीय हेरिटेज घोषित पटना स्थिति खुदाबख्श लाइब्रेरी को बचाने के संघर्ष में का. सुदामा प्रसाद की भूमिका इतिहास में दर्ज हो चुकी है।उन्हें कृषि एवं उद्योग विकास समिति का सभापति बनाया गया और वे अभी इस पद पर बने हुए हैं। इस समिति के सभापति रहते हुए उन्होंने बटाईदार किसानों के पंजीकरण एवं उनके लिए पहचान पत्र जारी करने जैसी पहले से उठाई जा रही मांगों को समिति के विमर्श का एजेंडा बनाया। यह उनकी समिति द्वारा उठाए गए कदमों का ही नतीजा है कि आज बिहार में सीमित दायरे में ही सही बटाईदार किसानों का पंजीकरण शुरू हो चुका है। कृषि बजट में बटाईदार किसानों के लिए अलग से राशि व योजनाओं का प्रावधान करने के सवाल पर उन्होंने हाल ही में राज्य के 20 जिलों का दौरा किया और उससे संबंधित प्रतिवेदन राज्य सरकार को सौंपा है।सदन के बाहर सड़कों पर भी वे धान खरीदो आंदोलन का लगातार नेतृत्व करते रहे हैं।

वर्ष 2014 में उनके द्वारा शुरू किए गए आंदोलन का ही नतीजा था कि भोजपुर में 1660 रु. प्रति क्विंटल की दर से बटाईदार किसानों का 28 हजार धान खरीदा गया। कदवन जलाशय सहित छोटे व्यापारियों के सवालों पर भी उनकी पहलकदमियां काफी चर्चा में रही हैं।सुदामा प्रसाद फिलहाल भाकपा (माले) की राज्य स्थायी समिति के सदस्य तथा अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय संगठन सचिव भी हैं।(वार्ता)

BABA GANINATH BHAKT MANDAL  BABA GANINATH BHAKT MANDAL

Related Articles

Back to top button