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सरकार ने राज्यों को दिखाई ‘लंका’, दिया राजकोषीय अनुशासन का सबक

नयी दिल्ली : सरकार ने आज सभी राजनीतिक दलों को श्रीलंका के राजनीतिक एवं आर्थिक संकट की विस्तार पूर्वक जानकारी देने के साथ उन्हें संदेश दिया कि उनकी राज्य सरकारों को मुफ्त की रेवड़ियां बांटने की आदत छोड़ कर राजकोषीय अनुशासन का कड़ाई से पालन करना चाहिए।सरकार ने संसद के मानसून सत्र के दूसरे दिन आज शाम को दो घंटे से अधिक चली , इस बैठक में 28 राजनीतिक दलों के 38 नेताओं ने शिरकत की और सरकार की ओर से विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कमान संभाली। बैठक में डॉ. जयशंकर, संसदीय कार्य मंत्री प्रल्हाद जोशी, सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर, मत्स्य पालन राज्य मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला, संसदीय कार्य राज्य मंत्री अर्जुनराम मेघवाल एवं वी मुरलीधरन, विदेश राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी एवं डॉ. राजीव रंजन प्रसाद सिंह कुल आठ मंत्री शामिल हुए।

सूत्रों ने बताया कि सर्वदलीय बैठक में श्रीलंका से हासिल सबक और राज्यों में राजकोषीय अनुशासन के बारे में भी चर्चा हुई। हालांकि वाईएसआर कांग्रेस, तेलंगाना राष्ट्र समिति, द्रविड़ मुनेत्र कषगम, तृणमूल कांग्रेस सहित कुछ पार्टियों ने इस बारे में चर्चा का विरोध किया और केन्द्र सरकार की राजकोषीय स्थिति के बारे में जानकारी पहले देने की मांग की। जबकि कई पार्टियों ने राजकोषीय अनुशासन के बारे में चर्चा के विचार का समर्थन किया।बैठक के बाद विदेश मंत्री डॉ. जयशंकर ने कहा कि सर्वदलीय बैठक में 46 पार्टियों को आमंत्रित किया गया था लेकिन केवल 28 दलों ने शिरकत की। उन्होंने कहा कि श्रीलंका को लेकर देश में चिंता है कि कहीं उसका प्रभाव भारत पर ना पड़े। यदि किसी पड़ोसी देश में अस्थिरता या हिंसा होती है तो यह हमारे लिये गहरी चिंता की बात है।

उन्होंने कहा कि श्रीलंका के साथ हमारे कई लंबित मुद्दे हैं जिनमें मछुआरों वाला मुद्दा बैठक में भी उठा।विदेश मंत्री ने कहा कि बैठक में दो प्रेजेंटेशन दिये गये। एक, विदेश नीति के परिप्रेक्ष्य से राजनीतिक स्थिति के बारे में था जिसमें सभी नेताओं को विस्तारपूर्वक बताया गया कि ऋण के कारण आर्थिक संकट आया और उससे राजनीतिक अस्थिरता आयी। भारत ने श्रीलंका को 3.8 अरब डॉलर की सहायता दी है। अन्य किसी देश ने श्रीलंका को संकट के समय इतनी सहायता नहीं मुहैया करायी है। इसके अलावा हमने 40 करोड़ डॉलर के दोनों देशों के बीच मुद्रा विनिमय का प्रस्ताव किया है जिस पर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ श्रीलंका की बातचीत चल रही है। हम उसमें मदद करेंगे और हम यह भी देखेंगे कि आगे हम क्या मदद कर सकते हैं।

डॉ. जयशंकर ने कहा कि कई सदस्यों को श्रीलंका के सबक को लेकर चिंता थी और हमें अंदाज़ा था कि ऐसे सवाल पूछे जाएंगे। हमने कुछ भ्रांतिपूर्ण समाचार सामग्री भी देखी थी जिसमें कहा गया था कि जो कुछ भी श्रीलंका में हाे रहा है, वह भारत के कुछ हिस्सों में हाे सकता है। इसलिए हमने वित्त मंत्रालय को राज्यवार ढंग से एक प्रेजेंटेशन बनाने को कहा था जिसमें व्यय एवं राजस्व में तुलना, ऋण एवं सकल राज्य घरेलू उत्पाद, वृद्धि दर एवं बजटीय/गैरबजटीय ऋण की तुलना बतायी गयी। कुछ विद्युत उत्पादन कंपनियों एवं विद्युत वितरण कंपनियों के बकाया और लंबित गारंटी के मसले हैं। इस प्रकार से बैठक में बहुत अच्छी चर्चा हुई। सदस्यों ने दिलचस्पी से सुना कि हमने कितना किया है।

विदेश मंत्री ने कहा कि श्रीलंका की स्थिति को हमने पड़ोसी प्रथम की नीति से बहुत मानवीय ढंग से सुलझाया है।वे अब भी बहुत ही नाज़ुक हालात में हैं। उनका आईएमएफ के साथ विचार विमर्श हो रहा है, जो भी सहयोग हम उनकी एजेंसियों को दे सकते हैं, हम निश्चित रूप से देंगे। उन्होंने कहा कि श्रीलंका से हमें राजकोषीय अनुशासन एवं सुशासन के बड़े सबक सीखने चाहिए और मुफ्त की रेवड़ियों को बांटने की आदत से बचना चाहिए। सौभाग्य से हमारे देश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में हमारे यहां राजकोषीय अनुशासन एवं सुशासन दाेनों मामलों में पर्याप्त से अधिक कदम उठाये गये हैं।(वार्ता)

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