मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम सामाजिक समरसता के प्रतीक हैं। निषाद राज को गले लगाना, गीध राज जटायू का उनके पुत्र की तरह अंतिम संस्कार करना, कोलों और किरातों के बीच रम जाना, बानर राज सुग्रीव से दोस्ती के जरिए उन्होंने सामाजिक समरसता की बहुत ऊंची मिसाल पेश की। तदनुसार कुछ कालखंडों को अपवाद मान लें तो राम की अयोध्या भी सामाजिक समरसता की नजीर रही है।
जैन, सिख और बौद्ध धर्म के लिए भी अहम रही है अयोध्या
अयोध्या में हिन्दू धर्म के सभी संप्रदायों के मंदिर और अखाड़े हैं। श्रीराम की जन्म स्थली होने के साथ ही यह पांच जैन तीर्थंकरों भगवान आदिनाथ, अनंतनाथ, सुमतिनाथ, अजीतनाथ, अभिनंदन नाथ की जन्म स्थली है। अयोध्या में प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ (ऋषभ देव) मंदिर है। इसमें उनकी 21 फीट ऊंची प्रतिमा विराजमान है। सिख समाज के ब्रह्मकुंड और नजर बाग में दो गुरद्वारे हैं। इनका संबंध गुरु नानक, गुरु तेग बहादुर और गुरु गोविंद सिंह से है। सम्राट अशोक ने भी अपने शासनकाल में अयोध्या में कई बौद्ध इमारतों का निर्माण कराया था। यह अयोध्या के सामाजिक समरसता के उदाहरण है। इसी सामाजिक समरसता की आज देश को सर्वाधिक जरूरत है।
राम मंदिर आंदोलन के सलाखा पुरुष गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर रहे और वर्तमान पीठाधीश्वर एवम उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पूज्य गुरुदेव ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ ता उम्र इस सामाजिक समरसता के मुखर पैरोकार थे। वह न केवल इसके पैरोकार थे बल्कि निजी जीवन में इसे जीया भी। ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ की सबसे बड़ी खूबी यह थी कि उनके सामाजिक समरसता के संदेश के सारे उदाहरण श्री राम के जीवन से जुड़े उन्ही पात्रों से होते थे जिनका जिक्र ऊपर किया जा चुका है।अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मार्ग दर्शन और ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ के शिष्य योगी आदित्यनाथ की देखरेख में अयोध्या में इन पात्रों से जुड़े सभी स्थान नए सिरे से सज संवर रहे हैं। यकीनन सामाजिक समरसता के लिहाज से बेहद संपन्न रही राम की अयोध्या की वजह से सामाजिक समरसता का यह संदेश और चटक होगा। इसका संदेश दूरगामी और असर बहुत व्यापक होगा।
नई अयोध्या और प्रभावी ढंग से देगी समरसता का संदेश
अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मार्ग दर्शन और ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ के ही शिष्य योगी आदित्यनाथ की निगरानी में राम के जीवन से अभिन्न रूप से जुड़े निषाद राज, माता सबरी और अहिल्या मंदिर, सुग्रीव किला को नए सिरे से सजाया संवारा जा रहा है। गीद्ध राज जटायू की मूर्ति स्थापित हो चुकी है। सामाजिक समरसता को और व्यापक करने के लिए अयोध्या में निर्मित अंतराष्ट्रीय एयरपोर्ट का नामकरण रामायण के रचयिता महर्षि बाल्मीकि के नाम पर कर दिया गया।इस सबसे योगी आदित्यनाथ के गुरु ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जरिए जिस सामाजिक समरसता की कल्पना की थी। जिसके लिए जीवन भर लगे रहे उसका रंग और चटक होगा।
गोरक्षपीठ और सामाजिक समरसता
उल्लेखनीय है गोरक्षपीठ के लिए प्रभु श्रीराम सिर्फ अपने सर्वस्व खूबियों के साथ सामाजिक समरसता के भी प्रतीक हैं। मंदिर आंदोलन की अगुआई करने वालों के शीर्षस्थ लोगों में शामिल योगीजी के गुरुदेव ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ अपने हर प्रवचन में श्रीराम के इस उदात्त चरित्र के जरिये समाज को सामाजिक समरसता का संदेश देते रहे। अपने हर संबोधन में वह अनिवार्य रूप से मर्यादा पुरुषोत्तम राम के पूरे प्रेम से शबरी के जूठी बेर खाने , निषादराज को गले लगाने , गीद्धराज जटायू के उद्धारक और गिरजनों की मदद से अन्याय के प्रतीक रावण को पराजित करने वाले राम के जीवन से जुड़े प्रसंगों की चर्चा जरूर करते थे। इसके जरिए वह सामाजिक समरसता का संदेश देते थे। साथ ही यह भी कहते थे कि ऊंच-नीच एवं अस्पृश्यता के आधार पर समाज का विभाजन पाप है। अपने राजनीतिक लाभ के लिए इसे तूल देने वाले महापापी हैं।
वह सिर्फ इस पर भाषण ही नहीं देते थे निजी जीवन में इसे जीते भी थे। संतों के साथ काशी के डोमराजा के घर भोजन और सहभोजों का सिलसिला इसका सबूत है।यही नहीं अयोध्या में जब उनकी मौजूदगी में प्रतीकात्मक रूप से भूमि पूजन हुआ तो उनकी पहल पर पहली शिला रखने का अवसर कामेश्वर चौपाल नाम के एक दलित को मिला। ऐसा करवाकर उन्होंने पूरे समाज को सामाजिक समरसता का संदेश दिया। पटना के एक मंदिर में दलित पुजारी की नियुक्ति उनकी ही पहल से हुई।
योगी ने भी जारी रखी सहभाेजों के जरिए सामाज को जोड़ने की परंपरा
अपने ब्रह्मलीन गुरुदेव के इन संस्कारों के अनुरूप योगी जी ने भी दलित समाज को जोड़ने की यह परंपरा जारी रखी। गोरखपुर के सांसद रहने से लेकर मुख्यमंत्री बनने के सफर तक। बतौर सांसद योगीजी भी नगवा में एक दलित द्वारा बनवाए गए मंदिर की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा में बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए थे।2019 के आम चुनावों में अयोध्या में दलित महाबीर और अमरोहा में प्रियंका (प्रधान) के घर भोजन कर समाज को जोड़ने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जता दी.पिछले साल मकर संक्रांति (खिचड़ी ) के पावन पर्व पर गोरखपुर में दलित समाज के अमृतलाल भारती के घर आयोजित सहभोज में उन्होंने भोजन करना उसी परंपरा की कड़ी है।