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धनखड़ ने किया संसद की कार्यवाही में व्यवधान रोकने के लिए जन आंदोलन का समर्थन

चेन्नई : उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को कहा कि संसद के उच्च सदन राज्यसभा के सभापति के रूप में लोकतंत्र के मंदिर की शुद्धता को बनाए रखना उनका संवैधानिक दायित्व है और वह सदन की कार्यवाही में व्यवधान को रोकने के लिए जन आंदोलन का समर्थन करते हैं।

श्री धनखड़ ने आज यहां आईआईटी-मद्रास में सेंटर फॉर इनोवेशन फैसिलिटी का उद्घाटन करते हुए कहा कि यदि हमारे संस्थापक, संविधान निर्माता संवैधानिक मुद्दों, विवादास्पद मुद्दों पर बिना चिल्लाये, बिना नारेबाजी के, बिना अशांति उत्पन्न किये, बिना सदन के बीचोबीच आये, बिना सभापति को चुनौती दिये सहमति बना सकते हैं। हमें अभी ऐसा क्यों करना चाहिए?उन्होंने कहा कि लोकतंत्र का यह मंदिर संवाद, बहस, चर्चा और विचार-विमर्श के लिए है। यह अशांति और व्यवधान के लिए नहीं है। उन्होंने कहा, “मुझे आश्चर्य होता है कि इस आचरण को आपकी प्रतिक्रिया नहीं मिलती। मैंने किसी अखबार के संपादकीय में नहीं रहा, मैंने बुद्धिजीवियों और पत्रकारों को इसे उठाते नहीं देखा, मैंने लोगों को इस पर आंदोलन करते नहीं देखा। तो फिर इस देश की जनता सदन में व्यवधान पर मुंह कैसे मोड़ सकती है।”

श्री धनखड़ ने कहा कि करदाताओं का करोड़ों रुपया संसद के प्रतिदिन के कामकाज के लिए जाता है, संसद कार्यपालिका को जवाबदेह ठहराने के लिए है, सरकार को जवाबदेह ठहराने के लिए है। उन्होंने लोगों से संचार के हर माध्यम, सोशल मीडिया में आने अन्यथा एक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करने में मदद करने की अपील की, ताकि लोकतंत्र के मंदिरों, संसद और विधायिका की पवित्रता भंग नहीं हो। उपराष्ट्रपति ने सदन में बहस, संवाद, चर्चा और विचार-विमर्श का समर्थन किया, जो अभिव्यक्ति के मुक्त आदान-प्रदान की जगह है।उपराष्ट्रपति ने कहा, “मुझे आपके समर्थन की आवश्यकता है। मुझे युवाओं का समर्थन चाहिए और मुझे पता है कि यदि आप ऐसा कर सकते हैं, तो यह एक जन आंदोलन बन जाएगा और इसलिए ही प्रतिनिधियों को जवाबदेह ठहराया जायेगा।”

उन्होंने जन प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए कहा, “और हां, जो लोग आपको वहां भेजते हैं, वो लोग आपके प्रदर्शन को देखते हैं, व्यवधान या गड़बड़ी उनको स्वीकार नहीं है। लोकतंत्र के मंदिर की पवित्रता को बनाये रखना मेरा संवैधानिक दायित्व है।”(वार्ता)

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