National

दांडी यात्रा के समापन समारोह में उपराष्ट्रपति बोले- ‘आजादी राष्ट्र के इतिहास में अमृतमय घटना’

महात्मा गांधी की स्मृति में 25 दिनों तक जारी दांडी यात्रा मंगलवार को समाप्त हुई। इस अवसर पर आयोजित समापन समारोह में उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू मुख्य अतिथि के बतौर शामिल हुए। इस दौरान संस्कृति मंत्रालय के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)प्रह्लाद सिंह पटेल ने दांडी यात्रा के 91 वर्ष पूरे होने पर उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू का स्वागत किया। कार्यक्रम में उनके अलावा गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत, मुख्यमंत्री विजय रूपाणी व सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग भी उपस्थित रहे। इस विशेष अवसर पर उपराष्ट्रपति ने दांडी में प्रार्थना मंदिर जाकर बापू को श्रद्धांजलि अर्पित की। इसके अलावा उन्होंने दांडी यात्रियों से मुलाकात कर उनसे संवाद भी किया। बताना चाहेंगे दांडी यात्रा के दौरान महात्मा गांधी जिस सैफी विला में ठहरे थे, उपराष्ट्रपति ने वहां का भी दौरा किया।

12 मार्च को पीएम मोदी ने साबरमती आश्रम से दांडी मार्च को किया था रवाना

ज्ञात हो भारत की स्वतंत्रता के 75 साल पूरे होने पर ‘आजादी के अमृत महोत्सव’ के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 मार्च को अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से ‘दांडी मार्च’ को रवाना किया था।

यह यात्रा का समापन नहीं बल्कि अमृत महोत्सव के अभियान की शुरुआत

केंद्रीय राज्य मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने कहा, यह यात्रा का समापन नहीं है। 91 वर्ष पूर्व महात्मा गांधी जी ने देश के स्वावलम्बन और जागरण के लिए जो यात्रा प्रारंभ की थी, 91 वर्ष बाद उस यात्रा का पुनर्जागरण का अभियान 12 मार्च से शुरू हुआ था। मैं इसे इस यात्रा का समापन नहीं मानता बल्कि अमृत महोत्सव के इस अभियान की शुरुआत मानता हूं जिसमें पदयात्रियों ने बेमिसाल अपना सहयोग प्रदान किया।

उन्होंने आगे जोड़ते हुए कहा, अमृत महोत्सव वर्ष भर चलने वाला एक ऐसा जागरण अभियान है जो आत्मनिर्भरता और स्वावलम्बन की तरफ आगे तो बढ़ेगा ही, साथ ही साथ आगे आने वाली पीढ़ी को इसके जरिए यह भी बताएगा कि आखिर देश को आजादी कैसे मिली। उन्होंने यह भी कहा, कि प्रधानमंत्री मोदी की इच्छा है कि देश के हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि इस कार्यक्रम को जन-महोत्सव बना दे। सरकार सिर्फ आयोजक हो, हिस्सेदारी करने का काम देश की जनता स्वयं करे। यही शायद देश की आजादी के 75 वर्ष का जन-महोत्सव होगा।

दांडी यात्रा के समापन समारोह में उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू का संबोधन

वहीं इस मौके पर उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने अपने संबोधन के दौरान कहा, हमारी आजादी को 75 वर्ष पूरे होने को आए हैं। आजादी राष्ट्र के इतिहास में अमृतमय घटना थी, जिसको याद करने के लिए आज हम अमृत महोत्सव मना रहे हैं। इन 75 वर्षों के दौरान देश के नागरिकों ने अपनी प्रतिभा और पुरुषार्थ से राष्ट्र के लिए अमृत का मंथन किया है। यह अमृत महोत्सव उनकी उपलब्धियों के गौरव का है। यह महोत्सव हमारे स्वाधीनता संग्राम के नायकों के त्याग और तपस्या के प्रति कृतज्ञतापूर्वक सम्मान प्रकट करने के लिए है। यह महोत्सव उनके द्वारा स्थापित राष्ट्रवादी आदर्शों के प्रति खुद को समर्पित करने के लिए है। उनके सपनों का भविष्य के नए भारत का निर्माण करने के लिए है।

325 किलोमीटर की पदयात्रा करने वाले 81 स्वयंसेवी कार्यकर्ताओं का किया अभिनंदन

इस महोत्सव का शुभारंभ 12 मार्च 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। राष्ट्रपिता की दांडी यात्रा के 91वें वार्षिक समारोह पर इस ऐतिहासिक घटना की स्मृति में साबरमती आश्रम से इस पद यात्रा की शुरुआत की गई। 25 दिन की यह पदयात्रा आज सम्पन्न हुई। इस दौरान लगभग 325 किलोमीटर की पदयात्रा करने वाले 81 स्वयंसेवी कार्यकर्ताओं का हार्दिक अभिनंदन करता हूं।

1930 में महात्मा गांधी के साथ चल पड़े थे हजारों भारतीय

इस सुअवसर पर 1930 में महात्मा गांधी जी के साथ चलने वाले उन हजारों भारतीयों के प्रति नतमस्तक हूं जो देश के विभिन्न हिस्सों से आए और महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में इस यात्रा में शामिल हुए। दांडी यात्रा में भाग लेने वाले अधिकांश पदयात्री 40 वर्ष से कम आयु के युवा ही थे। इस प्रकार महात्मा गांधी की इस पदयात्रा ने बड़े पैमाने पर उनके अहिंसक स्वाधीनता आंदोलन में लोगों को जोड़ा। यही नहीं दांडी यात्रा की प्रेरणा से देश के विभिन्न भागों में स्थानीय स्तर पर नमक सत्याग्रह किए गए हैं जिसमें बड़ी संख्या में महिलाओं ने भी भाग लिया है। ओडिशा (उड़ीसा) में रमा देवी, सरला देवी जी के नेतृत्व में स्थानीय महिलाओं ने नमक सत्याग्रह किया। तमिलनाडु में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के नेतृत्व में वेदारण्य में नमक सत्याग्रह किया, जिसमें रुकमणी लक्ष्मीपति ने अपनी गिरफ्तारी दी।

‘नमक सत्याग्रह’ ने हमारे स्वाधीनता आंदोलन को दी नई दृष्टि

स्वयं गांधी जी ने दांडी में धरसाणा साठ वर्ग पर प्रदर्शन करने का आह्वान किया, जिसका नेतृत्व कस्तूरबा व सरोजनी नायडू ने किया। इस अवसर पर मैं उन सभी विभूतियों की पुण्य स्मृति को सादर नमन करता हूं।
नमक सत्याग्रह ने हमारे स्वाधीनता आंदोलन को नई दृष्टि दी। यह गांधी जी के राष्ट्रवादी चिंतन का सबसे महत्वपूर्ण प्रयोग था। देशभर में साइमन कमीशन के विरुद्ध आक्रोश था, जिसकी प्रतिक्रिया में नेहरू रिपोर्ट पारित की गई, जिसमें भारत के लिए डोमिनियन स्टेटस की मांग की गई थी।

दिसंबर 1929 को लाहौर अधिवेशन में ‘पूर्ण स्वराज्य’ की हुई थी घोषणा

अंग्रेजी सरकार द्वारा डोमिनियन स्टेटस पर भी आश्वासन न दिए जाने पर दिसंबर 1929 को लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य की घोषणा कर दी गई थी। 26 जनवरी 1930 को देशभर में प्रथम स्वतंत्रता दिवस का तिरंगा फहराया गया। शराबबंदी व छुआछूत को समाप्त करने की शपथ ली गई। इसके साथ ही स्वदेशी अपनाने व साम्प्रदायिक सौहार्द कायम रखने की शपथ ली गई। इसकी अगली कड़ी थी नमक सत्याग्रह। नमक सत्याग्रह को विश्वभर की प्रेस ने प्रचारित किया था।

1931 में अमेरिका की प्रसिद्ध ‘टाइम’ पत्रिका ने गांधी जी को ‘मैन ऑफ द ईयर’ किया था घोषित

1931 में अमेरिका की प्रसिद्ध ‘टाइम’ पत्रिका ने गांधी जी को ‘मैन ऑफ द ईयर’ घोषित किया। 25 दिनों की लगभग 385 किलोमीटर की यात्रा के दौरान गांधी जी 22 स्थानों पर रुके और वहां के स्थानीय लोगों को संबोधित किया। उस समय उनके द्वारा संबोधन में समाज में छुआछूत का विरोध, साम्प्रदायिक सौहार्द और स्वदेशी जैसे विषय उठाए जाते थे। 79 सत्याग्रहियों से शुरू हुआ दल दांडी पहुंचते-पहुंचते कई किलोमीटर लंबा अभियान बन गया। उनके लिए नमक सत्याग्रह आम नागरिकों को स्वाधीनता आंदोलन से जोड़ने का एक माध्यम था।

2 मार्च, 1929 को इरविन को लिखा गांधी जी का पत्र एक महत्वपूर्ण दस्तावेज

2 मार्च 1929 को इरविन को लिखा उनका पत्र एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है, जिसमें वे भारत में अंग्रेजी शासन को अभिशाप बताते हुए उनकी आर्थिक और कर नीति की कड़ी आलोचना करते हैं। अपने विरोधियों के प्रति भी आदरपूर्वक अपनेपन की भाषा का प्रयोग गांधी जी के पत्रों की विशेषता है। अपने पत्रों में वे इरविन को ‘डियर फ्रेंड’ लिखकर संबोधित करते हैं। उनकी अहिंसा सिर्फ शारीरिक अहिंसा तक ही सीमित नहीं थी बल्कि वचन और विचारमय अंहिसक होना भी आवश्यक था। यह आज भी बहुत जरूरी है। हम लोग आपस में एक दूसरे के बारे में आलोचना करते हुए या उल्लेख करते हुए प्रेम भाव रखें। राजनीति में हम प्रतिद्वंदी जरूर हैं लेकिन हम सभी भाइयों और बहनों की तरह हैं। यह परंपरा आदिकाल से, वेदकाल से, पुण्य काल से पुराणों ने हमें दी है। लोकतंत्र में भाषा शब्दों का शिष्टाचार जरूरी होता है, तभी लोकतंत्र स्वस्थ और समग्र बनता है।

VARANASI TRAVEL
SHREYAN FIRE TRAINING INSTITUTE VARANASI

Related Articles

Back to top button
%d bloggers like this: