चिपको आंदोलन के नेता, पर्यावरणविद, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पद्मभूषण सुंदरलाल बहुगुणा का शुक्रवार दोपहर निधन हो गया। उन्होंने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश में आखिरी सांस ली। कोरोना संक्रमित बहुगुणा को 8 मई को एम्स ऋषिकेश में भर्ती कराया गया था। यह जानकारी एम्स के जनसंपर्क अधिकारी हरीश मोहन थपलियाल ने दी।
…और बन गए वृक्षमित्र
एक ऐसे प्रकृति प्रेमी और पर्यावरण संरक्षक, जिन्होंने सिर्फ कहा नहीं बल्कि करके भी दिखाया। सत्तर के दशक में रैणी गांव में चिपको आंदोलन के बहुगुणा प्रणेता रहे। गौरा देवी और अन्य महिलाओं के साथ उन्होंने पेड़ पौधों को बचाने के लिए अनूठा आंदोलन चलाया। चूंकि बहुगुणा पत्रकार भी थे, इसलिए वह चिपको आंदोलन को देश-दुनिया में उस स्तर तक ले जाने में सफल रहे, जहां तक सामान्य स्थितियों में पहुंचना बहुत मुश्किल होता है। चिपको आंदोलन के कारण वे दुनिया में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
प्रांरभिक जीवन
सुंदरलाल बहुगुणा के प्रांरभिक जीवन पर नजर डालें तो, उनका जन्म 9 जनवरी 1927 को देवभूमि उत्तराखंड के सिलयारा में हुआ था। प्राइमरी शिक्षा के बाद वे लाहौर चले गए। वहीं से उन्होंने कला स्नातक किया। पत्नी विमला नौटियाल के सहयोग से सिलयारा में ही ‘पर्वतीय नवजीवन मंडल’ की स्थापना भी की। अपने पूरे जीवन में पर्यावरण संरक्षण के साथ ही उन्होंने कई सामाजिक कार्य भी किए। 1949 में मीराबेन व ठक्कर बाप्पा के करीब आने के बाद दलित विद्यार्थियों के उत्थान के लिए काम करने लगे। उनके लिए टिहरी में ठक्कर बाप्पा छात्रावास की स्थापना भी की। दलितों को मंदिर में प्रवेश दिलाने के अधिकार के लिए उन्होंने आंदोलन छेड़ा।
प्रमुख आंदोलनों में योगदान
सुंदर लाल बहुगुणा ने अपने जीवन में कई आंदोलन किए। उन्होंने 1960 और 1970 के दशक में शराबबंदी आंदोलन चलाया और उनके आंदोलन का असर भी हुआ। इसके बाद 1986 में टिहरी बांध विरोधी आंदोलन के दौरान उन्होंने 47 दिन तक अनशन किया और केंद्र सरकार के पसीने छूट गए। पेट पर मिट्टी का लेपन करके, नींबू पानी को अपनी ताकत बनाकर सत्ता प्रतिष्ठान से लोहा लेने का उनका अपना तरीका था। गांधीवादी नेता सुंदरलाल बहुगुणा बापू की तरह ही कम बोलने में यकीन रखते थे। टिहरी में बैठकर सुंदरलाल बहुगुणा एक बार आंदोलन की चेतावनी देते तो दिल्ली में हलचल मच जाती। देश-दुनिया का मीडिया टिहरी में जमा हो जाता। टिहरी बांध विरोधी आंदोलन के दौरान उन्हें हिरासत में लिया गया तो विदेश में कई जगह संसद में सवाल उठ गए।
जब पद्मश्री पुरस्कार लेने से कर दिया इनकार
बहुगुणा के काम से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर संस्था ने 1980 में उन्हें पुरस्कृत किया। इसके अलावा उन्हें तमाम पुरस्कारों से सम्मानित किया गया । पर्यावरण को स्थायी संपत्ति मानने वाला इस महापुरुष को पर्यावरण गांधी के नाम से भी पुकारा जाता है। अंतरराष्ट्रीय मान्यता के रूप में 1981 में स्टाकहोम का वैकल्पिक नोबेल पुरस्कार उन्हें मिला। सुंदरलाल बहुगुणा को 1981 में पद्मश्री पुरस्कार दिया गया। उन्होंने इसे यह कह कर स्वीकार नहीं किया कि जब तक पेड़ों की कटाई जारी है, वह अपने को इस सम्मान के योग्य नहीं समझते। बाद में, सरकार ने उनकी बात मानी और ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पेड़ कटान पर प्रतिबंध लगाया। उसके बाद ही उन्होंने पद्मश्री पुरस्कार स्वीकार कर लिया। 2009 में उन्हें पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया।
अंतिम विदाई
मुनि की रेती क्षेत्र के पूर्ण घाट पर उन्हें राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत सहित विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने बहुगुणा के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है ।
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वैश्विक महामारी कोरोना ने 94 वर्ष के हिमालय के सुंदर लाल को चिरनिद्रा में सुला दिया है, लेकिन हिमालय बचाने के लिए जो अलख उन्होंने जगाई है, वह हमेशा पर्यावरण प्रेमियों में ऊर्जा का संचार करती रहेगी।