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2030 तक दुनिया को टी बी मुक्त बनाने का लिया संकल्प

विश्व टी बी दिवस के अवसर पर आज काशी हिंदू विश्वविद्यालय राष्ट्रीय सेवा योजना और चिकित्सा विज्ञान संस्थान के चेस्ट रोग विभाग के संयुक्त तत्वावधान में टी बी मुक्त भारत अभियान के तहत एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला का उद्घाटन अरुणोदय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बीएन शर्मा ने किया । प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा की टी बी की बीमारी का इलाज संभव है जिसके लिए जन जागरूकता आवश्यक है।

मुख्य अतिथि के रूप में कार्यशाला को संबोधित करते हुए चिकित्सा विज्ञान संस्थान काशी हिंदू विश्वविद्यालय के निदेशक प्रोफेसर बी आर मित्तल ने कहा कि ट्यूबरक्लोसिस के 99% मरीजों का इलाज वैज्ञानिक शोध और अनुसंधान के बाद पूर्णतया संभव है और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2030 तक दुनिया को टी बी मुक्त बनाने का संकल्प लिया है । भारत में यह संकल्प 2025 तक पूरा करने का लक्ष्य तय किया गया है जिसके लिए व्यापक स्तर पर जन जागरूकता के बढ़ावा की आवश्यकता है। विशिष्ट अतिथि के रूप में कार्यशाला को संबोधित करते हुए भारत सरकार के युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय के क्षेत्रीय निदेशक डॉ अशोक श्रोती ने कहा कि टी बी मुक्त भारत अभियान के तहत गांव गांव जाकर राष्ट्रीय सेवा योजना के स्वयंसेवक लोगों को जागरूक कर रहे हैं और हम टी बी मुक्त भारत का सपना जल्द ही साकार करेंगे ।

टी बी बीमारी के विविध पक्षों पर मुख्य वक्ता के रूप में प्रकाश डालते हुए काशी हिंदू विश्वविद्यालय के चेस्ट रोग विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर जी एन श्रीवास्तव ने टी बी रोग के फैलने के कारण, लक्षण और उसके रोकथाम के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की। उन्होंने कहा कि आज के दिन ही रोबट कुक ने टी बी के जीवाणु की खोज की थी और यही कारण है कि 24 मार्च को पूरी दुनिया में ट्यूबरक्लोसिस दिवस मनाया जाता है । कार्यक्रम की अध्यक्षता काशी हिंदू विश्वविद्यालय राष्ट्रीय सेवा योजना के कार्यक्रम समन्वयक डॉ बाला लखेंद्र ने की । उन्होंने कहा कि 2025 तक टी बी मुक्त भारत का सपना साकार करने हेतु राष्ट्रीय सेवा योजना के स्वयंसेवक कृत संकल्पित है और चिकित्सा विज्ञान संस्थान के साथ मिलकर ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर काम कर रहे हैं। कार्यशाला को संबोधित करने वालों में अरुणोदय विश्वविद्यालय राष्ट्रीय सेवा योजना के कार्यक्रम समन्वयक प्रोफेसर पंकज बोढ़ा, डॉ अखिलेंद्र सिंह, डॉ महेंद्र प्रसाद कुशवाहा, डॉ दीपाली यादव आदि प्रमुख रहे।

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