वरिष्ठ साहित्यकार सूर्य प्रकाश मिश्रा के ‘‘सुख रहा पौधा सुराज का’’ पुस्तक का हुआ विमोचन

वाराणसी। उद्गार साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संगठन द्वारा आयोजित 44 वें मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया गोष्ठी में स्याही प्रकाशन द्वारा प्रकाशित व उद्गार संगठन के सदस्य व काशी के एक श्रेष्ठ कवि सूर्य प्रकाश मिश्रा के नए कविता संग्रह ‘सूख रहा पौधा सुराज का’ का लोकार्पण किया गया। वरिष्ठ संपादक छतिश द्विवेदी ‘कुंठित’ द्वारा संपादित व श्री मिश्र द्वारा लिखित यह कविता संग्रह ग्रामांचल के अक्षुण्य प्रतीकों, शब्द- भाव बिंबो एवं प्रतिनिधि प्रेम पात्रों और कथानकों को समेटे हुए बाजारवाद से दूर और आहत ग्राम के भाव तथा ग्राम सौंदर्य को प्रकट करती हुई कविताओं का अद्भुत संकलन है, इस गीत संग्रह में नव बिंब प्रयोगों के साथ छायावाद की उदात्त चिक्तता है। यह संकलन संग्रहणीय होने के साथ ही समाज के वर्तमान परिदृश्य को उद्घाटित करने में समर्थ है।

उपर्युक्त साहित्यिक कार्यक्रम में हर बार की तरह इस बार भी काशी के साथ ही साथ अन्य निकट के जनपदों के अनेक साहित्यकार व कवि शामिल हुए। राजकीय पुस्तकालय वाराणसी के पुस्तकालयाध्यक्ष एवं डूडा के उपायुक्त कंचन सिंह परिहार, जिला प्रशिक्षण अधिकारी दीनानाथ द्विवेदी रंग, उद्गार संस्था के संस्थापक छतिश द्विवेदी कुंठित व साहित्यकार देवेन्द्र पाण्डेय के आतिथ्य में संपन्न हुए कार्यक्रम का संचालन बुजुर्ग कवि योगेंद्र नारायण चतुर्वेदी यिोगी ने किया। कार्यक्रम में जिन कवियों ने प्रतिभाग किया उन में हर्ष वर्द्धन ममगाई, डॉ0 लियाकत अली, प्रसन्नबदन चतुर्वेदी, संतोष कुमार श्रीवास्तव प्रीत, सन्ध्या श्रीवास्तव, शिब्बी ममगाई, बैजनाथ श्रीवास्तव, सूर्य प्रकाश मिश्रा, सिद्धनाथ शर्मा, मुनीन्द्र पांडेय, जयप्रकाश मिश्र, धानापूरी, राजेन्द्र पथिक, दीपक शर्मा, डा. नसीमा निशा, माधुरी मिश्रा, आकाश उपाध्याय ‘शब्दाकाश’, अशोक सिंह, अनुराग मिश्र, चन्द्र प्रकाश सिंह, शैलेश मिश्रा, अभिषेक सिंह, अभिषेक उपाध्याय, तरुण कुमार राय, अभिषेक श्रीवास्तव, संदीप सिंह, खुशबू पटेल, सत्यम मिश्रा आदि रहे।कार्यक्रम के बाद में संदर्भ वक्तव्य व कविता पाठ में छतिश द्विवेदी ‘कुंठित‘ ने कहा कि ‘सम्मान पे्रम के उन्नयन की तीसरी अवस्था है, पहले प्रेम होता है, फिर आदर भाव आता है फिर सम्मान का उदय होता है, सम्मान प्रेम की विकसित अवस्था है।’ इसके आगे उन्होंने अपना प्रिय मुक्तक ‘ विश्व मेरे खाब के अनुसार हो जाए अगर, खून में कुछ स्नेह का संचार हो जाए अगर, स्वर्ग से भी खूबसूरत यह जमीं हो जाएगी, आदमी को आदमी से प्यार हो जाए अगर!’ सुनाया । दीनानाथ द्विवेदी रंग ने घनाक्षरियाॅ सुनाकर सभी को मोह लिया। कंचन सिंह परिहार ने सुख दुख दोनों अतिथि हमारे आते रहते मेरे द्वारे सुनाया।

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