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सबका साथ-सबका विकास, सबका विश्वास-सबका प्रयास मंत्र, संविधान का प्रकटीकरण है: मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को कहा कि उनकी सरकार सबका साथ-सबका विकास, सबका विश्वास-सबका प्रयास के मूल मंत्र के साथ काम कर रही है और यह मंत्र संविधान की भावना का सबसे सशक्त प्रकटीकरण है।श्री मोदी ने कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार के तीनों अंगों की शक्तियों का संविधान के अनुसार पृथक किया जाना श्रेष्ठ व्यवस्था है, पर अधिकारों के इस पृथक्करण के इस अधिष्ठान पर विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच मिल कर काम करने का ‘साझा संकल्प’ भी बहुत जरूरी है ताकि स्वाधीनता की अमृतवेला में अगले 25 वर्ष के दौर हम देश को विकास की नयी ऊंचाइयों पर ले जा सकें और लोगों की आकांक्षाओं को पूरा कर सकें।

श्री मोदी ने कहा कि आजादी के लिए जीने-मरने वाले लोगों ने जो सपने देखे थे, उन सपनों के प्रकाश में और हजारों साल की भारत की महान परंपरा को संजोए हुए, हमारे संविधान निर्माताओं ने हमें संविधान दिया। उन्होंने कहा कि संविधान के लिए समर्पित सरकार, विकास में भेद नहीं करती और यह हमने करके दिखाया है।वह संविधान दिवस पर शुक्रवार शाम को विज्ञान भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थे। इस कार्यक्रम में उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना, केंद्रीय कानून मंत्री किरन रिजिजू, अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल, उच्चतम न्यायालय बार एसोसिसएशन के अध्यक्ष विकास सिंह और न्यायिक क्षेत्र की तमाम हस्तियां मौजूद थीं।

श्री मोदी ने कहा, “आज गरीब से गरीब को भी क्वालिटी इंफ्रास्ट्रक्चर तक सुलभ हो रहा है, जो कभी साधन संपन्न लोगों तक सीमित था। ”उन्होंने कहा कि अब लद्दाख, अंडमान और नॉर्थ ईस्ट के विकास पर देश का उतना ही फोकस है, जितना दिल्ली और मुंबई जैसे मेट्रो शहरों पर है। प्रधानमंत्री ने कोरोना काल में गरीबों के कल्यण के लिए उठाए गए कदमों का उल्लेख करते हुए कहा कि कोरोना काल में पिछले कई महीनों से 80 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त अनाज सुनिश्चित किया जा रहा है। पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना पर सरकार दो लाख 60 हजार करोड़ रुपए से अधिक खर्च करके गरीबों को मुफ्त अनाज दे रही है। उन्होंने कहा,“ अभी कल ही हमने इस योजना को अगले वर्ष मार्च तक के लिए बढ़ा दिया है।”

श्री मोदी ने इस अवसर पर यह भी कहा कि भारत की आजादी के बाद विश्व में उपनिवेश खत्म हो गए, पर उपनिवेशवादी मानसिकता अभी बनी हुई है। जिस राह पर चल कर पश्चिम के देश विकसित हुए, उस राह को भारत जैसे विकासशील देशों के लिए अलग-अलग नाम (मुद्दे) पर रोका जा रहा। इस संदर्भ में उन्होंने ब्रिटेन में ग्लासगो में हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में उठाए जाने वाले मुद्दों का उदाहरण दिया।प्रधानमंत्री ने कहा कि अमेरिका और यूरोप ने 1850 से अब तक भारत की तुलना में 20-20 गुना तक प्रति व्यक्ति प्रदूषण करके विकास की मंजिलें तय कीं, पर अब भारत जैसे प्रकृति प्रेमी देश और समाज को पर्यावरण संरक्षण के उपदेश दिए जा रहे हैं।उन्होंने नर्मदा बांध का उदाहरण देते हुए कहा कि भारत में भी कुछ ताकतें विकास की राह में बाधाएं खड़ी करती हैं। इसका नुकसान उन्हें नहीं बल्कि बिजली, सड़क सम्पर्क और जीवन की अन्य सुविधाओं के अभाव में जीने वाली माता-पिता और उनके बच्चों को उठाना पड़ता है।

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