Off Beat

धान की फसल में बारिश का मौसम रोगों के लिए होता है अनुकूल : मौसम वैज्ञानिक

पौधों की पत्तियों, तना, गांठों व बालियों को प्रभावित करते हैं रोग

कानपुर । देश में भोजन वाली मुख्य अनाज फसलों में धान का स्थान पहले नंबर पर आता है। बारिश के समय में धान की खेती में धान की नर्सरी से लेकर दाना बनने तक कई तरह के कीट-बीमारियों के लगने का खतरा होता है। जानकारी के अभाव में कहीं फसल बर्बाद ना हो जाए, इसलिए धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों की पहचान और बचने के उपाय जानना जरुरी है। यह बातें शनिवार को चन्द्रशेखर आजाद कृषि प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के मौसम वैज्ञानिक डॉ एस एन सुनील पाण्डेय ने कही।

उन्होंने बताया कि खरीफ में बोई गई धान की फसल जुलाई से लेकर अक्टूबर तक कई तरह के कवक और जीवाणु रोगजनकों से प्रभावित होती है। बरसात का मौसम इन रोगजनकों के लिए बेहद अनुकूल होता है। जुलाई से लेकर सितंबर महीने में धान में झोंका रोग यानी ब्लास्ट रोग का प्रकोप अधिक होता है। इस रोग के प्रमुख लक्षण पौधों की पत्तियों, तना, गांठों व बालियों पर दिखाई देते हैं। इस रोग में पत्तियों पर आंख की आकृति अथवा सर्पिलाकार धब्बे दिखाई देते हैं, जो बीच में राख के रंग के और किनारों पर गहरे भूरे रंग के होते हैं। तने की गांठो तथा पेनिफल का भाग आंशिक और पूरा काला पड़ जाता है। तना सिकुड़ कर गिर जाता है, जिससे फसल को ज्यादा नुकसान होता है।

नर्सरी डालते समय डाले ट्राईसाइक्लेजोल

बताया कि इस रोग के नियंत्रण के लिए सबसे पहले नर्सरी डालते समय ट्राईसाइक्लेजोल दो ग्राम दवा को प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित करके लगाएं। इस रोग के लक्षण दिखाई देने पर बाली निकलने के दौरान आवश्यकतानुसार 10–12 दिन के अन्तराल पर कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत की दो ग्राम दवा को एक लीटर पानी के अनुपात में घोल बना कर छिडकाव करें। रोग के शुरुआती अवस्था में हेक्साकोनोजोल दवा का प्रयोग अच्छे परिणाम देते हैं।

40 से 80 दिन रोग का रहता है खतरा

बताया कि धान में फंगस से फैलने वाले शीथ ब्लाईट रोग से धान की फसल को बहुत जयादा नुकसान पहुंचता है। उन्होंने बताया कि धान की फसल के 40 से 80 दिन तक शीत ब्लाईट व रोग होने का खतरा होता है। उन्होंने कहा कि यह शीत ब्लाईट रोग मुख्य रुप से फसल के आसपास मेड़ पर होने वाली धूब घास से फसल में आता है। इस रोग में कचुंल (शीथ) पर अनियमित आकार के धब्बे दिखने लगते हैं। रोग का पहला प्रकोप धान के पौधे के तने पर होता है। लंबे काले धब्बे दिखाई देते हैं जो पौधे की एक-एक पत्ती को सुखा देते हैं, जिससे पौधा मर जाता है।

बाढ़ क्षेत्र में लगता है ब्लाइट रोग

मौसम वैज्ञानिक ने बताया कि जिन क्षेत्रों में लगातार बाढ़ और पानी ज्यादा रहता है, वहां शीथ ब्लाइट रोग का खतरा अधिक होता है। इसके रोकथाम के लिए फसल के आसपास हो रही दूब घास को नष्ट कर दें। नियंत्रण के लिए किसान कार्बेडाजिम दवा 2 से 2.5 प्रति ग्राम को प्रति लीटर अनुपात में घोलकर फसलों पर छिडकाव करें।

शुरुआत में बनते हैं धब्बे

बताया कि बैक्टीरियल लीफ ब्लाईट धान का बहुत घातक रोग है। अगर समय रहते इसका रोकथाम नहीं किया जाए तो धान की फसल को काफी नुकसान होता है। जीवाणु द्वारा फैलने वाले इस रोग में सबसे पहले पत्तियों के ऊपरी भाग में हरे, पीले एवं भूरे रंग के धब्बे बनने लगते हैं। धीरे-धीरे यह धब्बे धारियों में बदल जाते हैं। रोग बढ़ने पर धारियों का रंग पीला या कत्थई हो जाता है। प्रभावित पत्तियां सूखने व मुरझाने लगती हैं। देखते ही देखते पूरी की पूरी फसल चौपट हो जाती है।

पोटाश का करें छिड़काव

बताया कि इसके रोकथाम के लिए नाइट्रोजन युक्त उर्वरक का आवश्यकता से अधिक प्रयोग ना करें। प्रति एकड़ खेत में 10 किलोग्राम पोटाश का छिड़काव करें। इससे पौधों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। रोग के लक्षण दिखने पर खेत से पानी निकाल दें। पोटाश के छिड़काव के 3-4 दिनों बाद तक खेत में पानी नहीं भरना चाहिए। बुवाई से पहले स्ट्रेप्टोसाईक्लिन से बीज को उपचारित करें। फसल में रोग लगने पर प्रति एकड़ जमीन में 20 ग्राम स्ट्रेप्टोसाईक्लिन और 600 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

जिंक की कमी से सूख जाते हैं पत्ते

बताया कि खैरा रोग मिट्टी में जिंक की कमी के कारण होता है। इस रोग में पत्तियों पर हल्के पीले रंग धब्बे बनते हैं, जो बाद में कत्थई रंग के हो जाते हैं, जिससे फुटाव रुक जाता है। इससे पौधों की जड़ों का विकास रुक जाता है। धीरे-धीरे पत्ते भूरे से लाल रंग के होकर सूख जाते हैं। यह रोग बार-बार उन्हीं खेतों में होता है, जहां जिंक की कमी होती है। खैरा रोग नियंत्रण के उपचार 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट 21 प्रतिशत प्रति एकड़ या 500 ग्राम जिंक सल्फेट ढ़ाई किलोग्राम यूरिया के साथ 100 लीटर पानी में अलग-अलग घोल बनाकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें। आवश्यकतानुसार 7 से 10 दिन बाद दोबारा छिड़काव करें। इस तरह से धान की फसल में रोगों की रोकथाम कर धान से अच्छी उपज ले सकते हैं और धान की खेती से अच्छी कमाई कर सकते हैं।(हि.स.)

VARANASI TRAVEL
SHREYAN FIRE TRAINING INSTITUTE VARANASI

Related Articles

Back to top button
%d bloggers like this: