महाकुम्भ नगर । प्रयागराज महाकुम्भ सनातन के विस्तार की बुलंदी की नई इबारत लिख रहा है। देश की 50 फीसदी के आगमन की तरफ आगे बढ़ रहे प्रयागराज महाकुम्भ ने समाज के सभी वर्गों की भागीदारी हुई है। नारी शक्ति की महाकुम्भ में अब तक सबसे अधिक संख्या में मौजूदगी के कई सामाजिक निहितार्थ भी सामने आए हैं।
नारी शक्ति की सहभागिता ने रचा इतिहास
प्रयागराज महाकुम्भ में पहुंचने वालों की संख्या 55 करोड़ को भी पार कर गई है। देश की लगभग आधी आबादी का यहां पहुंचना समाज विज्ञानियों के लिए भी एक विश्लेषण और शोध के लिए प्रेरित करता है। देश में सामाजिक व्यवस्था पर हो रहे परिवर्तन पर अध्ययन करने वाले शीर्षस्थ मंच गोविन्द बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान के शोधार्थियों ने अपने शोध में नारी सहभागिता को लेकर जो प्रारम्भिक निष्कर्ष सामने आए हैं वह मौजूदा समाज की सोच का खाका खींच रही है। संस्थान के निदेशक प्रो बद्री नारायण और एसोसिएट प्रोफेसर डॉ अर्चना सिंह के नेतृत्व में यह शोध चल रहा है।
डॉ अर्चना सिंह का कहना है कि महाकुम्भ के विभिन्न एंट्री पॉइंट्स और स्नान घाटों पर उनके अध्ययन दल के सदस्य मौजूद हैं जो अभी भी महा कुम्भ आने वाली आबादी के विभिन्न पहलुओं पर उनसे बातचीत कर उनके बिहेवियर और उनकी सोच को समझने का प्रयत्न कर रही है। डॉ अर्चना का कहना है कि महाकुम्भ आ रही आबादी में आधी आबादी की संख्या 40 फीसदी से अधिक है। इसके पूर्ववर्ती कुम्भ के आयोजनों से यह संख्या अधिक है। इसमें नगरीय क्षेत्र से आने वाली महिलाओं की संख्या भी बढ़ी है खासकर 18 से 35 आयु वर्ग से ,जो कई तरह के संकेत दे रही है।
शिक्षा , सुरक्षा से मिली ताकत जगी सनातन की ललक
प्रयागराज महाकुम्भ में आने वाले श्रद्धालुओं में नारी शक्ति की संख्या में इस बार अधिक बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है। लेकिन सहभागिता के साथ इसके पीछे के कारक अधिक महत्वपूर्ण हैं। शोध दल की समन्वयक डॉ अर्चना सिंह का कहना है कि इस बार महाकुम्भ में विमेन ओनली ग्रुप की महिलाओं की संख्या अधिक थी जो किसी पुरुष के साथ नहीं बल्कि अकेले आई थी। इसकी वजह एक तरफ अगर उनके शिक्षा की बेहतर स्थिति है तो वहीं दूसरी तरफ खुद को अब वह अधिक सुरक्षित समझ रही है। प्रदेश में सुरक्षित वातावरण से वह घर से भी निकली है और अपने को व्यक्त भी कर रही है। अभी तक जो घर में पूजा अर्चना तक खुद को सीमित रखती थी अब वो सनातन को भी समझने के लिए आगे आई हैं।
धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं ने दी स्वीकृति
महाकुम्भ अध्ययन दल की इस 17 सदस्यीय टीम के निष्कर्ष में यह भी बात सामने आई है कि अब धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं का दृष्टिकोण भी बदला है। शोध दल की सीनियर फेलो डॉ नेहा राय का कहना है कि महाकुम्भ में अखाड़ों और उनके धर्माचार्यों का दृष्टिकोण भी इस बार नारी शक्ति के प्रति अधिक उदारवादी रहा है। अखाड़ों में महिला श्रद्धालुओं को सम्मान और स्वीकृति भी बढ़ी है। इससे सनातन को समझने में उनकी ललक बढ़ी है। इसी दल की शोध सदस्या डॉ प्रीति यादव का कहना है कि बहुत सी महिलाओं ने अखाड़ों के साधु संतों और धर्माचार्यों के सामने अपनी जिज्ञासा और अपने विमर्श भी दिए, जिससे साधु संतों को भी सनातन के विस्तार के लिए रास्ता बनाने में आसानी होगी ।
विदेश से आए सैलानी भी महाकुम्भ की दिव्यता देख हुए अभिभूत, कहाः दुनिया में कहीं नहीं मिलती ऐसे किसी अन्य आयोजन की मिसाल
महाकुम्भनगर । महाकुम्भ-2025 के अंतर्गत पूरी दुनिया से स्नानार्थियों व सैलानियों के आने का सिलसिला लगातार जारी है। श्रद्धालुओं और सैलानियों ने त्रिवेणी संगम में स्नान करने के साथ ही महाकुम्भ मेला क्षेत्र के विभिन्न पहलुओं का आवलोकन किया। वहीं, कई विदेशी सैलानी महाकुम्भ के अंतर्गत आयोजित हो रहे बर्ड फेस्टिवल का हिस्सा बनकर जीव-जंतुओं व पक्षियों के संरक्षण के लिए हो रहे प्रयासों की भी जानकारी लेते दिखे। उनके अनुसार, महाकुम्भ केवल मनुष्य ही नहीं, पक्षियों व जीव-जंतुओं के कल्याण का भी मार्ग प्रशस्त कर रहा एक महाआयोजन है जिसका हिस्सा बनकर वह खुद को सौभाग्यशाली महसूस कर रहे हैं।
मानवता व धर्म के प्रति विश्वास को दृढ़ करता है महाकुम्भ
दिल्ली से त्रिवेणी संगम में स्नान करने आईं मोनिका ने बताया कि यह मेरे जीवन का सबसे खूबसूरत पल है। उन्होंने कहा कि इतने लोगों को एका साथ आस्था की डोर में बंधकर त्रिवेणी संगम में स्नान करते देखना अविस्मरणीय क्षण था। मैंने मीडिया में तो इन चीजों को देखा था मगर यहां आकर स्वयं महाकुम्भ के इन खूबसूरत क्षणों को जीना एक ऐसा अनुभव है जिसने धर्म और मानवता के प्रति मेरे विश्वास को और दृढ़ कर दिया है। यह एक अविस्मरणीय आध्यात्मिक यात्रा थी। वहीं दिल्ली से ही आईं शीघ्र बंसल ने कहा कि मैं पहली बार कुम्भ के आयोजन में प्रयागराज आई हूं। उन्होंने कहा कि मेरे लिए यह आउट ऑफ द वर्ल्ड एक्सपीरिएंस था। मैं ज्यादा आध्यात्मिक व्यक्ति नहीं हूं इसके बावजूद यहां की दिव्य आध्यात्मिक व सकारात्मक ऊर्जाओं को अनुभूत कर सकी। यहां पर जिस प्रकार सकुशल जनप्रबंधन हो रहा है इसके लिए स्थानीय प्रशासन बधाई का पात्र है।
सकारात्मक ऊर्जा से भरी हुई है महाकुम्भ में जुटी अपार भीड़
एक अन्य स्नानार्थी सुमिता वाही ने बताया कि मैं आध्यात्मिक अभिरुचि रखती हूं इसलिए मेरे लिए यह एक बेहद विशिष्ट क्षण है। उन्होंने कहा कि यहां इतनी अपार भीड़ जुटी हुई है मगर सभी सकारात्मक ऊर्जा से भरे हुए हैं। यही कारण है कि महाकुम्भ मेला क्षेत्र में आपको अपार सकारात्मक ऊर्जा की अनुभूति होती है।
मनुष्यों के साथ ही पक्षियों व जीव-जंतुओं के संरक्षण का भी माध्यम बना महाकुम्भ
यूके से आईं एमा ने बताया कि मैं पहली बार कुम्भ मेला में भाग लेने भारत आई हूं। उन्होंने कहा कि महाकुम्भ में दिव्यता को अनुभूत करने के साथ यहां आयोजित हुए बर्ड फेस्टिवल को भी देखने का अवसर उन्हें प्राप्त हुआ। उन्होंने कहा कि मानव सभ्यता के साथ ही पर्यावरण और जैविक संरक्षण की दिशा में हो रहे कार्यों की जितनी प्रशंसा हो वह कम है। एक अन्य विदेशी सैलानी ने भी बर्ड फेस्टिवल में भारत के कंसर्वेशन एक्सपर्ट्स से हुए इंटरैक्शन को यादगार बताते हुए प्रयागराज की धरती की जमकर तारीफ की और उन्होंने इस बात को लेकर खुशी जताई कि महाकुम्भ मनुष्यों के साथ ही पक्षियों व जीव-जंतुओं के संरक्षण का भी माध्यम बन रहा है।
महाकुम्भ 2025: 3 लाख करोड़ रुपये का व्यापार, आस्था से अर्थव्यवस्था तक का अद्भुत संगम
जर्मनी के अक्टूबर फेस्ट, ब्राजील के रियो कॉर्निवालऔर हज से भी अधिक श्रद्धालु पहुंचे महाकुम्भः योगी