हमारी संस्कृति लगातार आक्रमणों के बावजूद मूल आत्मा को सुरक्षित रख पाने से ही शाश्वत हैः त्रिपाठी
नई दिल्ली । प्रख्यात भारतीय अंग्रेजी लेखक, निर्माता, प्रस्तुतकर्ता तथा भारतीय उच्चायोग लंदन में मंत्री (संस्कृति) एवं नेहरू केंद्र के निदेशक अमीश त्रिपाठी ने कहा कि हमारी संस्कृति लगातार आक्रमणों के बावजूद मूल आत्मा को सुरक्षित रख पाने से ही शाश्वत है।अमीश गुरुवार को साहित्य अकादेमी के प्रतिष्ठित कार्यक्रम ‘लेखक से भेंट’ को संबोधित कर रहे थे। वे इस कार्यक्रम में आमंत्रित लेखक थे। इस मौके उन्होंने दुनिया की सबसे प्राचीन संस्कृतियों में भारत की संस्कृति के अभी तक निरंतर प्रवाहमान होने के कारणों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए संभव हो पाया कि भारतीय संस्कृति ने अपनी मूल आत्मा को बचाते हुए अपने को समावेशी बनाए रखा है। हमारी प्राचीन कहानियां वही हैं लेकिन हर क्षेत्र और प्रांत में उसके कथानक बदल गए हैं।
उन्होंने कहा कि अपनी बात को और स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि जैसे वाल्मीकि रामायण में लक्ष्मण रेखा वाला प्रसंग नहीं है या जैन रामायण में रावण को राम ने नहीं बल्कि लक्ष्मण ने मारा है। इतना ही नहीं वाल्मीकि अद्भुत रामायण में सीता रावण को मारती हैं। रामचरित मानस में भी मूल वही कहानी है, लेकिन उसके प्रसंग बदले हुए हैं। इसके बाद उपस्थित श्रोताओं ने उनके साथ संवाद किया। एक प्रश्न जोकि भारत के तीन नामों भारत, इंडिया, हिंदुस्तान के संबंध में था, का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि शब्द अलग-अलग समय में अपना अर्थ बदलते हैं। ‘भारतवर्ष’ एक बड़े भूखंड की परिकल्पना पर आधारित नाम था, ‘इंडिया’ ब्रिटिशों द्वारा प्रचारित नाम था और ‘हिंदुस्तान’ मध्यकालीन भारत का प्रतिनिधित्व करता था। आज भारत एक संवैधानिक राष्ट्र है और उसकी सीमाएँ निर्धारित हैं। अतः संविधान में स्वीकृत नाम ही हमें मानना चाहिए।
संस्कृति और अर्थव्यवस्था के संबंधों को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि प्राचीन भारत यूरोप और अन्य कई देशों से समुद्री व्यापार के कारण सर्वश्रेष्ठ था तो आज भी वह लगभग उसी मुकाम पर पहुँच रहा है। युवा पीढ़ी की भारतीय संस्कृति में रुचि के सवाल के उत्तर में उन्होंने कहा कि हमें इसके लिए युवाओं को दोषी ठहराने की ज़रूरत नहीं है, इसका कारण हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली है जो आज भी कोलोनियल है और हमारी पूरी सोच और आचरण को विदेशी बनाने में तुली हुई है। अगर नई पीढ़ी को हम वैज्ञानिक सोच के साथ अपनी संस्कृति के बारे में बताएँगे तो वह इसे अवश्य ग्रहण करेंगी। मेरी अभी तक बिकी 60 लाख किताबों के खरीददार अधिकतर युवा ही हैं।
कार्यक्रम के आरंभ साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने साहित्य अकादेमी की पुस्तकें और अंग्रवस्त्रम् प्रदान कर उनका स्वागत किया और श्रोताओं को उनका संक्षिप्त परिचय दिया। कार्यक्रम में काफी संख्या में लेखक, पत्रकार एवं विश्वविद्यालयों के छात्र-छात्राएँ उपस्थित थे।(हि.स.)