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आपातकाल पर विशेष : बिजली काट दो, मशीन रोक दो, बंडल छीन लो!

आपातकाल की काली करतूतों को दबाने के लिए तत्कालीन केंद्र सरकार ने 25—26 जून, 1975 की रात को दिल्ली में अखबारों के दफ्तरों की बिजली कटवा दी थी और जो अखबार बाजार तक पहुंच गए थे, उन्हें जबर्दस्ती वापस कराया गया।

  • बलबीर दत्त

यदि जून, 1975 में देश में कोई केन्द्रीय कंट्रोल रूम होता, जहां से पूरे देश के अखबारों के दफ्तरों की बिजली लाइन तत्काल काट दी जा सकती तो निश्चित है कि सभी अखबारों की लाइन कट गई होती। 25-26 जून की रात को प्रमुख राजनीतिक नेताओं, कार्यकर्ताओं, पत्रकारों की गिरफ्तारी से संबंधित समाचारों को दबाने के लिए केंद्र सरकार ने राजधानी दिल्ली में अखबारों के दफ्तरों की बिजली काट दी थी। यही वह समय होता है, जब प्रात:कालीन संस्कारणों वाले अखबार छप रहे होते हैं या छपने जा रहे होते हैं। पूछताछ करने पर बताया गया कि बिजली घर में कुछ तकनीकी गड़बड़ी हो गई है, लेकिन सरकार की असावधानी या भूलवश राजधानी के चंद समाचार-पत्र बत्ती गुल से बच गए। यह फार्मूला अन्य शहरों में ठीक से लागू नहीं किया जा सका। वैसे भी राजधानी के समाचार-पत्रों की अहमियत के कारण केन्द्र का ध्यान राजधानी पर ही अधिक था।

टेलीफोन कनेक्शन भी काट दिए गए

कई जगह अखबारों की प्रिंटिंग मशीनों के स्विच आफ करवा दिए गए। जो अखबार छप चुके थे, उनके पैक किए हुए बंडल रुकवा दिए गए, यहां तक कि जिन अखबारों की कॉपियां बाजार में सपलाई हो गई थीं, उन्हें भी जहां तक संभव हुआ, वापस ले लिय गया। कई अखबारों के टेलीफोन कनेक्शन भी काट दिए गए। उन दिनों मोबाइल फोन नहीं होने के कारण अंतर संपर्क कठिन हो गया। यह स्पष्टत: एक सहमी हुई, डरी हुई सरकार की निशानी थी, जो लोगों को असलियत की जानकारी होने को जोखिमपूर्ण मानते हुए उन्हें अंधेरे में रखना चाहती थी। ऐसी अंधेरगर्दी तो ब्रिटिश शासनकाल में भी नहीं हुई थी।

अखबारों की प्रतियां जब्त

इस प्रकरण में प्रमुख समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट आफ इंडिया ने एक समाचार प्रसारित किया, जो इस प्रकार था-
नई दिल्ली, 26 जून : राजधानी के कई प्रात:कालीन समाचार पत्र, जिनमें कुछ श्रीमती गांधी समार्थक पत्र भी शामिल हैं, आज प्रात: नहीं निकल सके, क्योंकि बाहदुरशाह जफर मार्ग प्रेस एरिया में बिजली की आपूर्ति ठप हो गई। बिजली आधी रात के बाद 1.30 बजे गुल हुई। हिंदी और उर्दू के कई अखबार, जो इससे कुछ पहले छप चुके थे, बाजार में आ गए। कनाट प्लेस क्षेत्र से प्रकाशित होने वाले अंग्रेजी दैनिक स्टेट्समैन और हिन्दुस्तान टाइम्स भी निकले, जबकि बहादुरशाह जफर मार्ग से प्रकाशित होने वाले इंडियन एक्सप्रेस, नेशनल हेराल्ड और पेट्रियट नहीं निकल पाए। झंडेवाला क्षेत्र से प्रकाशित होने वाले जनसंघ समर्थक द मदरलैंड भी प्रकाशित हो गया, जबकि उसके संपादक के.आर. मलकानी भी देर रात गिरफ्तार कर लिये गये लोगों में शामिल थे।

बुक स्टालों से बंडल उठाए

जालंधर से प्रापत समाचारों में बताया गया कि 11 स्थानीय दैनिक अखबारों-तीन उर्दू, तीन हिंदी और पांच पंजाबी की कॉपियां देर रात उनके दफ्तरों से जब्त कर ली गईंं। इंदौर से प्राप्त एक समाचार के अनुसार मध्य रात्रि के कुछ देर बाद सभी समाचार-पत्रों के दफ्तरों की बिजली काट दी गई और कोई भी पत्र प्रकाशित नहीं हो सका। हिन्दुस्तान टाइम्स और स्टेट्समैन ने 26 जून को प्रात: विशेष बुलेटिन निकालना तय किया, क्योंकि कुछ कारणवश इनकी बिजली कटने से रह गई थी, जबकि हिन्दुस्तान टाइम्स का बुलेटिन पूर्वाह्न 11 बजे बाजार में आया। स्टेट्समैन का बुलेटिन उस समय तैयार हो रहा था।

इस बीच सेंसरशिप लागू हो जाने का संवाद समाचार एजेंसी के टेलीप्रिंटर पर आ जाने के कारण पत्र का विशेष बुलेटिन रोक दिया गया, कयोंकि सरकारी अधिकारियों को अंतिम पेज प्रूफ दिखा देने के बाद ही इसे छापा जा सकता था। सेंसर ने गिरफ्तार किए गए नेताओं के नाम हटा दिए और उनके फोटो भी क्रॉस कर दिए। प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो को भेजे गए प्रूफ वापस मिल जाने के थोड़ी देर बाद आफिस की बिजली काट दी गई और बुलेटिन प्रकाशित नहीं किया जा सका, लेकिन द मदरलैंड आनन-फानन में विशेष बुलेटिन निकालकर इसकी प्रतियां बाजार में देने में कामयाब हो गया। पुलिस ने बाजार में आ जाने वाले अखबारों और विशेष बुलेटिनों को बुक स्टॉलों से उठाना और हॉकरों से छीनना शुरू कर दिया।

सेंसर को एक्सप्रेस का चकमा

इस प्रकरण में एक दिलचस्प किस्सा है मद्रास में दैनिक इंडियन एक्सप्रेस का। इस अखबार से वर्षों तक संबंद्ध रहने वाले पत्रकार पी.एस. वैद्यनाथन के शब्दों में इसका विवरण इस प्रकार है- इंदिरा गांधी द्वारा इमरजेंसी की घोषणा पर हमने 26 जून, 1975 की विशेष दोपहर बुलेटिन प्रकाशित करने का निर्णय किया। हम लोग लगभग सभी पेज तैयार कर चुके थे कि इस बीच फोन की घंटी बजी। फोन स्थानीय प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो से था। उधर से एक रुखी आवाज में कहा गया- क्या आप कोई विशेष संस्करण निकालने जा रहे हैं? यदि ऐसा है तो आपको सेंसर को पेज दिखाने होंगे। संसरशिप लागू कर दी गई है। मैं कुछ क्षण के लिए सोच में पड़ गया।

हमारे सीनियर संपादकीय प्रभारी सी.पी शेषाद्रि ने पूछा- क्या बात है? मैंने उन्हें बताया। उन्होंने तुरंत मेरे हाथ से फोन झपट लिया और बिना आंख झपकाए शिष्टापूर्वक, लेकिन दृढ़तापूर्वक कहा, यस, हम स्पेशल एडीशन निकाल रहे हैं, लेकिन यह पहले ही छप चुका है और डिसपैच कर दिया गया है। हम अब इसके बारे में कुछ नहीं कर सकते। यह कहकर उन्होंने फोन रख दिया। यह उनके दिमाग की अतयंत चतुर सूझबूझ थी। फिर उन्होंने मेरी ओर आंख मिचकाते हुए कहा, चले आओ। काम में भिड़ जाओ। जल्दी से जल्दी एडीशन का काम खत्म करो। हमने यह कर दिखाया। अखबार बिना सेंसर हुए बाजार में पहुंच गया।

की मौजूदगी में बिजली काटने का निर्णय

आपातकाल के दौरान दिल्ली के उपराज्यपाल किशनचंद के सचिव नवीन चावला ने शाह आयोग को बताया कि 25 जून को सायंकाल जयप्रकाश नारायण को बहुचर्चित स्पीच से पहले ही दोपहर में उपराज्यपाल को इमरजेंसी लगाए जाने के फैसले को जानकारी दे दी गई थी। किशनचंद ने स्वयं अपनी गवाही में बताया कि उस दिन जिस बैठक में अखबारों की बिजली लाइन काट देने के आदेश दिए गए थे, उसमें इंदिरा गांधी भी उपस्थित थीं। उनके अलावा बंसीलाल, ओम मेहता और नवीन चावला भी, शायद आर.के. धवन भी उपस्थित थे। इस बैठक में संजय गांधी ने शिरकत नहीं की थी, लेकिन चावला की बारी आने पर उन्होंने अपनी गवाही में इससे इनकार किया और कहा कि वे उस समय बगल के कमरे में थे। उन्होंने बैठक का समय दोपहर तीन बजे बताया।

किशनचंद ने उस रात के घटनाक्रम का वर्णन करते हुए कहा कि वे दिन में प्रधानमंत्री के निवास स्थान पर गए थे, जहां उन्हें इमरजेंसी जैसी स्थिति के बारे में बताते हुए कहा गया था कि कुछ कठोर कार्रवाई करनी ही होगी। राजनीतिक नेताओं को गिरफ्तार करना होगा क्योंकि कानून-व्यवस्था की विकट स्थिति उत्पन्न की जा सकती है। उन्हें आदेश दिया गया कि वे दिल्ली में यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाएं कि स्थिति बेकाबू न हो जाए। किशनचंद ने कहा कि अखबारों की बिजली लाइन काट देने के आदेश के समय इंदिरा गांधी वहां मौजूद थीं। मुझे याद नहीं कि बिजली लाइन काट देने का आदेश मुझे किस व्यक्ति विशेष ने दिया था, लेकिन वहां मौजूद सभी इस बात से सहमत थे कि ऐसा किया जाना चाहिए।

उपराज्यपाल भी मजबूर

जस्टिस शाह ने किशनचंद से पूछा कि उन्होंने बिजली सप्लाई काट देने की नितांत अवैधता और मनमानी पर विचार किया या नहीं? किशनचंद ने जवाब दिया, यह एक राजनीतिक निर्णय था और वैधता या अवैधता का सवाल खड़ा नहीं होता था। ​जस्टिस शाह द्वारा रुखाई से यह पूछे जाने पर कि आपको सिविल सर्विस में काम करते हुए कितने साल हो गए हैं, किशनचंद ने जवाब दिया-35 साल। इस पर जस्टिस शाह ने टिप्पणी की कि उपराज्यपाल ने अपनी कार्रवाई की वैधता, उपयुक्तता, नैतिकता, न्यायिक निष्पक्षता का ध्यान नहीं किया। श्री चावला ने अपनी गवाही में कहा कि उन्हें बिजली काट देने के निर्णय की जानकारी सायं करीब सात बजे तब हुई, जब दिल्ली बिजली सप्लाई अंडरटेकिंग के तत्कालीन जनरल मैनेजर बी.एन. मेहरोत्रा को बुला भेजा गया और इस काम को करने का आदेश दिया गया। न्यूज़ सोर्स panchjanya

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेख उनकी पुस्तक ‘इमरजेंसी का कहर और सेंसर का जहर’ से लिया गया है)

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