नई दिल्ली । नौसेना प्रमुख एडमिरल आर. हरि कुमार ने हिंद-प्रशांत क्षेत्रीय संवाद के चौथे संस्करण की शुरुआत करते हुए हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) में भारत की स्थिति साफ की है। उन्होंने कहा कि हिंद महासागर क्षेत्र के समग्र विकास और समृद्धि में भारत का सक्रिय योगदान रहा है। समकालीन दुनिया की बढ़ती वास्तविकताएं भू-राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से भारतीय और प्रशांत महासागरों के संगम की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं।
नई दिल्ली के मानेकशा सेंटर में मंगलवार से शुरू हुए शीर्ष स्तरीय अंतरराष्ट्रीय वार्षिक सम्मेलन ‘भारत-प्रशांत क्षेत्रीय संवाद’ के उद्घाटन सत्र को नौसेना प्रमुख ने संबोधित किया। उन्होंने कहा कि भारतीय नौसेना और नेशनल मैरीटाइम फाउंडेशन को विशेष रूप से दुनिया के कुछ प्रमुख विशेषज्ञों और विचारकों की मेजबानी करने का सौभाग्य मिला है, जो इंडो-पैसिफिक के प्रबंधन, संरक्षण बनाए रखने और समुद्री डोमेन को सुरक्षित रखने की पहल पर चर्चा करेंगे। समुद्री राष्ट्र के रूप में भारत ने हमेशा समुद्र को प्रेरणा के स्रोत के साथ-साथ विकास, समृद्धि और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के चालक के रूप में देखा है। भारत को हिंद महासागर में एक सहूलियत की स्थिति प्राप्त है और इस क्षेत्र के समग्र विकास और समृद्धि में सक्रिय योगदानकर्ता रहा है। समकालीन दुनिया की बढ़ती वास्तविकताएं भू-राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से भारतीय और प्रशांत महासागरों के संगम की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं।
उन्होंने कहा कि इंडो-पैसिफिक में कई चुनौतियां हैं जिन्हें हमें दूर करना होगा। इन चुनौतियों को ‘त्रिमूर्ति’ के रूप में देखा जा सकता है, जिसमें पहला है बाहरी प्रभाव और दखलंदाजी। इससे निपटने के लिए समावेशी और अभिनव दृष्टिकोण के माध्यम से आपसी विकास और समृद्धि को बढ़ावा देना होगा। चीन की ओर इशारा करते हुए नौसेना प्रमुख ने पूरे क्षेत्र में सुरक्षित वातावरण तैयार करके क्षेत्र को अस्थिर करने की कोशिश करने वाली ताकतों से रक्षा करने पर जोर दिया। बाहरी प्रभावों के बारे में उन्होंने कहा कि महाशक्ति प्रतिद्वंद्विता और बढ़ती बहु-ध्रुवीयता से प्रेरित, वैश्विक प्रतिस्पर्धा को फिर से आकार देना होगा। इसके अलावा कई प्राकृतिक आपदाओं और समुद्र के बढ़ते जल स्तर के माध्यम से जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरों की चुनौती भी हमारे सामने है।
नौसेना प्रमुख ने तीसरे खतरे की ओर इशारा करते हुए कहा कि विघटनकारी प्रौद्योगिकियां, सैन्य और नागरिक डोमेन में विकल्पों की एक विस्तृत शृंखला की पेशकश करती हैं। साइबर डोमेन, तकनीकों के साथ-साथ लक्ष्यों का उपयोग करते हुए बढ़ता हथियारीकरण भी बड़ा खतरा है। ये चुनौतियां भारत के लिए या इस क्षेत्र के किसी अन्य देश के लिए अद्वितीय नहीं हैं। हम यह भी मानते हैं कि इन चुनौतियों को अकेले एक राष्ट्र दूर नहीं कर सकता है। इसके लिए इंडो-पैसिफिक ओशन इनिशिएटिव हमारे सामूहिक प्रयासों को सिंक्रनाइज़, तालमेल और चैनलाइज़ करने का अवसर प्रदान करता है।
एडमिरल आर. हरि कुमार ने विशेष रूप से समुद्री सुरक्षा के बारे में बात करते हुए कहा कि समुद्री डकैती और सशस्त्र डकैती, अवैध मानव प्रवासन, ड्रग्स और हथियारों की तस्करी, अवैध मछली शिकार, समुद्री आतंकवाद ने सुरक्षा मैट्रिक्स को और जटिल बना दिया है। यह पूरी तरह स्पष्ट है कि समृद्ध हिंद-प्रशांत शांतिपूर्ण समुद्री क्षेत्र पर टिका है। आईपीओआई का समुद्री सुरक्षा स्तंभ दोस्तों और भागीदारों के बीच सहयोगात्मक जुड़ाव के माध्यम से इस महत्वपूर्ण तत्व का प्रबंधन करना चाहता है। यह इंडो-पैसिफिक में अब तक की सबसे व्यापक रूपरेखा का प्रतिनिधित्व करता है। आईपीओआई का उद्देश्य नए संस्थान बनाना नहीं है, बल्कि पारस्परिक हित के क्षेत्रों की पहचान करके मौजूदा तंत्र का लाभ उठाना है। इसलिए ‘भारत-प्रशांत क्षेत्रीय संवाद’ के वर्तमान संस्करण का विषय ‘हिंद-प्रशांत महासागर पहल का संचालन’ रखा गया है।
उन्होंने कहा कि आईपीओआई शांतिपूर्ण और समृद्ध भारत-प्रशांत की दिशा में हमारे प्रयासों को सिंक्रनाइज़ और तालमेल करने की अपार क्षमता रखता है। इसलिए, मुझे विश्वास है कि इंडो-पैसिफिक रीजनल डायलॉग हमारी संबंधित नीतियों और पहलों को आगे बढ़ा सकता है। ‘ब्लू इकोनॉमी’ की संभावनाएं भी परिवर्तनकारी क्षमता रखती हैं। इस क्षेत्र के अधिकांश देशों के पास अपने समुद्री संसाधनों का दोहन करने की सीमित क्षमता है। जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं के प्रभावों से ये चुनौतियां और अधिक बढ़ जाती हैं। इन पर्यावरणीय चुनौतियों के लिए विश्वसनीय, व्यावहारिक और स्थायी समाधानों की आवश्यकता है। इंडो-मलय-फिलीपींस द्वीपसमूह दुनिया की समुद्री जैव विविधता की अधिकतम मात्रा की मेजबानी करता है।(हि.स.)