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अपने वजूद की लड़ाई लड़ रही हैं मुस्लिम महिलाएं

सुरक्षा और सम्मान दिलाने वाले मोदी के पक्ष में लामबंद हुईं मुस्लिम महिलाएं.हलाला और बहुविवाह पर प्रतिबंध के लिए कानून बने

वाराणसी। मुस्लिम महिलाओं के हक और हकूक की लड़ाई लड़ने वाली सर्वोच्च संस्था मुस्लिम महिला फाउण्डेशन ने लमही के सुभाष भवन में द्वितीय मुस्लिम महिला अधिवेशन का आयोजन किया।पहला अधिवेशन 01 दिसम्बर 2013 को पराड़कर भवन में हुआ था, जिसमें ऐतिहासिक तीन तलाक के खिलाफ आन्दोलन पूरे देश में गया और संसद से कानून पारित हुआ। भारत के इतिहास में मुस्लिम महिलाओं ने पहला आन्दोलन किया और तीन तलाक जैसी कूप्रथा से आज़ादी पायी। यह संयोग है कि वर्ष 2013 में मुस्लिम महिलाओं ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य इन्द्रेश कुमार को अपना अतिथि बनाया था। इन्द्रेश कुमार ने तीन तलाक की पीड़ा से सिसक रही मुस्लिम महिलाओं का दर्द समझा और धर्म के नाम पर असहनीय पीड़ा से पीड़ित मुस्लिम महिलाओं को मुक्ति दिलाने में बड़ी भूमिका निभायी।

पूरी दुनियां में सर्वाधिक प्रताड़ित और अधिकार विहीन मुस्लिम महिलाओं ने फिर से अपने जीवन को बचाने और सम्मान के साथ जीने के लिए 9 वर्ष बाद द्वितीय मुस्लिम महिला अधिवेशन का आयोजन किया, जिसमें मुख्य संवादकर्ता समाज सुधारक एवं आर०एस०एस० के शीर्ष नेता इन्द्रेश कुमार थे। मुस्लिम महिला फाउण्डेशन की राष्ट्रीय अध्यक्ष नाजनीन अंसारी ने मुख्य संवादकर्ता इन्द्रेश कुमार का स्वागत किया। इन्द्रेश कुमार ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीपोज्वलन कर अधिवेशन का शुभारम्भ किया। जैसे ही इन्द्रेश कुमार सभागार में पहुंचे मुस्लिम महिलाओं ने गुलाब की पंखुड़ियों की वर्षा कर दी। सुभाष भवन का सभागार भारत माता की जय, मुस्लिम महिला शक्ति जिन्दाबाद के नारे लगे। अपने बीच में मुक्तिदाता को पाकर खुशी जाहिर कर रही थीं मुस्लिम महिलाएं।

मुस्लिम महिला फाउण्डेशन की राष्ट्रीय अध्यक्ष नाज़नीन अंसारी ने मुस्लिम महिला फाउण्डेशन के जलसे में मुस्लिम महिलाओं की ओर से भारत सरकार, राजनेताओं और मजहबी नेताओं (दानिशों) से अपील की कि –

1. मानवता और महिलाओं पर क्रूर अत्याचार जैसी गैर इस्लामिक हलाला कूप्रथा को तुरन्त समाप्त किया जाए।
2. मुस्लिम मर्दों द्वारा अनेक निकाह करना यानी बहुविवाह करना जिसके कारण औरतों की जिंदगी दर–ब–दर होती है और बच्चों का भविष्य बर्बाद होता है। इसलिए अनेक निकाह पर प्रतिबंध लगायी जाए।
3. मुसलमानों को गरीबी, बेरोजगारी, अनपढ़ता, पिछड़ेपन, अपराध आदि से मुक्त कराने के लिये परिवार नियोजन अपनाना चाहिए, ताकि संतानें पढ़ी–लिखी, तहजीब वाली, रोजगारयुक्त अपने पैरों पर खड़ी होने वाली बने।
4. सभी धर्मों में सिख, बौद्ध, ईसाई, सनातन (हिन्दू) आदि में पूजा स्थल पर ईश्वर की पूजा करने का अपने–अपने तरीके से अनुमति है, अधिकार है। मस्जिदों में भी महिला को नमाज पढ़ने का अधिकार मिलना चाहिए।
5. हिजाब के नाम पर षड्यंत्र और संघर्ष पैदा करके बेटियों को किताब से और तरक्की से दूर करना और मुसलमान को मजहब के नाम पर भड़काकर देश की एकता, अखण्डता और भाईचारे को तोड़ना यह इस्लाम को दार–दार करता है। मुसलमान को शर्मसार करता है और आपसी भाईचारे को नफरत में बदलता है, इसलिए इस विवाद को तुरंत रोकना चाहिए। इस्लाम की रोशनी है जिस वतन के हो उसके कायदे कानून को मानों यह ईमान है, जिससे जन्नत (स्वर्ग) है।
6. सेना, कोर्ट-कचहरी, पुलिस, एन०सी०सी०, विद्यालयों आदि संस्थाओं में ड्रेस कोड है और उस ड्रेस कोड के कारण किसी का कोई दीन खतरे में नहीं आया, किसी का कोई मजहब खतरे में नहीं आया। ड्रेस कोड का अर्थ है– हम अनेक जातियों, मजहबों, अमीरी–गरीबी का भेद मिटता है।

इस अवसर पर नाजनीन अंसारी ने कहा कि मुस्लिम महिलाएं देशभक्त हैं और नमक हलाल भी। कोरोना काल में मुस्लिम बच्चों को भूख से निजात, घर के हर सदस्य को निवाला, घर, बिजली, पानी, गैस सिलेण्डर, शौचालय, तीन तलाक पीड़ितों को पेंशन, स्वास्थ्य के लिये आयुष्मान कार्ड, बेटियों के निकाह के लिए 50 हजार रुपये देने वाली योगी सरकार ने सुरक्षा भी दिया और सम्मान भी। मुस्लिम महिलाओं को पहली बार इतना महत्व दिया गया। आज तक मुस्लिम महिलाएं कहीं गिनती में नहीं थीं। आज उनका अपना वजूद है, वो जी भर के जी सकती हैं। योगी आदित्यनाथ और नरेन्द्र मोदी ने हमारा साथ दिया। हमलोग इनका साथ कैसे छोड़ दें।

मुख्य संवादकर्ता इन्द्रेश कुमार ने कहा कि हर मुल्क का अपना कायदा–कानून होता है। वतन का ईमान वाला बनकर जीना चाहिए और जरूरत पड़े तो कुर्बानी भी करनी चाहिए। मतलब अच्छे नागरिक, ईमान वाला और अच्छा मुसलमान बनना चाहिए। हर क्षेत्र का अलग–अलग ड्रेस कोड है फौज का, वकील का, डॉक्टर का, नर्स का, एन०एस०एस० का, एन०सी०सी० का अपना ड्रेस कोड है। स्कूल में अलग–अलग जाति, मजहब, फिरकों, अमीर–गरीब होगा, सभी एक साथ पढ़ते हैं। बच्चे को शुरू से संस्कार मिले कि हम सब एक हैं, मिलकर प्यार और इज्जत से रहें क्योंकि हम सभी भारत से भारतीय हैं, हिन्द से हिन्दी हैं। मिलावट कुरान में नहीं हैं, मिलावट शरिया में है, इसलिए इस्लाम के प्रति ईमानदार बनें।

सामाजिक कार्यकर्ता नजमा परवीन ने कहा कि हमें कट्टरपंथी मौलानाओं के बहकावे में न आकर रसूल के रास्ते पर चलना है। हिजाब के चक्कर मे फंसाकर मौलाना मुस्लिम बेटियों को घर में बंद करना चाहते हैं। मुस्लिम महिलाओं को आज तक धर्म का हवाला देकर तालीम से दूर रखा गया। मुस्लिम महिलाएं दुनियां की सबसे अधिक अधिकार विहीन महिलायें हैं। हमें हिजाब नहीं, किताब चाहिए। जो न पढ़ सकी, वो अपनी बेटियों को जरूर पढ़ायें और आगे बढ़ाएं।

इस अवसर पर मदीना, शाहजहां, नसीबुन्निशा, सायरा, मजीदून, रेहाना, जमीलून, रजिया, तबस्सुम, नूरजहां, शकीला, रेशमा, जीनत, साबिया, नाजमा, नाजो, परवीन खातून, जुलेखा, जूही, रुखसार, हसीना, नूरजहां बानो, नाज़िया, रेहाना बीबी, रुखसाना बीबी, शबनम, सब्बो परवीन, रुखसार बीबी, शहनाज़, रेहाना, रेशमा, रौशनजहाँ, गुलशन, रेशमा बानो, सुग्गी, सीमा, सन्नो, रोजननिशा, जीनत, आफती, शमसुननिशा, सबनम बीबी, बीबी, सोनी, रूखसाना, रूखसार बीबी, सबीना, बिलकिस, उम्मूल, कौशर जहाँ, रेशमा, बिटटू, रेहाना बीबी, साइस्ता, हुसना, शालिम, नाजरीन आदि सहित बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाएं उपस्थित रहीं।

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