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एशिया को मजबूत बनाने के लिए बौद्ध धर्म की भूमिका पर चर्चा हो: मुर्मु

एशिया को मजबूत बनाने के लिए बौद्ध धर्म की भूमिका पर चर्चा हो: मुर्मु

The President of India, Smt. Droupadi Murmu lighting the lamp at the first Asian Buddhist Summit organised by the Ministry of Culture in collaboration with the International Buddhist Confederation (IBC), in New Delhi on November 05, 2024.

नयी दिल्ली : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने मंगलवार को कहा कि विभिन्न संकटों से गुजर रहे विश्व को की सहायता के लिए बौद्ध समुदाय के पास बहुत ज्ञान और शिक्षाएं हैं तथा एशिया को मजबूत बनाने के लिए भी बौद्ध धर्म की भूमिका के बारे में चर्चा करने की आवश्यकता है।श्रीमती मुर्मु ने कहा, “ वास्तव में, हमें इस बारे में विस्तार से चर्चा करनी होगी कि बुद्ध धर्म एशिया और दुनिया में शांति, वास्तविक शांति कैसे ला सकता है – ऐसी शांति, जो न केवल शारीरिक हिंसा से बल्कि सभी प्रकार के लालच और घृणा से भी मुक्त हो – बुद्ध के अनुसार, ये दो मानसिक शक्तियां हमारे समस्त दुखों का मूल कारण हैं।” वह यहां प्रथम एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन को संबोधित कर रही थीं।इस सम्मेलन का आयोजन अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (आईबीसी) के सहयोग से केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा किया गया।

राष्ट्रपति ने विश्वास व्यक्त करते हुए कहा,“ यह शिखर सम्मेलन बुद्ध की शिक्षाओं की हमारी साझा विरासत के आधार पर हमारे सहयोग को मजबूत बनाने की दिशा में दूरगामी प्रभाव उत्पन्न करेगा।”राष्ट्रपति ने कहा कि आज जब दुनिया कई मोर्चों पर अस्तित्व के संकट का सामना कर रही है, उसके सामने केवल संघर्ष ही नहीं, बल्कि जलवायु संकट भी है, तो ऐसे में इस विशाल बौद्ध समुदाय के पास मानवता को देने के लिए बहुत कुछ है।उन्होंने कहा कि बौद्ध धर्म के विभिन्न संप्रदाय दुनिया को दर्शाते हैं कि संकीर्ण संप्रदायवाद का मुकाबला कैसे किया जाए। उनका मुख्य संदेश शांति और अहिंसा पर केंद्रित है। यदि कोई एक शब्द बुद्ध धम्म को व्यक्त कर सकता है, तो वह है ‘करुणा’ या दया, जिसकी आज दुनिया को जरूरत है।

श्रीमती मुर्मु ने कहा,“ बुद्ध की शिक्षाओं का संरक्षण हम सभी के लिए एक महान सामूहिक प्रयास रहा है।” उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि भारत सरकार ने अन्य भाषाओं के साथ-साथ पाली और प्राकृत को भी ‘शास्त्रीय भाषा’ का दर्जा दिया है। उन्होंने कहा कि पाली और प्राकृत को अब वित्तीय सहायता मिलेगी, जो उनके साहित्यिक खजाने के संरक्षण और उनके पुनरुद्धार में महत्वपूर्ण योगदान देगी।उन्होंने कहा कि भारत धर्म की पवित्र धरती है। हर युग में भारत में महान गुरु और रहस्यवादी, द्रष्टा और साधक हुए हैं, जिन्होंने मानवता को अपने भीतर की शांति और बाहर सद्भाव खोजने का मार्ग दिखाया है। इन पथप्रदर्शकों में बुद्ध का अद्वितीय स्थान है।राष्ट्रपति ने कहा कि बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ गौतम का ज्ञान प्राप्त करना इतिहास की एक अनुपम घटना है।

उन्होंने न केवल मानव मन की कार्यप्रणाली के बारे में अतुलनीय समृद्ध अंतर्दृष्टि प्राप्त की, बल्कि उन्होंने – जन कल्याण के लिए – इसे “बहुजन सुखाय बहुजन हिताय च” की भावना से सभी लोगों के साथ साझा करने का भी चयन किया।उन्होंने कहा कि सदियों से यह स्वाभाविक ही रहा कि अलग-अलग साधकों ने बुद्ध के प्रवचनों से अलग-अलग अर्थ ग्रहण किए और इस तरह अनेक संप्रदाय उभरे। बुद्ध धर्म का उत्कर्ष इतिहास के विभिन्न कालखंडों में अनेक दिशाओं में हुआ। विस्तृत भौगोलिक क्षेत्र में धम्म के इस प्रसार ने एक समुदाय, एक विशाल संघ निर्मित किया पर बुद्ध के ज्ञान की भूमि भारत इसके केंद्र में है। लेकिन, ईश्वर के बारे में जो कहा जाता है, वही इस विशाल बौद्ध संघ के बारे में भी सत्य है: इसका केंद्र हर जगह है और सीमा कहीं नहीं है।(वार्ता)

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