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सामुदायिक स्वास्थ्य सुधार को समर्पित डॉ. रानी बंग

निज हित त्याग कर मानव सेवा के लिए, जीवन समर्पित करने का साहस कुछ ही लोग कर पाते हैं। वे अपना सबकुछ समाज के उत्थान में लगा देते हैं। ऐसी ही एक महिला हैं ; डॉ. रानी बंग। पेशे से चिकित्सक हैं। बीते कई सालों से सामुदायिक स्वास्थ्य सुधार के क्षेत्र में कार्य कर रही हैं। अब तक कई महिलाओं को जीवनदान दे चुकी हैं। आदिवासी अंचलों में स्वास्थ्य की अधोसंरचना सुधारने में भी, डॉ. रानी बंग ने महत्वपूर्ण प्रयास किए। उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया है। आइये, निःस्वार्थ महिला चिकित्सक डॉ. रानी बंग की जीवन यात्रा का परिचय पाते हैं।

महाराष्ट्र में हुआ जन्म, अमेरिका में की पढ़ाई
रानी बंग का जन्म 17 सितम्बर 1951 को महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले में हुआ। उनका परिवार सार्वजनिक सेवाओं के लिए समर्पित था। बचपन से ही रानी पढ़ाई में कुशल थीं। प्रारम्भिक शिक्षा में बेहतर प्रदर्शन करने के बाद, उन्होंने नागपुर मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लिया। वर्ष 1972 में रानी ने एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उसी कॉलेज से एम.डी. भी करने लगी। उन्होंने गायनेकोलॉजी यानि कि स्त्री रोग से संबंधित विषय चुना। रानी का विवाह डॉ. अभय बंग से हुआ,जो कॉलेज में उनके सहपाठी भी थे। विवाह के बाद ये दंपत्ति आगे के अध्ययन के लिए अमेरिका चले गए। जब अध्ययन पूर्ण हुआ, तो रानी बंग को लगा क्यों न ग्रामीण भारत में जाकर स्वास्थ्य सेवाएं दी जाएं और यहीं से नि:स्वार्थ सेवा की संकल्पना बनी, जिन्हें आगे चलकर उन्होंने साकार किया।

महाराष्ट्र का गढ़चिरौली बना कार्यक्षेत्र
भारत लौटने के बाद रानी को बंग ने महाराष्ट्र के गढ़चिरौली को अपना कार्यस्थल बनाया। यह आदिवासी क्षेत्र है और साथ ही नक्सलवाद से भी प्रभावित है। अस्सी के दशक में वहां बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं पहुंची थीं। महिलाओं की स्वास्थ्य संबंधी स्थिति बहुत ही निराशाजनक थी। वहां महिलाओं को गर्भावस्था के समय बेहतर सुविधाओं का न मिलना, यौन संक्रमित रोग, गर्भपात की समस्याएं, शिशु मृत्यु दर जैसी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। यहां पहुंचकर रानी बंग ने ग्रामीणों को स्वास्थ्य सुविधाएं देने का प्रयास किया। महिलाओं को जागरूक किया। प्रारंभ में उनका विरोध भी हुआ, पर वे पीछे नहीं हटीं।

शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए विकसित किया मॉडल
रानी बंग ने गढ़चिरौली जिले की स्वास्थ्य समस्याओं पर शोध किया। उन्होंने पाया कि, यहां शिशु मृत्यु दर बहुत ज्यादा है। बच्चों की मौत वहां पर एक बड़ी समस्या थी। इसके बाद उन्होंने अपने पति की मदद से गृह आधारित नवजात देखभाल (एचबीएनसी) मॉडल तैयार किया। इसके बाद वह घर-घर जाकर नवजात बच्चों की देखभाल करती थीं, ताकि जिले में किसी बच्चे की मौत न हो। धीरे-धीरे इन क्षेत्रों में शिशु मृत्यु दर काफी कम हुई। इससे रानी की हिम्मत और बढ़ी। उनका मॉडल सफल रहा। रानी बंग के इस मॉडल को, भारत सरकार ने, 12वीं राष्ट्रीय पंचवर्षीय योजना में भी सम्मिलित किया।

वैश्विक मंचों पर रखी अपनी राय, मिले प्रतिष्ठित पुरस्कार
वर्ष 1992 में रानी बंग को विश्व स्वास्थ्य सभा में शामिल होने का मौका मिला। वहां डॉ. रानी बंग ही एक मात्र गैर सरकारी कर्मचारी थीं। जब उन्होंने अपना अध्ययन सबके सामने पेश किया, तो विश्व भर के प्रतिनिधियों ने उनकी प्रशंसा की। संयुक्त राष्ट्र महासभा में भी रानी ने महिला स्वास्थ्य के बारे में अपने विचार प्रस्तुत किए। वर्ष 1993 में रानी ने माँ दंतेश्वरी दवाखाना खोलकर अपनी एक नई शुरुआत की। बाद में जब ग्रामीणों का समर्थन प्राप्त हुआ, तो क्लीनिक ने अस्पताल का रूप ले लिया। आज इस अस्पताल में कई विशेषज्ञ चिकित्सक मौजूद हैं। यह अस्पताल रानी बंग और उनके पति अभय बंग की संस्था सोसाइटी फॉर एजुकेशन एक्शन एंड रिसर्च इन कम्युनिटी हेल्थ ( SEARCH) के अंतर्गत आता है। वर्ष 2018 में रानी बंग को पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उन्हें महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार, मैकआर्थर फाउंडेशन इंटरनेशनल अवार्ड और शेषाद्री स्वर्ण पदक भी दिया जा चुका है। अंदरूनी इलाकों में पहुंचकर, प्रत्येक महिला तक स्वास्थ सुविधा की पहुंच सुनिश्चित करने वाली , डॉ. रानी बंग नि:स्वार्थ सेवा की मिसाल हैं।

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