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जानें, कैसे काम करता है भारतीय मौसम विभाग, आपदाओं में बचा रहा सैकड़ों जिंदगी

एक समय था, जब भारत तकनीक और मौसम विज्ञान की दुनिया में पिछड़ा हुआ माना जाता था। इन चीजों के लिए उसे अन्य देशों पर निर्भर रहना पड़ता था। आज समूची परस्थिति बदल चुकी है। तकनीक विशेषज्ञों के लिए दुनिया, भारत की ओर देखती है और भारतीय मौसम विज्ञान की तारीफ संयुक्त राष्ट्र तक करता है। यह देश के वैज्ञानिकों और सरकार की सालों की मेहनत का नतीजा है। खासकर भारतीय मौसम विज्ञान की तरक्की अभूतपूर्व है।

हमें मालूम है कि देश इस समय चक्रवातों से जूझ रहा है। आज हम मौसम विभाग के सटीक पूर्वानुमानों के कारण इन चक्रवातों का सामना चुस्त-दुरुस्त होकर कर पा रहे हैं। इस लेख के माध्यम से हम यही जानेंगे की भारतीय मौसम विभाग काम कैसे करता है, इसकी संरचना क्या है, इसने अपनी कार्यप्रणाली में क्या-क्या सुधार किए हैं और चक्रवाती तूफान भारत में कब और क्यों आते हैं।

दुनिया के 10% चक्रवात आते हैं भारतीय तटों पर

भारतीय उपमहाद्वीप, जिसकी कुल तटरेखा लगभग 7516 किमी है, और लगभग 40% आबादी इस तटरेखा के 100 किमी के भीतर रहती है। दुनिया के लगभग 10% उष्णकटिबंधीय चक्रवात इस क्षेत्र में आते हैं, जिससे यह सबसे खराब चक्रवात प्रभावित क्षेत्रों में से एक है। औसतन, बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में हर साल लगभग 5-6 उष्णकटिबंधीय चक्रवात आते हैं, जिनमें से 2 से 3 चक्रवात एक गंभीर चक्रवाती तूफान की तीव्रता तक पहुंचते हैं।

क्या है भारतीय मौसम विभाग की संरचना और कार्यप्रणाली

सरकार द्वारा मौसम विभाग को चक्रवात का पूर्वानुमान और अग्रिम चेतावनी के लिए देशभर में अनेक जगहों पर चक्रवात निगरानी रडार प्रदान किए गए हैं। सरकार ने पूर्वी तट में कलकत्ता, पारादीप, विशाखापट्टनम, मछलीपट्टनम, मद्रास और कराईकल में और पश्चिमी तट में कोचीन, गोवा, बॉम्बे और भुज में इन रडारों को स्थापित किया है।

सेटेलाइट भेजती है फोटो

ध्रुवीय-परिक्रमा उपग्रहों से सेटेलाइट पिक्चर रिसीविंग (APT) उपकरण के द्वारा चक्रवातों के सेटेलाइट चित्र दिल्ली, बॉम्बे, पुणे, मद्रास, विशाखापत्तनम, कोलकाता और गुवाहाटी में प्राप्त होते हैं। इन चित्रों को नई दिल्ली में एडवांस वेरी हाई रेजोल्यूशन रेडियो-मीटर ग्राउंड रिसीविंग इक्विपमेंट के माध्यम से ज्यादा साफ करके देखते हैं। यह उपकरण दिल्ली में 1 अप्रैल, 1982 से काम कर रहा है। भारतीय भू-स्थिर उपग्रह इन्सैट-एलबी के मौसम संबंधी अनुप्रयोग कार्यक्रम के चालू होने के बाद चक्रवात ट्रैकिंग और पूर्वानुमान में और सुधार हुए हैं।

एम.डी.यू.सी. भेजता है सभी केंद्रों को चित्र

हर घंटा तस्वीरें लेकर चक्रवात की निगरानी से वैज्ञानिकों को मौसम का सही अनुमान लगाने में मदद मिली है। नई दिल्ली में मौसम विज्ञान डेटा उपयोग केंद्र (एम.डी.यू.सी.) द्वारा प्राप्त उपग्रह चित्रों को आगे रेडियो के माध्यम से सभी पूर्वानुमान कार्यालयों में प्रसारित किया जाता है। इस कारण मौसम विभाग, जनता को समय पर चेतावनी जारी कर पाता है।

पश्चिमी और पूर्वी तटों पर है इनकी जिम्मेदारी

क्षेत्र चक्रवात चेतावनी केंद्र (ACWC) और चक्रवात चेतावनी केंद्र (CWC) के माध्यम से मौसम विभाग, चक्रवात की सभी गतिविधियों की निगरानी करता है। कलकत्ता और मद्रास में एसीडब्ल्यूसी (ACWC) और भुवनेश्वर और विशाखापत्तनम में सीडब्ल्यूसी (CWC) पर बंगाल की खाड़ी में आने वाले चक्रवातों के पूर्वानुमान की जिम्मेदारी है। बॉम्बे में एसीडब्ल्यूसी (ACWC) और अहमदाबाद में सीडब्ल्यूसी (CWC) पर अरब सागर में चक्रवातों के पूर्वानुमान के लिए जिम्मेदारी है। पुणे में राष्ट्रीय पूर्वानुमान केंद्र इन सभी का समन्वय करता है।

तूफानों से होने वाली तबाही को भारत ने कैसे किया कम

भारत चक्रवात, बाढ़, सूखा, भूकंप, भूस्खलन, गर्मी की लहर, शीत लहर, गरज और बवंडर सहित विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक खतरों का सामना करता है। जल-मौसम संबंधी खतरों के बीच, उत्तर हिंद महासागर (एनआईओ) के ऊपर चक्रवात, तटीय आबादी के साथ-साथ क्षेत्र के समुद्री समुदाय के लिए एक संभावित खतरा पैदा करते हैं। इसी खतरे को कम करना और उसका अनुमान लगाने को जोखिम प्रबंधन कहते हैं। चक्रवातों का जोखिम प्रबंधन कई कारकों पर निर्भर करता है, जिनमें (i) खतरा और कमियों का विश्लेषण (ii) तैयारी और योजना (iii) पूर्व चेतावनी (iv) रोकथाम शामिल हैं।

चक्रवात सहित किसी भी आपदा का खतरा कम करने में सबसे महत्वपूर्ण घटक है उसकी भयावहता और विनाशक प्रवृत्ति का सटीक विश्लेषण कर, उचित तैयारी करना। इसके लिए महत्वपूर्ण कारक हैं (i) निगरानी और भविष्यवाणी में कुशलता (ii) प्रभावी चेतावनी और उनका प्रसार (iii) आपदा प्रतिक्रिया इकाइयों के साथ समन्वय और (iv) सार्वजनिक जागरूकता और चक्रवात की पूर्व चेतावनी की विश्वसनीयता के बारे में में आम लोगों की धारणा। भारत ने सबसे ज्यादा उन्नति इन्हीं क्षेत्रों में की। भारत में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की विश्वसनीयता अकाट्य है।

आधुनिकीकरण और नीतिगत बदलाव है प्रमुख कारण

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस)/आईएमडी के आधुनिकीकरण कार्यक्रम और भारत सरकार के नीतिगत ढांचे में बदलाव के कारण हाल के वर्षों में चक्रवात निगरानी और चेतावनी प्रणाली में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है। यही सबसे बढ़ा कारण है कि भारत ने तूफानों से होने वाली तबाही को काफी हद तक कम कर दिया है।

पिछले साल विश्व मौसम विभाग संगठन ने की थी तारीफ

पिछले साल, जिस तरीके से भारत ने ‘अंफान’ और ‘फानी’ तूफान को संभाला था, उससे भारतीय मौसम विभाग को दुनिया भर में एक सम्मान भरी नजर से देखा गया। इन तूफानों में न सिर्फ हजारों करोड़ों रुपए की बर्बादी रुकी, अपितु सैकड़ों लोगों की जान भी भारतीय मौसम विभाग के प्रयासों से बच सकी थी।

भारत मौसम विज्ञान विभाग के पूर्वानुमान और सुपर साइक्लोन अम्फान पर अपडेट को संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी ‘विश्व मौसम विज्ञान संगठन’ (WMO) द्वारा “सर्वोत्तम कार्य” माना गया था। डब्ल्यूएमओ के महासचिव ई. मानेकोवा ने आईएमडी को लिखे पत्र में कहा, “उत्पत्ति, ट्रैक, तीव्रता, लैंडफॉल बिंदु और समय की सटीक भविष्यवाणी, साथ ही साथ संबंधित प्रतिकूल मौसम जैसे तूफान, वर्षा, हवा की तीन दिनों से अधिक की सटीक लीड से आईएमडी को प्रारंभिक प्रतिक्रिया और कार्यों में काफी मदद मिली।” उन्होंने आगे कहा, आपदाओं को संभालने में भारत का प्रदर्शन काबिले तारीफ है।

भारत पड़ोसी देशों की भी करता है मदद

आपको बता दें, पिछले साल आईएमडी की भविष्यवाणियों और अपडेट को 13 पड़ोसी देशों को प्राकृतिक आपदाओं के लिए तैयार रहने और मदद करने के लिए भेजा गया। आईएमडी की भविष्यवाणियों से सबसे अधिक लाभान्वित होने वाले देशों में बांग्लादेश और सिंगापुर सबसे ऊपर हैं।

इस बात का जिक्र डब्ल्यूएमओ ने अपने पत्र में किया था। डब्ल्यूएमओ ने कहा कि पड़ोसी देशों को सटीक पूर्वानुमान की जानकारी और उनके जान-माल के नुकसान को रोकने के लिए आईएमडी के मदद के प्रयासों की भी सराहना की जानी चाहिए।

साल के किस समय आते हैं भारत में तूफान

हिन्द महासागर के क्षेत्र में पड़ने वाले देश, भारत, श्रीलंका और बांग्लादेश में मार्च के महीने से मई के अंत तक सर्वाधिक तूफान देखने को मिलते हैं। इस समय को प्रि-मानसून चक्रवात सीजन भी कहते हैं। इसके अलावा सितंबर से नवंबर के अंत में भी तूफान आते हैं।

इस बार का प्री-मानसून साइक्लोन सीजन पिछले एक सप्ताह तक अप्रत्याशित रूप से तूफान मुक्त रहा था, लेकिन पिछले दस दिनों में 2 तूफान सामने आयें हैं। पिछले दो दशकों में केवल तीन साल 2005, 2011 और 2012 ऐसे साल हुए हैं जब कोई चक्रवात / तूफान रिकॉर्ड नहीं किया गया।

इसी समय क्यों आते हैं तूफान

इस समय सर्वाधिक तूफान इसलिए आते हैं क्योंकि समुद्र का तापमान गर्मी के कारण बढ़ जाता है। जैसा कि हम जानते हैं, 26 डिग्री से अधिक का तापमान किसी भी तूफान को जन्म देने के लिए पर्याप्त होता है। अधिक गर्मी होने से समुद्र का पानी वाष्पीकरण होकर सतह से ऊपर उठने लगता है, जिससे एक कम दवाब के क्षेत्र का निर्माण होता है। समुद्र की सतह के ऊपर हल्की हवा होने के कारण ये चारों दिशाओं में घूमने लगता है। थोड़े समय पश्चात यह दवाब क्षेत्र एक चक्रवात में तब्दील हो जाता है। मूल रूप से तूफानों के माध्यम से समुद्र खुद को ठंडा करता है। जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्रों का तापमान बढ़ रहा है, यही कारण है कि पिछले कुछ वर्षों में तूफानों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है। आपको बता दें, जितना अधिक समुद्र की सतह गरम होगी, तूफान की ताकत उतनी अधिक होगी।

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